असत्य के प्रयोग

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स्केच : अक्षय अमेरिया

— पाइक कुमार —

हात्मा गांधी की आत्मकथा का नाम है ‘सत्य के प्रयोग’। सत्य की महिमा से हमारे शास्त्र भरे पड़े हैं। सारी दुनिया में सदियों से सत्य के बारे में लिखा जाता रहा है। सत्य की खोज की जाती रही है। सत्य को जान या पा लेने के दावे भी किए जाते रहे हैं। लेकिन झूठ उपेक्षित रहा है। झूठ पर भी बात होनी चाहिए।

आज हम कोशिश करते हैं कि झूठ और उसके नाना प्रकार में से कुछ को जानें। इसमें उदाहरण के तौर पर गुजरात के ही एक महामानव को लिया गया है, जो झूठ के क्षेत्र में नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं।

झूठ क्या है

झूठ, असत्य बयान के रूप में दिया गया एक प्रकार का धोखा है। यह ऐसा बयान है जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की नीयत से दिया जाता है। वाक्, लेखन या किसी और तरीके से संप्रेषित किया जाता है।

झूठ बोलने का तात्पर्य कुछ ऐसा कहने, लिखने या संप्रेषित करने से होता है जिसके बारे में कहनेवाला जानता है कि बात गलत है या जिसकी सत्यता पर वह खुद ईमानदारी से विश्वास नहीं करता, उस बात को इस इरादे से कहा जाता है कि सामनेवाला व्यक्ति उसे सत्य मानेगा।

झूठा व्यक्ति कौन

झूठा व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जो जानबूझ कर झूठ बोल रहा है, या जो आदतन झूठ बोलता रहता है। किसी बात के झूठ होने के लिए सबसे जरूरी तत्त्व है धोखा देने की मंशा। (मैं यहां सिर्फ बोलने का जिक्र कर रहा हूं। लेकिन मेरा अभिप्राय बोलने, लिखने, या किसी भी तरह से अभिव्यक्त करने से है।)

बड़ा झूठ

बड़ा झूठ बोलने के लिए बड़े झूठे की आवश्यकता होती है।

एक झूठा जो टारगेट को छलपूर्वक किसी बात का विश्वास दिलाने की कोशिश करता है वह जानता है कि टारगेट पहले से मौजूद जानकारी या सामान्य ज्ञान के द्वारा सच का पता लगा सकता है। लेकिन ऐसे झूठे को अपनी कला पर पूर्ण विश्वास होता है। वो मानकर चलता है कि टारगेट उसका विश्वास कर लेंगे।

इसका सबसे सटीक उदाहरण है एडोल्फ हिटलर। हिटलर का मानना था ‘जब झूठ बड़े पैमाने फैलाया जाता है, तब वह सफल हो सकता है। इसका कारण यह है कि शिकार यह विश्वास ही नहीं कर पाता है कि कोई झूठ इतने बड़े पैमाने पर गढ़ा जा सकता है।’

बड़े पैमाने पर ऐसे झूठ के लिए इसे सांस्थानिक रूप देना पड़ता है। भारतीय जनता पार्टी का आईटी सेल ऐसे संस्थानों में अव्वल माना जा सकता है जिसमें यह क्षमता है कि वह किसी भी गलत बात को या जाहिराना झूठ को सच बना सकता है। चाहे वो नेहरूजी को खराब चरित्र वाला इंसान साबित करना हो या राहुल गांधी का आलू से सोने वाला बयान। इन्हें विभिन्न रूपों में इतनी बार दोहराया गया कि अब मानो यही सच बन चुका है।

