— विनोद कोचर —
इलाहाबाद में 16 से 19 अक्टूबर 2022 को आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में, आरएसएस के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि, “देश में जनसंख्या विस्फोट चिंताजनक है। इसलिए इस विषय पर समग्रता से व एकात्मता से विचार करके सब पर लागू होने वाली जनसंख्या नीति बननी चाहिए। मतांतरण से हिंदुओं की संख्या कम हो रही है। देश के कुछ हिस्सों में मतांतरण की साजिश चल रही है।”
उन्होंने जनसंख्या असंतुलन को विभाजन से जोड़ते हुए ये भी कहा कि “जनसंख्या असंतुलन के कारण कई देशों में विभाजन की नौबत आ गई है। भारत का विभाजन भी जनसंख्या असंतुलन के कारण हो चुका है।”
होसबोले के जरिये आरएसएस ने, पहली बार, भारत के विभाजन का ठीकरा महात्मा गांधी के सिर पर फोड़ना छोड़कर, अब जनसंख्या असंतुलन को विभाजन का कारण बताना शुरू कर दिया है।
आरएसएस न तो उस समय सही था जब वह गांधीजी को भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराता था और न ही अब सही है।
विभाजन तो 1947 में हुआ जबकि आरएसएस का जन्म तो विभाजन से 22 साल पहले ही, मुसलमानों के खिलाफ नफरती विचारधारा की जहरीली कोख से हो चुका था।
आरएसएस अपने ही विरोधाभासी विश्वासों के मकड़जाल में दिन ब दिन, बुरी तरह से फंसता जा रहा है।
अब आरएसएस अगर जनसंख्या असंतुलन को ही विभाजन का कारण मानने लगा है तो फिर उसे, विभाजन पूर्व के अखंड भारत का सपना, देश और दुनिया को परोसने का दोगलापन छोड़ क्यों नहीं देना चाहिए?
क्यों दिखाता है वह अपने मंचों पर अखंड भारत का नक्शा?अखंड भारत को क्या बर्दाश्त भी कर पाएगा आरएसएस?
अभी जब विभाजित भारत की 14 फीसदी मुस्लिम आबादी के बढ़ने के काल्पनिक खतरे मात्र में, आरएसएस को विभाजन का खतरा नजर आने लगा है, तो जरा सोचिए कि भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश के विलय से निर्मित होने वाले उस अखंड भारत की करीब 35 फीसदी मुस्लिम आबादी, क्या आरएसएस के सीने पर सांप की तरह नहीं लोटने लगेगी?
कुल मिलाकर आरएसएस का एकसूत्री एजेंडा यही है कि हिंदुओं को हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की अनमोल विरासत से, विभाजन के खतरे का डर दिखाकर, दूर करते हुए, अधिकतम हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करना और आम जनता का जीना हराम करने वाले मंहगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे मुद्दों से जनता का ध्यान हटाना।
ये एक भारत विरोधी एजेंडा है।