18 सितंबर। नर्मदा बचाओ आंदोलन को चार दशक होने सिर्फ तीन साल बाकी रह गया है। शायद ही देश में कोई और आंदोलन इतने लंबे समय तक चला हो। एक शांतिमय, अहिंसक और अनुशासित आंदोलन ही इतने लंबे समय तक तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए टिका रह सकता है। यों तो नर्मदा बचाओ आंदोलन को एक विफल आंदोलन कहा जा सकता है क्योंकि यह न तो सरदार सरोवर का निर्माण रोक सका न नर्मदा परियोजना के अन्य बांधों का। यहां तक कि सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ाने से रोकने का उसका प्रयास भी नाकाम रहा। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह देश का पहला आंदोलन है जिसने विस्थापन और पुनर्वास के सवाल को बड़े पैमाने पर बहस का विषय बना दिया और विकास नीति के विमर्श को काफी प्रभावित किया। आज हर परियोजना को लेकर विस्थापन का मुद्दा उठाया जाता है और प्रचलित विकास नीति पर सवाल उठते हैं तो इसमें सबसे बड़ा योगदान नर्मदा बचाओ आंदोलन का है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के 37 वर्ष पूरे होने पर मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा बचाओ आंदोलन, संयुक्त किसान मोर्चा, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन,बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ, चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति, बसनिया बांध विरोधी समिति, लिफ्ट एरिगेशन अभियान (मंडला) तथा अन्य संगठनों द्वारा रविवार 18 सितंबर 2022 को शहीद चौक से पुराने कलेक्ट्रेट कार्यालय तक सत्याग्रह यात्रा निकाली गई, जिसमें लगभग 3000 आदिवासी व अन्य लोगों ने सरदार सरोवर बांध के कारण हुई तबाही के खिलाफ एकत्र होकर अपने हक की बात रखी।
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