मीठा झूठ

ऐसा झूठ सामान्यतः कम हानिकारक होता है। यह जिससे कहा जाता है उसका मन गुदगुदा जाता है और शिकार से मनमाफिक काम कराया जा सकता है। ‘तुम्हारी आंखें झील सी हैं’ प्रेमी के द्वारा बोला गया यह झूठ असंख्य बार प्रयुक्त हुआ है, लेकिन है बड़ा कारगर। हर बार काम करता है। ऐसे झूठ का प्रयोग चुनावों में धड़ल्ले से किया जाता है। जब बिहार के चुनावी भाषण में प्रधानमंत्री ने यह कहा कि सबसे ज्यादा आईएएस, आईपीएस बिहार से आते हैं तो बिहार की जनता फूली नहीं समा रही थी। अब भला इतना कानों को प्रिय लगनेवाली बात का फैक्ट चेक किया ही क्यों जाए। लोग भूल गए कि वह अब बीते दिनों की बात हो चली है।

छुपाऊ झूठ

छुपाऊ झूठ साधारण प्रकार के झूठ से भिन्न होता है। इसमें बोलनेवाला कुछ जानकारियों का खुलासा करने या कुछ तथ्यों को स्वीकार करने से बचता है। उदाहरण के लिए बेरोजगारी के आंकड़े को छिपा लेना। डिग्री की बात को दबा देना। क्राइम के डाटा को प्रकाशित नहीं होने देना। आदि आदि। अन्य झूठ की तुलना में ‘छुपाऊ झूठ’ को पूर्ण रूप से झूठ नहीं कहा जा सकता, आधुनिक विद्वानों का ऐसा मानना है।

झांसा झूठ

झांसा झूठ का तात्पर्य ऐसा ढोंग करने से होता है कि व्यक्ति के पास वह क्षमता या इरादा है जो वास्तव में उसके पास नहीं होता है। झांसा झूठ धोखा देने की एक सरल प्रक्रिया है। यह झांसा झूठ जब खेलों में प्रयुक्त होता है तो बहुत आनंद देता है पर वास्तविक जीवन में पीड़ादायक हो सकता है। झांसा झूठ का सबसे आम उदाहरण है मोबाइल फोन और इंस्टाग्राम का फिल्टर, जो डरावने थोबड़े को भी ‘अति क्यूट पिक’ बना सकता है। इसका प्रयोग विभिन्न खेलों में भी किया जाता है। उदाहरण के तौर पर रमी में फॉल्स बोलकर विपक्षी को चकमा देना।

ऐसा नहीं है कि झांसा झूठ कोई लो प्रोफ़ाइल झूठ है। इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति तब प्राप्त हुई जब भारत के लोकसभा चुनाव में हर भारतीय को पंद्रह लाख देने की बात की गई। हालांकि बाद में इसे जुमला करार दिया गया। कुछ विद्वानों का मत है कि झांसा झूठ को जुमला झूठ ही कहा जाय। वहीं कुछ का कहना है कि दोनों में थोड़ा अंतर है। खैर, विद्वानों में मतांतर तो होता ही है।

हमारे समाज में इन स्थितियों में, धोखा स्वीकार्य है और आमतौर पर एक रणनीति के रूप में इसका प्रयोग अनैतिक नहीं माना जाता।

सफेद झूठ

सफेद झूठ को कोरा झूठ,  बोल्ड फेस्ड झूठ, साहसिक झूठ आदि नामों से भी जाना जाता है। इसे आमतौर पर पूर्ण विश्वास के साथ सच बोलनेवाले की तरह एक अनुरूप स्वर और उचित बॉडी लैंग्वेज के साथ बोला जाता है। इसका सबसे सटीक उदाहरण है पीएम मोदी का बालाकोट एयर स्ट्राइक को लेकर दिया गया बयान।

उन्होंने कहा था : “मौसम अचानक खराब हो गया था। बहुत बारिश हुई थी। फिर हमारे मन में आया कि इस खराब मौसम में हम क्या करेंगे। संदेह था कि इस मौसम में जा पाएंगे या नहीं जा पाएंगे। उसके बाद एक्सपर्ट्स का ओपीनियन आया कि अगर हम तारीख बदल दें तो क्या होगा। मेरे मन में दो विषय थे। एक गोपनीयता थी और दूसरा, मैंने कहा कि मैं कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो विज्ञान जानता हो। मैंने कहा, इतना अधिक बादल और बारिश हो ही रही है,  तो इसका एक लाभ भी है। क्या हम रडार से बच सकते हैं। मेरा रॉ विजन है कि यह बादल हमें फायदा भी पहुंचा सकता है। सब उलझन में थे कि क्या करें। अंततः मैंने कहा कि बादल हैं… चलो आगे बढ़ें।”

