लास्ज़्लो क्रस्नाहोरकाई : विनाश के भीतर अर्थ की ज्योति – परिचय दास

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Laszlo Krasnohorkai

Parichay Das

लास्ज़्लो क्रस्नाहोरकाई का साहित्य समकालीन यूरोप के उस मानसिक प्रदेश से जन्म लेता है जहाँ समय थम-सा गया है और मनुष्य अपनी ही बनाई हुई सभ्यता के मलबे में अर्थ खोज रहा है। 2025 में स्वीडिश अकादमी ने उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार देकर यह स्वीकार किया कि कला अब भी अंधकार में एक झिलमिलाती ज्योति हो सकती है। उनके लेखन में प्रलय कोई बाहरी घटना नहीं, एक आंतरिक अनुभव है — जैसे मानव-आत्मा की शिराओं में धीरे-धीरे जमती हुई बर्फ।

उनका उपन्यास Satantango इस दृष्टि की पहली अभिव्यक्ति है। एक छोटे-से, कीचड़ में डूबे गाँव में घटती घटनाएँ — जहाँ लोग अपने उद्धार की प्रतीक्षा करते हैं, पर उन्हें केवल छल मिलता है — आधुनिक समाज की सार्वभौमिक स्थिति बन जाती हैं। गाँव की हर आवाज़, हर खिड़की से आती हवा, हर पशु की चाल — सब में निराशा का संगीत गूँजता है। कथाकार सब कुछ देखता है, पर किसी पर दया नहीं करता। उसकी भाषा लंबी साँसों जैसी है — एक वाक्य जो पृष्ठों तक चलता है, मानो लेखक चाहता है कि पाठक भी उसी निःश्वास में डूब जाए जिसमें उसके पात्र हैं। इस उपन्यास में समय एक वृत्त बन जाता है — आगे बढ़ने के बजाय लौटता हुआ, जैसे उद्धार की चाह ही मनुष्य की सबसे बड़ी भ्रांति हो।

The Melancholy of Resistance में यह भ्रांति राजनीतिक रूप लेती है। एक छोटा शहर अचानक एक सर्कस के आगमन से हिल उठता है — एक मृत व्हेल और एक रहस्यमय “Prince of Darkness” के आगमन से लोग अपने भीतर के भय को पहचानने लगते हैं। यहाँ व्हेल सभ्यता का मृत शरीर है, और सर्कस वह तमाशा जिसमें जनता अपने ही पतन से मनोरंजन करती है। Mrs. Eszter और Valuska के बीच का संघर्ष तर्क और निर्मलता का है — जैसे दो अंतर्विरोध एक ही आत्मा में बसे हों। शहर अंततः हिंसा में फट पड़ता है, और केवल आकाश में घूमते तारे बचते हैं, जिन्हें देखने की विरक्ति अब किसी कविता-सी लगती है। यह कथा हमारे समय की राजनीतिक भाषा में पढ़ी जा सकती है, जहाँ भीड़, भय और शक्ति का गठबंधन मनुष्य को भीतर से खोखला कर रहा है।

क्रस्नाहोरकाई की भाषा स्वयं एक प्रतिरोध है। वे वाक्य के भीतर समय को रोक लेते हैं। कोई छोटा वाक्य उनके यहाँ नहीं होता, क्योंकि वे जानते हैं कि मनुष्य की चेतना कभी सरल नहीं होती। उनके गद्य की गति एक नदी की तरह है — कहीं धीमी, कहीं भँवरदार, पर सदैव आगे बढ़ती हुई। अनुवादक George Szirtes और Ottilie Mulzet ने इस कठिन लय को अंग्रेज़ी में रूपांतरित कर साहित्य में एक नई परंपरा रची। उनके अनुवादों में केवल शब्द नहीं, बल्कि ‘साँस’ अनूदित हुई है। यही कारण है कि क्रस्नाहोरकाई के पाठक हर वाक्य के भीतर अपनी खुद की आवाज़ सुनते हैं, जैसे कोई मौन संवाद चल रहा हो।

यह मौन उनके सिनेमा-सहयोगी Béla Tarr के साथ चरम पर पहुँचता है। Tarr की फिल्में — Satantango, Werckmeister Harmonies, The Turin Horse — उनकी रचनाओं की दृश्य प्रतिध्वनि हैं। वहाँ भी गति धीमी है, प्रकाश मंद, और दृश्य इतने लंबे कि समय स्वयं एक पात्र बन जाता है। जब कैमरा बिना कट किए बीस मिनट तक एक दृश्य दिखाता है, तो लगता है जैसे क्रस्नाहोरकाई का वाक्य चल रहा हो। दोनों कलाकार समय को अनुभव में बदलते हैं — एक शब्दों से, दूसरा रोशनी से। The Turin Horse में पिता, पुत्री और एक घोड़े का अंतहीन अंधकार में विलय — वही क्षण है जब भाषा और दृश्य एक हो जाते हैं।

