बड़े पैमाने पर सरकारी बैंकों का निजीकरण खतरनाक, आरबीआई की केंद्र सरकार को चेतावनी

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20 अगस्त। घाटे में चलने का हवाला देकर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के जारी निजीकरण के बाद अब मोदी सरकार सरकारी बैंकों की संख्या कम करने का हवाला देकर बैंकों का निजीकरण करना चाहती है। इस मामले में अब आरबीआई ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है। आरबीआई ने कहा है, कि बड़े पैमाने पर सरकारी बैंकों का निजीकरण खतरनाक हो सकता है। आरबीआई का कहना है, कि इससे फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो सकता है।

आरबीआई की बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में आगाह करते हुए सरकार को इस मामले में सावधानी से आगे बढ़ने की सलाह दी गयी है। उसका कहना है, कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े पैमाने पर निजीकरण से फायदे से अधिक नुकसान हो सकता है। आरबीआई की बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है, कि निजी क्षेत्र के बैंक लाभ को अधिकतम करने में अधिक कुशल हैं, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में बेहतर प्रदर्शन किया है। मोदी सरकार की सबसे सफल योजनाओं में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर शामिल है। इस स्कीम के तहत नागरिकों को केंद्र सरकार की ओर से कई चीजों पर अलग-अलग रूपों में सबसिडी दी जाती है। इसकी सफलता का श्रेय सरकारी बैंकों को जाता है।

लेख के मुताबिक निजीकरण नई अवधारणा नहीं है। इसके फायदे व नुकसान सभी जानते हैं। पारंपरिक दृष्टि से सभी दिक्कतों के लिए निजीकरण प्रमुख समाधान है, जबकि आर्थिक सोच ने पाया है, कि इसे आगे बढ़ाने के लिए सतर्क दृष्टिकोण जरूरी है। लेख में कहा गया है, “सरकार की तरफ से निजीकरण की ओर धीरे-धीरे बढ़ने से यह सुनिश्चित हो सकता है, कि वित्तीय समावेशन और मौद्रिक संचरण के सामाजिक उद्देश्य को पूरा करने में एक ‘शून्य’ की स्थिति नहीं बने।”

लेख में कई अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा गया, कि सरकारी बैंकों ने कार्बन उत्सर्जन कम करनेवाले उद्योगों में वित्तीय निवेश को उत्प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस प्रकार ब्राजील, चीन, जर्मनी, जापान और यूरोपीय संघ जैसे देशों में हरित बदलाव को प्रोत्साहन मिला है। गौरतलब है, कि सरकार ने 2020 में 10 राष्ट्रीयकृत बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय कर दिया था। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटकर 12 रह गई है, जो 2017 में 27 थी। रिजर्व बैंक ने कहा, कि लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं। ये आरबीआई के विचार नहीं हैं।

लेख में कहा गया है, कि आरबीआई के हस्तक्षेप से मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार घटने की दर में कमी आई है। आरबीआई के वित्तीय बाजार संचालन विभाग के सौरभ नाथ, विक्रम राजपूत और गोपालकृष्णन एस के अध्ययन में कहा गया है, कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण मुद्रा भंडार में 70 अरब डॉलर की गिरावट आई। कोविड-19 के दौरान इसमें 17 अरब डॉलर की ही कमी हुई।

वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस वर्ष 29 जुलाई तक 56 अरब डॉलर की कमी आई है। आरबीआई ने कहा, कि आनेवाले समय में उच्च महंगाई को काबू में लाने के लिए उपयुक्त नीतिगत कदम की जरूरत है। डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा ने लेख में कहा, सबसे सुखद घटनाक्रम जुलाई में महंगाई दर का जून के मुकाबले 0.30 फीसदी नरम होना है।

(MN News से साभार)

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