23 जुलाई। देश में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब केंद्र सरकार सबका साथ का नारा लगाती है और भारत में एससी/एसटी की सुरक्षा के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम मौजूद है। बावजूद इसके अनुसूचित जाति और जनजाति पर अपराध के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। केंद्र सरकार ने खुद आँकड़ों के साथ इसकी जानकारी दी है। एससी पर अत्याचार करने में यूपी और बिहार तो एसटी पर अत्याचार करने में एमपी और राजस्थान सबसे आगे हैं।
केंद्र सरकार की तरफ से लोकसभा में पेश आँकड़ों से पता चला है, कि साल 2018 से 2020 के बीच देश में अनुसूचित जातियों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध बढ़ा है। मंगलवार को गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा ने सांसदों द्वारा पूछे गए सवालों के लिखित जवाब में यह जानकारी दी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से बताए गए आँकड़ों के मुताबिक, साल 2018 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के 42,793 मामले दर्ज हुए थे। 2020 में यह आँकड़ा 50,000 के पार पहुँच गया। इसी अवधि में अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध के मामले 6,528 से बढ़कर 8,272 हो गए। अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश और बिहार में दर्ज हुए हैं। साल 2018 में यूपी में 11,924 और बिहार में 7061 मामले दर्ज हुए थे। 2019 में यूपी में 11,829 और बिहार में 6,544 मामले दर्ज हुए। 2020 में यूपी में 12,714 और बिहार में 7,368 मामले दर्ज हुए।
आदिवासियों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश और राजस्थान में दर्ज हुए हैं। साल 2018 में एमपी में 1,868 और राजस्थान में 1,095 मामले दर्ज हुए थे। 2019 में एमपी में 1,845 और राजस्थान में 1,797 मामले दर्ज हुए. 2020 में एमपी में 2,401 और राजस्थान में 1,878 मामले दर्ज हुए। गृह मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों में यह भी बताया गया है, कि कितने मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई है और कितने मामले लंबित हैं। साल 2018 में अनुसूचित जाति के उत्पीड़न के 34,838 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई थी और 16,323 मामले लंबित थे। 2019 में 34,754 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई थी और 19,903 मामले लंबित थे। 2020 में 39,138 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई थी और 19,825 मामले लंबित थे।
आदिवासी महिलाओं पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है। एनसीआरबी के मुताबिक अदालत में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 केस दर्ज हैं जिस पर सुनवाई पूरी हुई लेकिन सजा होने की दर महज 36 प्रतिशत है। एनसीआरबी के ही आँकड़ों के मुताबिक जेलों में बंद कैदियों में अनुसूचित जनजाति के कैदियों की संख्या भी सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में ही है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की बात कही थी। चुनावी सरगर्मियों के बीच भाजपा ने दावा किया था, कि उत्तर प्रदेश में कानून का राज स्थापित हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगल-अलग मंच से लगातार योगी सरकार के कार्यकाल की तारीफ भी कर रहे हैं, मगर इन दावों बीच यूपी में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के जो आँकड़े सामने आए है वह योगी सरकार के कुशासन का बखान करते हैं। आँकड़ों की मानें तो यूपी अनुसूचित जातियों पर अत्याचार करने में अव्वल है। अनुसूचित जाति पर अत्याचार के मामले में यूपी और बिहार आगे हैं। यूपी में बीजेपी और बिहार में भाजपा-जेडीयू गठबंधन की सरकार है। वहीं मध्यप्रदेश में भाजपा और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, जहाँ आदिवासियों का सबसे ज्यादा उत्पीड़न होता है।
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