नोबेल पुरस्कार की घोषणा उस कलात्मक प्रतिरोध की स्वीकृति है जिसने सत्ता, बाजार और तमाशे की दुनिया में कला की आस्था को बचाए रखा। हंगरी के वर्तमान राजनीतिक वातावरण में जहाँ स्वतंत्र विचार दमन का शिकार है, वहाँ क्रस्नाहोरकाई का चयन एक प्रतीकात्मक उद्घोष है — कि साहित्य का असली कार्य “मनुष्य को मुक्त करना” है, न कि उसका मनोरंजन करना। वे अपने देश की सत्ता से असहमत रहते हुए भी कोई नारा नहीं देते; वे केवल इतनी गहराई तक उतरते हैं कि सत्य स्वयं बोलने लगे। यही उनकी नैतिकता है, यही उनका सौंदर्यशास्त्र।

क्रस्नाहोरकाई का सम्पूर्ण लेखन एक ही प्रश्न के चारों ओर घूमता है — क्या विनाश के भीतर भी अर्थ संभव है? वे उत्तर नहीं देते, पर यह दिखाते हैं कि अर्थ की खोज ही मनुष्य की अंतिम आस्था है। उनके पात्र असफल होते हैं, भटकते हैं, मरते हैं, पर अर्थ की यह चाह बुझती नहीं। उनकी भाषा में विनाश एक रूपक है — जो हमारे भीतर की थकान, भय और असहायता को रूप देता है। इसीलिए उनके यहाँ निराशा भी एक संगीत है, और मौन भी एक प्रार्थना।

क्रस्नाहोरकाई हमें यह याद दिलाते हैं कि महान साहित्य कभी सरल नहीं होता। वह हमें थकाता है, पर उसी थकान में एक नयी दृष्टि मिलती है। वे आधुनिक यूरोप के ‘अवसादग्रस्त विवेक’ के कवि हैं, जो विनाश को सौंदर्य में, और सौंदर्य को प्रश्न में बदल देते हैं। उनकी कृतियाँ पढ़ना अपने भीतर उतरना है — जैसे किसी अनंत गलियारे में चलते हुए अपने ही प्रतिध्वनि को सुनना। 2025 का नोबेल पुरस्कार इसी आत्मसंवाद की स्वीकृति है, और यह संदेश कि संसार के शोर में भी भाषा अब भी वह सबसे गहरा मौन है, जहाँ मनुष्य स्वयं को पहचान सकता है।

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यहां लास्ज़्लो क्रस्नाहोरकाई (László Krasznahorkai) के प्रसिद्ध उपन्यास “Satantango” (सैतानतांगो) से एक अंश का हिंदी रूपांतर प्रस्तुत है~

( इसमें निराशा से झिलमिलाती मानवता का स्वर सहेजा गया है। यह साहित्यिक अनुवाद है, शाब्दिक नहीं — ताकि उनके “धीमे, गाढ़े, दार्शनिक गद्य” का अनुभव हिंदी में मिल सके। )
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“सैतान का नृत्य” — लास्ज़्लो क्रस्नाहोरकाई
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बारिश तीन दिन से लगातार गिर रही थी।
पहले वह केवल आसमान की थकान जैसी थी—धीरे-धीरे झरती हुई, खेतों की नींद में उतरती हुई;
फिर वह एक प्रकार की दंड बन गई—मिट्टी के भीतर तक धँसती हुई, घरों की छतों पर थिरकती हुई, दीवारों की ईंटों को गलाती हुई।
अब गाँव पूरा कीचड़ था—जैसे धरती अपनी देह में पिघल गई हो, और लोग, पशु, हवा—सब एक ही गंध में सड़ने लगे हों।

गाँव का नाम कोई नहीं लेता था।
नाम अब किसी को याद भी नहीं था।
लोग कहते थे—“वहाँ, जहाँ सड़क खत्म होती है और दलदल शुरू होता है।”
वहीं कुछ झोंपड़ियाँ थीं, जिनमें कभी किसान रहते थे, अब केवल इंतज़ार।

सबको लगता था कि कोई आएगा—
इर्श्का कहती थी, “वे जरूर लौटेंगे, जिन्होंने कहा था कि हम सबको फिर उठाएँगे।”
फुताक्का हँसता था—“वे कभी लौटे तो यह दलदल ही उन्हें निगल जाएगा।”
और डॉक्टर, जो अब अपने कमरे से बाहर नहीं निकलता था, दीवार के पार से सब सुनता और अपनी डायरी में लिखता—
“मनुष्य, जो इंतज़ार करता है, धीरे-धीरे अपने ही सड़ते हुए विचारों की गंध में बदल जाता है।”

