साधारण का संताप और संघर्ष

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— विमल कुमार —

न दिनों हिंदी की दुनिया में गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ की बड़ी चर्चा है और अब यह चर्चा भी एक विवाद में तब्दील हो गयी है। हिंदी के कई लेखक, लेखिका के गद्य में नए प्रयोग की बड़ी तारीफ कर रहे हैं तो दूसरी तरफ कुछ लोग हैं जो उनके इस प्रयोग को उपन्यास की गति में बाधक बता रहे हैं। कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि लेखिका को ठीक से हिंदी लिखनी नहीं आती, उनके वाक्य विन्यास भी गलत हैं और उनका यह प्रयोग तथा शिल्प उनके कथ्य को पूरी तरह से उभरने नहीं दे रहा है।

यहां खाकसार का मन्तव्य गीतांजलि श्री की आलोचना करना या उनमें खामियां दिखाना नहीं बल्कि इस बात को रेखांकित करना है कि साहित्य में प्रयोग होते रहना चाहिए पर यह प्रयोग तभी तक उचित है जब तक वह रचना की गति में बाधा न बने और कथ्य को सम्प्रेषित होने में अड़चन न पैदा करे। शायद यही कारण है कि हिंदी की दुनिया में शुरू से ही कुछ ऐसे लेखक रहे हैं जिन्होंने अपने कथा साहित्य में प्रयोग की बजाय अपने कथ्य पर अपना अधिक ध्यान केंद्रित किया है या कथा साहित्य में उन्होंने अपनी भाषा और शिल्प का जो प्रयोग किया है, वह आरोपित नहीं लगा बल्कि वह उस रचना का स्वाभाविक हिस्सा नजर आया। शिवपूजन सहाय, जैनेंद्र, रेणु, कृष्णा सोबती, निर्मल वर्मा, काशीनाथ सिंह आदि ने कथा साहित्य में जो प्रयोग किये वे उनके कथ्य में बाधक नहीं बने।

रश्मि शर्मा

हिंदी में प्रेमचंद, अमरकांत, यशपाल, भीष्म साहनी से लेकर स्वयंप्रकाश, संजीव, उदय प्रकाश जैसे लेखकों की एक लंबी फेहरिस्त है जिन्होंने हमेशा अपने कथा साहित्य में कथ्य को सर्वोपरि रखा लेकिन दूसरी तरफ कुछ ऐसे लेखक भी हैं जिन्होंने अपने कथा साहित्य में प्रयोग पर अधिक बल दिया चाहे विनोद कुमार शुक्ल हों या कृष्ण बलदेव वैद या प्रियम्वद, जिसका नतीजा यह हुआ कि हिंदी का आम पाठक उनसे जुड़ने में सफल नहीं हो पाता है। साहित्य में आम पाठकों को जोड़ने के लिए यह आवश्यक है कि हम कथानक को विरूपित न कर दें, भाषा का केवल चमत्कार न पैदा करें।

इस दृष्टि से देखा जाय तो युवा कथाकार रश्मि शर्मा का नया कहानी संग्रह बंद कोठरी का दरवाजा आकर्षित करता है क्योंकि उसमें भाषा व शिल्प का कोई प्रपंच नहीं है, उसमें उसका प्रदर्शन नहीं है और उसमें कथ्य को अधिक महत्त्व दिया गया है। रश्मि की कई कहानियों में कई स्थलों पर उनकी भाषा बहुत सुंदर और काव्यात्मक भी हो जाती है और उसका शिल्प भी आकर्षित करता है लेकिन रश्मि शर्मा ने हर कहानी में अपने कथ्य को ही उभारने का प्रयास किया है।

रश्मि के इस संग्रह में कुल 12 कहानियां हैं जिनमें पहली कहानी ‘महा श्मशान में राग विराग’ अपने प्रभावशाली अंदाज में पाठकों को बांधे रखती है। यह प्रेम की एक बहुत ही सुंदर और उदात्त कहानी है। यह कहानी बचपन के प्रेम की स्मृति से शुरू होकर जीवन और मृत्यु के द्वैत के बीच एक दार्शनिक कहानी भी बन जाती है लेकिन इस कहानी के रूपांतरण की प्रक्रिया इतनी सहज और सरल है कि लेखिका कब अपने पाठकों को एक दुनिया से निकालकर दूसरी दुनिया में पहुंचा देती है, पता ही नहीं चलता है। यह नायिका के मन के भीतर चलनेवाली एक कहानी है जो पाठकों को अनुभूति के स्तर पर इस तरह स्पर्श करती है कि उन्हें उसका अपना हिस्सा बना लेती है। कहानी में नदी, नाव और रेत के बीच स्मृतियों का एक पुल है जो कहानी के बीच एक अंतःसूत्र का काम करता है और प्रेम की उदात्तता को राग विराग के द्वैत में ले जाता है और इस तरह प्रेम के बारे में दार्शनिकता के भाव को जगाता है। यह कहानी अपनी भाषा और कला में सबसे उत्कृष्ट कहानी है यद्यपि इसमें थोड़े विस्तार को कम किया जा सकता था।कहानी थोड़े संपादन की मांग करती है पर कहानी का अंत बहुत दिव्य है।

रश्मि अपनी प्रेम कहानियों में अधिक इन्वॉल्व नजर आती हैं।यह उनका भोगा हुआ अनुभव प्रतीत होता है और शायद इसलिए ये बहुत ही स्वाभाविक ढंग से लिखी गयी हैं। ‘मैंग्रोव वन’ उनकी ऐसी ही कहानी है हालांकि इसमें एक तरह की भावुकता और रूमानियत अधिक हावी है पर यह भी जीवन का हिस्सा है। महाश्मशान में राग विराग के उलट है यह कहानी क्योंकि इसमें सूक्ष्म और स्थूल प्रेम दोनों है।

