जल जंगल जमीन की लूट के खिलाफ जन संगठनों की साझा मुहिम

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28 सितंबर। देश के अलग-अलग राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा बड़े स्तर पर भूमि और वन हड़पने के खिलाफ लड़ने के लिए बना एक साझा मंच भूमि अधिकार आंदोलन (BAA) का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन 26 और 27 सितंबर को दिल्ली में कांस्टीट्यूशन क्लब में हुआ। कोविड महामारी के चलते कई सालों से यह सम्मेलन स्थगित था। इस सम्मेलन में में 20 राज्यों के 70 संगठनों के 200 से अधिक नेता और कार्यकर्ता पहुँचे थे। सम्मेलन के बाद नेताओं ने ऐलान किया, कि केंद्र के भूमि अधिग्रहण के असंवैधानिक तरीकों के खिलाफ 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।

इस सम्मेलन में 20 राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, केरल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पंजाब के 70 से ज्यादा जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। भूमि अधिकार आंदोलन के इस राष्ट्रीय सम्मेलन में पूरे देश में चुनिंदा उद्योगपतियों और व्यवसायियों द्वारा स्थानीय लोगों के हाथों से जल, जंगल, जमीन और खनिज जैसी सार्वजनिक संपदा को लूटे जाने का मुद्दा उठा। सदियों से स्थानीय समुदायों के उपयोग में आते रहे इन संसाधनों को खुल्लमखुल्ला चंद लोगों के मुनाफे के लिए दिया जा रहा है।

हन्नान मोल्ला, मेधा पाटकर, उल्का महाजन, प्रफुल्ल सामंत्रे, दयामनी बारला, डॉ. सुनीलम, डॉ अशोक धावले, अरविंद अंजुम, माधुरी, रोमा मलिक, सत्यवान, विजू कृष्णन अन्य लोगों के साथ भूमि और वन अधिकारों के लिए संघर्ष को तेज करने के लिए एकसाथ आए। भूमि अधिकार आन्दोलन की रिसर्च विंग ने पूरे देश में हो रही इस लूट के ऐसे 80 स्थानों का संकलन किया है, जहाँ स्थानीय समुदायों को डरा-धमका कर और उनकी आवाज को अनसुना करते हुए बिना कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए, उनके तमाम संसाधनों को हड़पा गया है, जा रहा है। भूमि अधिकार आंदोलन अपने गठन के साथ ही ऐसे तमाम स्थानीय संघर्षों और प्रतिरोधों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करता आया है। इन 80 स्थानों पर चल रहे प्रतिरोधों के साथ सम्‍मेलन ने एकजुटता जाहिर की और इन संघर्षों को साथ आने का आह्वान किया।

सम्मेलन का उदघाटन करते हुए हन्नान मोल्ला ने कहा, “इस देश के आदिवासियों, किसानों, दलितों और श्रमिकों के अधिकारों पर लगातार चौतरफा हमला हो रहा है। एसकेएम के नेतृत्व में किसान संगठनों द्वारा किए गए लंबे संघर्ष के बाद, सरकार को तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर किया गया था। अब हमारी भूमि, जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों पर लोगों के अधिकारों को बचाने के लिए ऐसी एकता की आवश्यकता है।” मेधा पाटकर ने कहा, “कॉरपोरेट मुनाफाखोरी ने न केवल जमीन और जंगलों पर कब्जा कर लिया है, बल्कि पूरी दुनिया में जलवायु को भी प्रभावित किया है।”

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