यह बात इतनी सहज भाव-भंगिमा और आत्मविश्वास से कही गई कि जो विश्वास न करे उसे खुद पर ही अविश्वास हो जाए। झूठ के क्षेत्र में इस अमूल्य योगदान ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

काल्पनिक झूठ

काल्पनिक झूठ या वर्चुअल झूठ, झूठ की वह विधा है जिसमें तथ्य के एक भी अंश का सत्यता से कोई लेना-देना नहीं होता। इसके सभी तत्त्व पूरी तरह से मनगढ़ंत होते हैं। सामान्य जन-जीवन में यह विज्ञापनों में प्रयुक्त होता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इसका कभी गंभीर प्रयोग नहीं हुआ है। 2014 के चुनाव से पहले मोदी के बचपन पर आधारित चिल्ड्रेन बुक ‘बाल नरेंद्र’ में इसका प्रयोग देखने को मिला, जिसमें बहादुर बालक और मगरमच्छ का प्रकरण वर्णित है। इसकी आंशिक सत्यता की भी गुंजाइश नहीं है लेकिन वह बच्चा कौन था इसपर गौर करेंगे तो मानना पड़ेगा कि कुछ भी मुमकिन था।

मजाकिया झूठ

यह झूठ बहुत ही हल्का लेकिन बहुत असरकारक होता है। चर्चा के बीच, यूं ही चालाकी से ऐसे झूठ को बातों-बातों में घुसा दिया जाता है। इससे सुननेवाले को पता भी नहीं लगता और बोलनेवाला अपने महामानवीय गुणों के बारे में बता भी देता है। जैसे पीएम मोदी बताते हैं कि पूरा कुर्ता धोना न पड़े इसलिए कुर्ते के दोनों बाजू को काट देते थे। वॉलेट नहीं रखते थे, आदि-आदि। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हो  जो मेहनत या डिटर्जेंट बचाने के लिए पूरा कुर्ता सिला के फिर बाजू काट दे। साधारण मानव या तो आधे बाजू का ही सिलवाएगा या फिर पूरी रहने देगा।

आप पीएम मोदी का उदाहरण बार-बार ले रहा हूं। ऐसा नहीं है कि कोई और  उदाहरण नहीं लिया जा सकता था। ये उदाहरण चुनने के पीछे दो कारण हैं।

एक तो वो हमारे देश के नेता हैं यानी पथ प्रदर्शक। दूसरा,  झूठ की सभी विधाओं के उदाहरण एक ही जगह आसानी से मिल जाएं तो बेकार की कवायद क्यों करें। राजनीति में झूठ का प्रयोग हमेशा से होता आया है लेकिन इसको पूरी तरह से सांस्थानिक रूप देने का श्रेय किसी और को दिया जाय यह उचित नहीं होगा। हामरे देश में सच को झूठ और झूठ को सच में बदलने के लिए काफी संगठित प्रयास किए जा रहे हैं। एक तरफ बीजेपी आईटी सेल इस भूमिका को बखूबी निभा रहा है। वहीं दूसरी तरफ ऑप इंडिया, पोस्टकार्ड न्यूज, शंखनाद, सुदर्शन टीवी और कई अन्य मेन स्ट्रीम मीडिया बहुत ही संगठित और प्रभावी तरीके से झूठे न्यूज के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। एक समय सत्य के प्रयोग से भारत ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा, अब भारत में असत्य के नित अनगिनत प्रयोग सारी दुनिया में चर्चा का विषय हैं।

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