तीसरी लाजवाब कहानी ‘हादसा’ है जिसमें लेखिका ने एक बच्ची के साथ हुई दुर्घटना के माध्यम से स्त्रियों के खिलाफ समाज में फैल रही यौनहिंसा का बहुत ही भयावह वर्णन किया है। इस कहानी में कहानीकार की संवेदनशीलता बहुत ही सूक्ष्म है और उसने बड़े ही कलात्मक ढंग से परिस्थितियों का चित्रण किया है जिसका बहुत ही गहरा असर पाठकों पर होता है।रश्मि मूल रूप से प्रेम की कहानियां लिखती हैं पर वह सामाजिक रूप से जागरूक कथाकार भी हैं और समाज में हो रही घटनाओं पर नजर रखती हैं। यहां मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी ‘लीलण’ याद आती है जो इसी तरह के हादसे की अगली कड़ी है और वह अधिक भयावह घटना है।

रश्मि ने बाल मनोविज्ञान को बखूबी पकड़ा है और यह अन्य सामाजिक कहानियों की तुलना में अधिक कसी हुई कहानी है।

रश्मि की कहानियों में एक गहरी संवेदनशीलता और मानवीयता तथा करुणा भी बिखरी पड़ी है। ‘उसका जाना’ एक ऐसी ही कहानी है जिसमें कैंसरग्रस्त मां के जीवन मरण के संघर्ष और परिवार के सदस्यों पर उसके असर को चित्रित किया गया है। यह कहानी पढ़कर प्रियदर्शन की मां पर लिखी गयी कहानी और प्रियंका ओम की कैंसर पर लिखी कहानी याद आती है।

रश्मि की एक कहानी विक्षिप्त ससुर पर है जो मानसिक रूप से बीमार है। कहानी की नायिका सोनल के मन पर अपने ससुर के अजीबोगरीब व्यवहार का बहुत बुरा असर पड़ता है।रश्मि ने सोनल और पिता दोनों के मनोविज्ञान को बखूबी पकड़ा है लेकिन इससे परिवार में एक तनाव और त्रासदी भी पैदा होती है। मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपनी एक कहानी में पिता के असामान्य यौनिक व्यवहार पर एक जबरदस्त कहानी लिखी है, रश्मि की कहानी पढ़कर वह कहानी याद आती है।

रश्मि ने कुछ स्त्री चरित्रों पर भी अच्छी कहानियां लिखी हैं। ‘चार आने की खुशी’ एक ऐसी ही कहानी है जो एक विधवा स्त्री के बड़े संघर्षपूर्ण जीवन पर है जिसमें वह स्त्री करुणा और दया का पात्र बन गयी है पर उसका स्वाभिमान उसे बचाये रखता है और वह किसी के सामने हाथ नहीं फैलाती। रश्मि ने अपनी कहानियों में साधारण पात्रों की असाधारणता पर उंगली रखी है और उन्हें एक ऊंचा दर्जा दिया है।

‘मनिका का सच’ एक डायन पर लिखी गयी कहानी है। यह डायन शब्द ही पितृसत्ता का दिया शब्द है। हर डायन की कहानी के सच की तरफ कोई नहीं देखता पर रश्मि की निगाह वहां तक गयी है। वह मोनिका के सच को बताकर समाज को ही नंगा करती हैं।

रश्मि ‘नैहर छुटल जाए’ और ‘जैबौ झरिया लैबौ सड़िया’ कहानी में स्त्री को अपने अधिकार से वंचित किये जाने का मुद्दा भी उठाती हैं। उनकी नायिकाएँ संघर्ष करती हैं और जीवन भर अपने अधिकार के लिए लड़ती हैं।

उनकी सीता द्वारा पिंडदान किये जाने को लेकर अद्भुत कहानी ‘निर्वसन’ है जो मिथकीय चरित्र को नए रूप में पेश करती है।रश्मि को चाहिए कि वे ऐसी स्त्री चरित्रों की एक शृंखला पेश कर आधुनिक अर्थों की कहानियां लिखें।

रश्मि की कहानियों में विषय की विविधता भी है और वह स्त्री के दुख का दस्तावेज भी बनाती हैं लेकिन उनके पात्र झुकते नहीं भले ही उन्हें जीवन भर अकेला ही क्यों न रहना पड़े, जैसा कि अंतिम कहानी ‘बन्द कोठरी का दरवाजा’ में हुआ।उस कहानी की नायिका को जब पता चलता है कि उसका पति समलैंगिक है तो वह दूसरा विवाह न कर जीवन भर अकेले रहने का फैसला करती है।

रश्मि प्रेम और मानवीय रिश्तों के मनोभाव से लेकर स्त्री के अधिकारों की लड़ाई का कैनवास अपनी कहानियों में बनाती हैं। उनकी भाषा थोड़ी और मंज जाए और शिल्प चमक जाए तथा सम्पादन चुस्त हो जाए तो वह अग्रिम पंक्ति की कहानीकार हो सकती हैं।

पुस्तक : बन्द कोठरी का दरवाजा
लेखक : रश्मि शर्मा
प्रकाशक : सेतु प्रकाशन, सी-21, सेक्टर 65, नोएडा-201301
ईमेल- [email protected]
कीमत : 260

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