युद्ध विराम और शांति के बगैर स्वास्थ्य सुरक्षा बेमानी

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बॉबी रमाकांत

— बॉबी रमाकांत —

वैश्विक स्तर पर कोविड महामारी की जन स्वास्थ्य आपदा चल रही है, पर जब अस्पताल पर बमबारी हो रही हो तो ऐसे में स्वास्थ्य सुरक्षा की बात करना कितना बेमायने है! यदि स्वास्थ्य सुरक्षा प्राथमिकता है तो यूक्रेन और रूस के बीच तुरंत युद्ध विराम हो और शांति कायम हो। संवाद से समस्याओं का हल निकले क्योंकि युद्ध से समस्याएँ सुलझतीं नहीं बल्कि और जटिल हो जाती हैं।

हालात इतने खराब हैं कि बच्चों के अस्पताल भी सुरक्षित न रहें। एम्बुलेंस हो या क्लिनिक, अस्पताल हो या स्वास्थ्यकर्मी या जख्मी लोग या अन्य रोगी, सब पर बमबारी हो गयी। इन स्वास्थ्यकर्मी या जख्मी लोगों या रोगियों पर हमला करने से क्या रूस और यूक्रेन की समस्या हल हो जाएगी? स्वास्थ्य व्यवस्था को ध्वस्त करने से न सिर्फ वर्तमान बल्कि भविष्य भी अंधकारमय हो रहा है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव ने यह स्पष्ट कहा था कि स्वास्थ्य व्यवस्था पर हमला करना ‘वार क्राइम’ (युद्ध अपराध) है, यानी कि युद्ध के दौरान एक संगीन अपराध है।

इसीलिए 2016 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव संख्या 2286 को पारित किया कि स्वास्थ्य व्यवस्था, स्वास्थ्य से सम्बंधित आवागमन/ यातायात, स्वास्थ्यकर्मी आदि पर किसी भी युद्ध या लड़ाई के दौरान हमला करना अपराध है और निंदनीय है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन, जो संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेन्सी है, के महानिदेशक डॉ टेडरोस अधनोम धेबरेसस ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब तक 18 ऐसे हमलों की खबरों को सत्यापित किया है जो यूक्रेन और रूस के मध्य चल रहे युद्ध के कारण हुए। ये हमले अस्पताल एवं अन्य स्वास्थ्य सेवा केंद्रों पर हुए, एम्बुलेंस पर हुए, और स्वास्थ्यकर्मियों पर हुए। अब तक इनमें 10 लोग मृत हो चुके हैं और कम से कम 16 घायल हैं। इन हमलों के कारण पूरे समुदाय को स्वास्थ्य सेवा से वंचित होना पड़ता है।

अब तक यूक्रेन से 20 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं जिसके कारण, पड़ोसी देशों में विश्व स्वास्थ्य संगठन, इन लोगों को स्वास्थ्य सेवा देने में सहयोग कर रहा है। इन पलायन किए हुए लोगों में अधिकांश बच्चे और महिलाएँ हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपदा प्रबंधन कार्यक्रम के निदेशक डॉ माइकल राइयन ने कहा कि यूक्रेन और रूस युद्ध में, युद्ध की “फ़्रंटलाइन” से 10 किमी के भीतर अब तक 1000 से अधिक अस्पताल, क्लिनिक और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े अन्य केंद्र प्रभावित हुए हैं।

कुछ ऐसे स्वास्थ्य केंद्र हैं जिनको अधिकारियों ने अब संचालित करना छोड़ दिया है क्योंकि इनको युद्ध के बीच संचालित रखना सम्भव ही नहीं है। कुछ ऐसे स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां अस्पताल के सामान और यंत्र आदि और स्वास्थ्यकर्मियों को वहाँ से हटा के कहीं और पुनर्स्थापित किया जा रहा है जो इस स्थिति में आसान नहीं है।

यूक्रेन में विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य-सम्बन्धी राहत सामग्री तो भेज रहा है पर अस्पताल और स्वास्थ्य व्यवस्था को संचालित रखने के लिए सिर्फ राहत सामग्री नहीं चाहिए। स्वास्थ्य सम्बन्धी राहत सामग्री के साथ-साथ स्वास्थ्य व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए सुरक्षित माहौल चाहिए, बिजली चाहिए, स्वच्छ पानी चाहिए, आदि। सुरक्षित आवागमन के लिए यातायात सेवा चाहिए जिससे स्वास्थ्यकर्मी और रोगी या ज़ख़्मी लोग बिना विलम्ब स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँच सकें।

