सूचनाधिकार की सजा, गुजरात में दस लोगों पर लगा आजीवन प्रतिबंध

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10 अगस्त। गुजरात में दस लोगों पर आजीवन आरटीआई दाखिल करने को लेकर प्रतिबंध लगा दिया गया है। गुजरात सूचना आयोग की तरफ से यह कार्रवाई की गई है। आयोग का कहना है, कि इन लोगों ने पिछले 18 महीनों में आरटीआई के जरिए अधिक संख्या में सवाल पूछकर सरकारी अधिकारियों को परेशान किया है। इसी वजह से उनको आरटीआई दायर करने पर आजीवन बैन लगाया गया है। वहीं इस कार्रवाई को लेकर पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा, कि यह आदेश न केवल विवादीय है बल्कि पूरी तरह से अवैध भी है। इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सूचना आयुक्तों ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है, कि उठाए गए विषय पर कोई जानकारी प्रदान न की जाए। उदाहरण के लिए, गांधीनगर के पेथापुर की स्कूल शिक्षिका अमिता मिश्रा ने एक आरटीआई दायर कर अपनी सर्विस बुक और वेतन विवरण की एक प्रति माँगी थी। लेकिन उन्हें आजीवन आरटीआई दाखिल करने से प्रतिबंधित कर दिया गया।

सूचना आयुक्त केएम अध्वर्यु ने जिला शिक्षा कार्यालय और सर्व विद्यालय काडी को कभी भी उनके आवेदनों पर विचार न करने का आदेश दिया। स्कूल के अधिकारियों ने यह शिकायत भी की थी, कि वह प्रति पृष्ठ का आवश्यक 2 रुपये आरटीआई शुल्क नहीं देती हैं और बार-बार वही सवाल पूछती हैं। एक अन्य मामले में पेटलाड शहर के हितेश पटेल और उनकी पत्नी पर आवासीय सोसायटी से संबंधित 13 आरटीआई दाखिल करने के लिए 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। यह देश के इतिहास में पहला मामला है, जब आरटीआई दाखिल करने के लिए जुर्माना लगाया गया। इसी तरह मोडासा कस्बे के एक स्कूल कर्मचारी सत्तार मजीद खलीफा ने उनके संस्थान द्वारा कार्रवाई को लेकर सवाल पूछना शुरू किया तो उन्हें भी आरटीआई दाखिल करने से प्रतिबंधित कर दिया गया।

रिपोर्ट में कहा गया है, कि सूचना आयुक्त अध्वर्यु ने आयोग से सत्तार द्वारा इस बारे में अपील करने का अधिकार भी रद्द कर दिया। अध्वर्यु ने आरोप लगाया, कि सत्तार आरटीआई के जरिये स्कूल से बदला लेने की कोशिश कर कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है, कि आरटीआई के फैसले में यह भी कहा गया है, कि वर्चुअल सुनवाई के दौरान सत्तार ने लोक सूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकरण और आयोग के खिलाफ भी आरोप लगाए थे।

गौर करने वाली बात है, कि बीते जून में गुजरात के गृह विभाग ने एक आरटीआई के जवाब में कहा था, कि आरटीआई आवेदकों को प्रतिबंधित करने का कोई कानून नहीं है। इससे पहले 2007 में गुजरात के मुख्य सूचना आयुक्त दिवंगत आरएन दास ने आरटीआई आवेदकों को ब्लैकलिस्ट करने के आदेशों को निरर्थक बताया था।

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