1. हंसों के साथ
हंसों के साथ
कुछ देर उड़ लेने से
कौवा हंस नहीं हो जाता
कौवा भी यह बात
अच्छी तरह जानता है
कौवे का होना हंस होना नहीं है
धरती पर होती हैं
कितनी वासनाएं
कितनी कामनाएं
कितनी तृष्णाएं
कौवे को उन सबको चुगना है
कितनी मैल जमा होती रहती है
उनको निपटाना है
जमीन को
हंसों के उतरने लायक बनाना है
बनानेवालों ने बना दिया
यह मुहावरा – ‘कौवा चला हंस की चाल’
लेकिन कौवे की विवशता है
और जिम्मेदारी भी
कि वह शुभ्र, धवल हंसों के साथ
उनकी तरह दूर तक,
देर तक नहीं उड़ता रह सकता
2. घर में होना
क्योंकि एक घर है
जिसके लिए हम
निकलते हैं बाहर
घर ही है कि जहां, जिसके लिए
लौटना होता है
जो घर से नहीं निकल सके
उन्होंने घर को ही संसार माना
जिन्होंने घर को नहीं माना
उन्होंने संसार को ही घर बना लिया
दुनिया में होना
आखिरकार घर में होना है
*
जो घर में रहो तो
घर काटने दौड़ता है
जो घर से भागो तो
घर पीछा करता रहता है –
कष्ट में, त्राण में
जप में , ध्यान में
मान-अपमान में..
घर पिंड नहीं छोड़ता
हम, जो जीव हैं
घर ही का तो चक्कर काटते रहते हैं
जीवन भर
और जो परिक्रमा पथ से छूटे
तो हुए विलीन अनंत ब्रह्माण्ड में..!
*
जब हम अपनी दुनिया बनाते हैं
तो सबसे पहले
अपना घर बसाते हैं
यों यह धरती हम सबका घर –
चौरासी लाख योनियों का घर
चाहे बाम्बियां हों या घोंसले
बिल हों, ढूहें हों या मांदें
गुफा-गह्वर या कोटर हों
या कच्चे-पक्के मकान –
घर बनता है
मिलन और साहचर्य से
ध्वनियों और गंधों से
दरस और परस
आशा और विश्वास से
प्रेम और त्याग से
अपने घर में होने का अर्थ है
सृष्टि का वत्सल भाव में स्थित होना!
3. ‘उस युग के मित्र’
मित्र को किसी मित्र से
मित्र का हाल मालूम होना था..!
मित्र किसी मित्र से
पूछ रहे थे मित्र की इन दिनों की व्यस्तताओं,
नई अभिरुचियों के बारे में
जो किसी और मित्र से पूछ बताने का
वादा कर रहे थे
मित्र ही थे जो मित्र की
बदलती सोच व स्वभाव
और पॉलिटिकल स्टैंड पर
मित्र की राय जानना चाहते थे
अपनी शिकायत दर्ज करने के अलावा
मित्र का दुख
मित्र तक नहीं पहुंचता था
कम से कम सीधे तो नहीं
फिर दुःख की असलियत
और दुःख की दवा की चर्चा
मित्र के मित्र आपस में करते थे
मित्र संवाद में नहीं
शुभकामना में रहना चाहते थे
मित्रता से परिपूर्ण और धन्य
एक युग की कथा है यह
जिसे आनेवाले युगों में
लोग ध्यान धरकर सुनेंगे
और सोचेंगे कि गनीमत है
इस युग में मित्र नहीं हैं।