यूक्रेन में ऑक्सीजन की कमी

पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अलार्म जारी किया था कि यूक्रेन में ऑक्सीजन की कमी हो रही है। यह ऑक्सीजन की कमी कोरोना वायरस के कारण नहीं है बल्कि रूसी हमले के कारण हुई है। यह ऑक्सीजन की कमी पूरी तरह से टाली जा सकती थी यदि शांति रहती और युद्ध के बजाय संवाद से रूस और यूक्रेन ने अपने मसले सुलझाए होते। सीएनएस (सिटिजन न्यूज सर्विस) की संस्थापिका शोभा शुक्ला ने कहा कि एक ओर सरकारें कहती हैं जन स्वास्थ्य अत्यावश्यक है और सतत विकास लक्ष्य पूरे करने हैं और दूसरी ओर ऐसी स्थिति पैदा कर रही हैं कि लोग गम्भीर खतरा उठाने के लिए मजबूर हैं, प्राणघातक स्थिति में घिर रहे हैं। ऐसे में क्या यूक्रेन-रूस हमले से जान बचा के भागते लोगों से, कोरोना वायरस से बचाव की बात करना कितना बेमायने है – आप स्वयं निर्णय लें। शांति नहीं रहेगी तो न स्वास्थ्य सुरक्षा रहेगी न सतत विकास। बल्कि युद्ध के कारण समुदाय एक लम्बे अरसे तक पीड़ा झेलता है क्योंकि जो भी विकास युद्ध के पूर्व हुआ होता है वह पलट जाता है या ध्वस्त हो चुका होता है।

2016 में रेडक्रॉस के तत्कालीन अध्यक्ष पीटर माउरर ने कहा था कि तब से 3 साल पहले तक 11 देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था के ऊपर 2400 हमले हो चुके थे। सरहद बगैर डॉक्टर (डॉक्टर विदाउट बॉर्डर) की तत्कालीन अध्यक्ष जोआन लियु ने कहा था कि 2016 में सीरिया में 10 दिन के भीतर 300 से ऊपर हवाई हमले हुए थे। उनके अनुसार, अफगानिस्तान, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, दक्षिणी सूडान, सीरिया, यूक्रेन और यमन में स्वास्थ्य व्यवस्था पर बमबारी करना, उनको लूट लेना, या जला के राख कर देना, स्वास्थ्यकर्मी और रोगियों को डराना-धमकाना, और यहाँ तक की रोगियों को उनकी अस्पताल शैय्या पर गोली मार देना रिपोर्ट हुआ था। सबसे महत्त्वपूर्ण बात उन्होंने कही थी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच में से चार स्थायी सदस्य-देश ही इन हमलों के लिए जिम्मेदार रहे हैं।

अब आप ही सोचें यदि वे देश जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं वही युद्ध अपराध करेंगे, तो उनकी जवाबदेही कैसे होगी, युद्ध विराम कैसे होगा? संयुक्त राष्ट्र की ऐसे में क्या भूमिका होनी चाहिए?

हम लोग कैसे भूल सकते हैं कि इजराइल ने गाजा पर हमला करके हज़ारों लोगों को मार डाला था। अमरीका की सेना ने अफगानिस्तान में सरहद बगैर बॉर्डर के अस्पताल पर हमला किया था।

मानवाधिकार के लिए चिकित्सक (फिजिशियंस फॉर ह्यूमन राइट्स) के अनुसार, जब से सीरिया विवाद शुरू हुआ है तब से २250 स्वास्थ्य सेवा केंद्रों पर 360 से अधिक हमले हो चुके हैं। 730 से अधिक स्वास्थ्यकर्मी मृत हो चुके हैं। तब यह हालत थी कि बमबारी और हमलों के कारण आधे से अधिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र बंद हो चुके थे या पूरी तरह से सक्रिय नहीं थे। इसी तरह की तबाही और स्वास्थ्य व्यवस्था को चकनाचूर किया गया था यमन में। 600 से अधिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र बंद हो गए थे – या तो हमले के कारण या स्वास्थ्यकर्मी ही पर्याप्त नहीं थे या दवा आदि की कमी थी।

कुछ महीने पहले तक, अफगानिस्तान में यह हालत थी कि जरूरी जीवनरक्षक दवाएँ खत्म हो गयी थीं और स्वास्थ्यकर्मियों को उनके पदों पर कार्यरत रखना मुश्किल हो रहा था।

इथियोपिया के टिगरे क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं जैसे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन तक को भीतर जाने की अनुमति नहीं मिल रही थी। जुलाई 2021 से वहाँ विश्व स्वास्थ्य संगठन ज़रूरी दवाएँ और स्वास्थ्य सम्बन्धी राहत सामग्री पहुँचवाने के लिए प्रयासरत रहा है पर उसको अनुमति ही नहीं मिल रही थी। यदि स्वास्थ्य अधिकार सर्वोपरि है तो सरकारों को इस पर खरा उतरना पड़ेगा। सरकारों द्वारा लिये गए निर्णय से कोई भी इंसान अनावश्यक पीड़ा न झेले।

हम लोग यह कैसे भूल सकते हैं कि कोविड महामारी के पहले भी, हमारे देशों में आबादी के एक बड़े भाग को ऐसे हालात में रहने पर मजबूर किया गया था कि न तो साफ़ पीने का पानी मुहैया था, न स्वच्छता, न पौष्टिक आहार और न ही स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा। समाज में जो ग़ैर-बराबरी और सामाजिक अन्याय व्याप्त है, उसका अंत किए बिना सबका सतत विकास कैसे मुमकिन है?

शांति और युद्ध विराम के बिना न सिर्फ स्वास्थ्य अधिकार बल्कि सतत विकास और मानवाधिकार की सभी बातें बेमायने हैं। संयुक्त राष्ट्र को अधिक प्रभावकारी भूमिका में आना ही होगा जिससे कि युद्ध जैसी वीभत्स स्थिति कहीं भी उत्पन्न ही न हो।

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