उसके कमरे में खाली बोतलें थीं—कुछ वाइन की, कुछ दवा की।
खिड़की पर बैठी बिल्ली कभी-कभी बारिश को घूरती, फिर सो जाती।
डॉक्टर का चेहरा अब सिर्फ एक छाया था, एक भारी सांस की तरह,
जिसे कोई शब्द नहीं, केवल सन्नाटा थामे था।

गाँव के बीच में, टूटी हुई शराब की दुकान के सामने, आज भी वही लोग थे।
वे हर दिन वहाँ आते थे—सिर्फ यह देखने कि क्या कुछ बदल गया है।
कोई नहीं बदला था।
समय भी नहीं।
केवल कीचड़ की परत मोटी हो गई थी, और चेहरे थोड़े और धुंधले।

एक दिन दूर से घोड़ागाड़ी की आवाज़ आई।
पहले किसी ने विश्वास नहीं किया।
फिर सब दौड़े—गले तक कीचड़ में डूबते हुए, पर आँखों में एक चमक थी।
“वे लौट आए हैं!”—किसी ने कहा।
पर जब गाड़ी पास आई, उसमें सिर्फ धूल से लिपटा एक आदमी था—
उसका नाम ईरिमीआ था।
कभी वह नेता था—या शायद केवल एक भ्रम।

वह मुस्कुराया, बोला—
“मैं आया हूँ तुम्हें फिर से खड़ा करने। जो गिर गया है, उसे फिर से उठना है। जो नष्ट हुआ है, वह नई शुरुआत है।”

लोगों ने विश्वास किया।
क्योंकि उनके पास विश्वास के अलावा कुछ बचा ही नहीं था।
ईरिमीआ ने कहा—
“कल सुबह हम नया काम शुरू करेंगे। हम इस दलदल से बाहर निकलेंगे।”

रात में सबने सपना देखा—कि वे किसी उजले खेत में चल रहे हैं, हवा में धान की गंध है, और आसमान साफ़ है।
लेकिन सुबह जब आँख खुली, दलदल वही था, और बारिश फिर शुरू हो गई थी।

ईरिमीआ कहीं नहीं मिला।
कहते हैं, वह अकेले पश्चिम की ओर चला गया था,
जहाँ कहा जाता है कि दुनिया खत्म हो जाती है और केवल धुंध बचती है।

डॉक्टर ने अपनी डायरी में आखिरी पंक्ति लिखी—
“मनुष्य बार-बार उठने का स्वप्न देखता है, पर उसका भाग्य गिरना है;
क्योंकि उसके भीतर जो रोशनी है, वही उसकी अंधकार का स्रोत है।”

फिर वह भी गायब हो गया।
केवल बिल्ली रह गई—और वह गंध,
जो अब बारिश से नहीं, मनुष्य की थकान से आती थी।

और गाँव?
गाँव अब कोई जगह नहीं रहा—
वह केवल एक प्रतीक्षा थी, जो खुद अपने अंत का इंतज़ार कर रही थी।
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कहानी की पृष्ठभूमि और शैलीगत अर्थ
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क्रस्नाहोरकाई की रचनाएँ इस तरह की धीमी गति से चलती हैं — जहाँ कथानक से अधिक वातावरण, घटना से अधिक प्रतीक्षा, और संवाद से अधिक मौन महत्त्व रखता है।

उनके यहाँ गाँव या पात्र केवल प्रतीक हैं—

गाँव एक मरता हुआ सभ्य समाज है।

बारिश अंतहीन पतन की चेतना है।

ईरिमीआ झूठे उद्धारक का प्रतीक है।

डॉक्टर आधुनिक व्यक्ति का, जो सब देखता है पर कुछ करता नहीं।

यह सब मिलकर “सैतान का नृत्य” रचते हैं—
एक ऐसा नृत्य, जिसमें हर कोई गिर रहा है, पर गिरना ही उनका एकमात्र आंदोलन है।

क्रस्नाहोरकाई की भाषा वाक्यों के प्रवाह में चलती है,
जैसे एक नदी जो खुद से ही बहती है,
और जिसमें हर शब्द अपनी मृत्यु की ओर बढ़ता है।

उनका साहित्य किसी “कहानी” का नहीं,
बल्कि “मनुष्य की असफलता” का इतिहास है—
जहाँ नर्क बाहर नहीं, भीतर है।


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