11 अगस्त। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया है, कि वह आगे से कभी किसी भी झुग्गी बस्ती में तोड़फोड़ करने से पहले दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) से सलाह ले। कोर्ट ने कहा, कि डीडीए का किसी व्यक्ति को रातोरात आवास स्थान से हटाना मंजूर नहीं किया जा सकता। टाइम्स ऑफ इंडिया से मिली जानकारी के मुताबिक जस्टिस सुब्रह्मण्यम प्रसादने शकरपुर स्लम यूनियन की याचिका पर यह आदेश जारी किया। यूनियन ने आरोप लगाया था, कि पिछले साल जून में डीडीए ने बिना नोटिस दिए उनके इलाके में मौजूद 300 झुग्गियों को तोड़ दिया था। इनमें तमाम ऐसे लोग थे जिनकी झुग्गियाँ तोड़ने से पहले उन्हें अपना जरूरी सामान और ऐसे दस्तावेजों तक को समेटने का मौका नहीं दिया गया, जो उनके उस जगह के निवासी होने के दावे को सत्यापित करने में मदद करते।
पुनर्वास के साथ की मुआवजे की माँग
यूनियन ने कोर्ट से डीडीए को यह निर्देश देने का अनुरोध किया, कि वह तोड़फोड़ से जुड़ी अपनी आगे की कार्रवाई को स्थगित कर दे और जब तक DUSIB की नीति के तहत इलाके का सर्वे और यहाँ रहनेवाले लोगों का पुनर्वास नहीं कर दिया जाता, तब तक इलाके की यथास्थिति बरकरार रखे। DUSIB को यह निर्देश देने की माँग भी उठाई कि वह ‘दिल्ली जे जे स्लम रीहैबिलिटेशन एंड रीलोकेशन पॉलिसी 2015’ के तहत उनका पुनर्वास करे। इसके अलावा प्रभावित लोगों को 1-1 लाख रुपये का मुआवजे दिया जाए।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, कि अजय माकन हो या सुदामा सिंह मामला, उन्हें डील करते हुए इस अदालत ने कभी किसी व्यक्ति को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने का कोई लाइसेंस नहीं दिया। हालांकि यह अदालत मानव समस्या और आश्रय पाने के हक से डील कर रही है, जिसे अधिकार के तौर पर संरक्षित रखना अदालत का कर्तव्य है। खासतौर पर उनके अधिकार को, जिनके पास अपने परिवार और सामान के साथ जाने के लिए कोई जगह नहीं होती, यदि उन्हें आधी रात तोड़फोड़ के अभियान के बाद बेघर कर दिया गया हो तो।
कोर्ट ने कहा, कि अजय माकन मामले में फैसले की व्याख्या इस तरह नहीं की जा सकती, कि DUSIB से अधिसूचित न होने पर भी किसी झुग्गी बस्ती को पुनर्वास का हक होगा। कोर्ट ने हालांकि यह भी कहा, कि वह उन फैसलों में की गई टिप्पणियों को नजरअंदाज नहीं कर सकती। डीडीए को तोड़फोड़ से जुड़ी कार्रवाई करने से पहले DUSIB से सलाह लेनी चाहिए। किसी व्यक्ति के दरवाजे पर देर शाम या तड़के बुलडोजर खड़ा करके उसे वहाँ से हटाया नहीं जा सकता, वह भी बिना नोटिस।
(‘वर्कर्स यूनिटी’ से साभार)
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