प्रख्यात अर्थशास्त्री और योजना आयोग के पूर्व सदस्य प्रो. अभिजीत सेन का कल 29 अगस्त की देर रात को हृदयाघात से निधन हो गया। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी स्थित सेंटर फ़ॉर इकनॉमिक स्टडीज़ एंड प्लानिंग में प्राध्यापक रहे अभिजीत सेन (1950-2022) योजना आयोग के साथ-साथ विभिन्न आर्थिक समितियों के सदस्य और अध्यक्ष भी रहे।
वर्ष 1950 में जमशेदपुर में जन्मे अभिजीत सेन ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि हासिल की। जहाँ उन्होंने भारत के आर्थिक विकास और कृषि विषय पर अर्थशास्त्री सूजी पेन के शोध-निर्देशन में काम किया, जो ‘कैम्ब्रिज जर्नल ऑफ़ इकनॉमिक्स’ के संस्थापकों में से एक थीं। वर्ष 1985 में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक नियुक्त होने से पूर्व उन्होंने इंग्लैंड के ससेक्स, कैम्ब्रिज, ऑक्सफ़ोर्ड और एसेक्स यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया। जेएनयू में उन्होंने कृष्णा भारद्वाज, प्रभात पटनायक, उत्सा पटनायक, अमित भादुड़ी, सीपी चंद्रशेखर, जयती घोष जैसे अर्थशास्त्रियों के साथ काम किया।
वर्ष 1997 में अभिजीत सेन कृषि मंत्रालय के कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए गठित आयोग के अध्यक्ष बने। अगले तीन वित्तीय वर्षों में ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने विभिन्न कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ग्रामीण अर्थशास्त्र और कृषि मामलों के विशेषज्ञ रहे अभिजीत सेन दीर्घकालीन खाद्यान्न नीति के निर्माण के लिए गठित समिति के भी अध्यक्ष रहे, जिसने 31 जुलाई, 2002 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रसार और इसे सार्वभौमिक बनाने का सुझाव दिया था। साथ ही, इसमें ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ को एक वैधानिक निकाय बनाने की सलाह भी दी गई थी। वे थोक मूल्य सूचकांक समिति के भी अध्यक्ष रहे, जिसने वर्ष 2008 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
वर्ष 2004 से 2014 तक वे योजना आयोग के सदस्य रहे। बतौर आर्थिक सलाहकार वे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, खाद्य एवं कृषि संगठन, यूनाइटेड नेशंस डिवेलपमेंट प्रोग्राम और एशियन डिवेलपमेंट बैंक आदि से भी जुड़े रहे। वर्ष 2010 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। प्रख्यात अर्थशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में ही अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका जयती घोष उनकी जीवनसाथी रहीं।
जेएनयू के हॉस्टलों में डिनर के बाद होने वाली मीटिंगों में नोटबंदी, मनरेगा, भूमि अधिग्रहण क़ानून, न्यूनतम समर्थन मूल्य और कृषि से जुड़े विविध मसलों पर प्रो. अभिजीत सेन की स्पष्ट और तार्किक बातों को सुनना अर्थशास्त्र की बारीकियों से अनभिज्ञ छात्रों के लिए भी एक अंतर्दृष्टिपूर्ण अनुभव होता। दुर्भाग्य से अब यह अवसर छात्रों को कभी नहीं मिलेगा। प्रो. अभिजीत सेन को सादर नमन!
– शुभनीत कौशिक
(फेसबुक से)
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