घुसपैठिया घोषित होने पर डेढ़ साल हिरासत में, फिर मिला भारतीय होने का दर्जा

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29 अप्रैल। नूर और सहेरा हुसैन ने असम में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के लिए एक डिटेंशन सेंटर में 18 महीने बिताए। सहेरा ने अपने दो नाबालिग बच्चों को जेल जैसी सुविधा में अपने साथ रखा। एक साल के बाद से वे वास्तविक भारतीय नागरिक पाए गए और रिहा हुए, वे अपने जीवन के पुनर्निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हजारों लोगों ने इसी तरह असम के डिटेंशन सेंटरों को छोड़ दिया है, या एक ट्रिब्यूनल के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो अभी भी बेदखली और राज्यहीनता के डर से प्रभावित हैं।

फरवरी, 2022 की सर्द सुबह में नूर हुसैन ने एक बड़ा बैग खोला, जिसमें दस्तावेजों का ढेर था। 38 वर्षीय नूर ने अपनी 27 वर्षीय पत्नी सहेरा बेगम की ओर देखते हुए कहा, “मैं तुम्हें वे सभी दस्तावेज दिखा सकता हूँ, जो हमें मिले हैं। जो यह साबित करते हैं, कि हम भारतीय हैं।”

उनके दो बच्चे असम की राजधानी शहर के एक उपनगर नरेंगी में एक कमरे की टिन की झोंपड़ी में लकड़ी के सिंगल बेड पर बैठे थे। उन्हें गुवाहाटी से 134 किलोमीटर पश्चिम में गोलपारा जिले के एक डिटेंशन केंद्र से रिहा हुए एक साल से अधिक का समय हुआ था, जहाँ उन्हें इस आधार पर 18 महीने तक रखा गया था, कि वे अवैध बांग्लादेशी आप्रवासी थे।

जब नूर और सहेरा को गिरफ्तार किया गया, तो उन्हें अपने दो बच्चों, जिनकी उम्र अब 8 और 9 वर्ष थी, को अपने साथ ले जाने के लिए मजबूर किया गया था। सहेरा ने कहा, “हम उन्हें अकेला छोड़ने से डरते थे।”

राज्यविहीनता की स्थिति का सामना करते हुए अपने बच्चों के साथ लंबे समय तक नजरबंदी का भय अब उनके पीछे था, लेकिन हुसैन और सहेरा अभी भी अपने जीवन को एकसाथ जोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे थे। जब article-14 ने दंपती से संपर्क किया, तो उन्होंने अपने बड़े बेटे को एक स्कूल में फिर से दाखिला कराने में चुनौतियों का सामना करने की बात कही, जहाँ से उन्हें उस बच्चे को बाहर निकालना पड़ा।

उनकी यह दुर्दशा कोई इकलौती कहानी नही है, बल्कि असम में नागरिकता के मुद्दों में उलझे हजारों लोगों की दुर्दशा की कहानी दर्शाती है। जब अगस्त 2019 में असम का अद्यतन राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर प्रकाशित हुआ, तो 19 लाख लोगों को सूची से बाहर कर दिया गया, और लोगों को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ा। एनआरसी भारतीय नागरिकों का एक रजिस्टर है, जो उस वर्ष की जनगणना के बाद 1951 में पहली बार असम में प्रकाशित हुआ था।

(Article-14.com से साभार)

अनुवाद : अंकित कुमार निगम

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