1 अक्टूबर। पिछले दिनों समाजवादी समागम की राष्ट्रीय बैठक दिल्ली में साकेत स्थित हिन्दू मजदूर सभा के कार्यालय-भवन के सभाकक्ष में हुई। इस बैठक में प्रोफेसर आनंद कुमार, हिन्द मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू, प्रोफेसर राजकुमार जैन, डॉ रमाशंकर सिंह, विजय प्रताप, आनंद वर्धन सिंह, मंजू मोहन डॉ अनिल ठाकुर सहित समाजवादी समागम के तीस नेताओं ने हिस्सा लिया। दिन भर चली इस बैठक में देश के मौजूदा हालात और देश के सामने उपस्थित चुनौतियों तथा इनसे निपटने के लिए समाजवादी साथियों के प्रयासों व संभावित भूमिका पर विस्तार से विचार विमर्श हुआ। बैठक में एक विकल्प का एक घोषणापत्र स्वीकार किया गया। इसके अलावा, प्रो. आनंद कुमार को एक समग्र पर्चा, जिसमें सभी मुद्दों का समावेश हो, तैयार करने की जिम्मेदारी दी गयी। उस पर्चे के आधार पर समाजवादी समागम के प्रतिनिधि विभिन्न दलों के नेताओं से मिलेंगे और उनसे आग्रह करेंगे कि परचे में प्रस्तुत मुद्दों को वे अपने-अपने चुनाव घोषणापत्र में शामिल करें।
इसके अलावा समाजवादी समागम ने देश के लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए एक आह्वान-पत्र जारी किया है जो इस प्रकार है-
समाजवादी समागम द्वारा राष्ट्रव्यापी अभियान
भारतीय संविधान, सार्वजनिक क्षेत्र बचाने, सांप्रदायिक सद्भाव की रक्षा हेतु समस्त समाजवादी एवं समान विचार वाले नागरिकों से एकजुट होने का आह्वान
साथियो,
भारत की स्वतंत्रता को 75 वर्ष पूर्ण हो गए है, स्वतंत्रता प्राप्ति में श्रमजीवी वर्ग, किसान, युवा एवं महिलाओं, समाज के हर वर्ग का सराहनीय योगदान रहा है जिसके बल पर कभी भी सूर्यास्त न होनेवाले साम्राज्य को पराजित कर भारत एक स्वतंत्र, सार्वभौमिक गणतंत्र बना जिसने संसदीय प्रजातंत्र को अपनाया।
भारत की आम जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप भारत के संविधान का निर्माण किया गया जो विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, इसके अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकार के साथ राज्य के नीतिनिर्देशक तत्त्वों का भी उल्लेख है जो राष्ट्र की भावी दिशा प्रस्तुत करते हैं। कालांतर से समाजवादी नेताओं के निरंतर प्रयास से संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ एवं ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को भी अंगीकृत किया गया।
स्वतंत्रता संग्राम एवं आजादी के बाद समाज के श्रमजीवी, कमजोर (वर्ग), महिला व अन्य संवेदनशील वर्ग के हित संरक्षण हेतु राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, विनोबा भावे, आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, यूसुफ मेहर अली, डॉ. भीमराव आम्बेडकर आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा परंतु विगत 75 वर्षों के दौरान सरकार किसी भी राजनीतिक दल अथवा दलों के गठबंधन की रही हो, सामाजिक एवं आर्थिक असमानता, अन्याय, धर्म, जाति, क्षेत्र के आधार पर भेदभाव, सांप्रदायिकता आदि में गिरावट आने के स्थान पर वृद्धि हुई है। श्रमिक, किसान, युवा, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलित, जनजातीय आदि के हितों की पूर्णतया अनदेखी हुई है, तथा बड़े औद्योगिक घरानों व बहुदेशीय कंपनियों को, विभिन्न प्रकार की रियायतें दी गई हैं। वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण के माध्यम से पूँजीवाद व पूँजीवादी ताकतों को खुली छूट दी गई है।
एक ओर कोरोना काल में लाखों मजदूरों की सेवाएँ समाप्त हो जाने पर उन्हें परिवार सहित सड़कों पर आने को विवश किया गया, दूसरी ओर इसी काल में दो प्रमुख उद्योगपतियों की पूँजी 1,000 करोड़ प्रतिदिन की दर से बड़ी, देश में अरबपतियों की संख्या 100 से बढ़कर 140 हो गई। उद्योगपति अडानी विश्व के दूसरे सबसे अमीर उद्योगपति बन गए, दूसरी ओर आर्थिक तंगी व कर्ज के बोझ से लाखों किसान आत्महत्या को बाध्य हुए। सरकार किसानों के छोटे कर्जे माफ करने को तैयार नहीं पर अपने उद्योगपति मित्र जो आदतन कर्ज चुकाने से बचते हैं उनके लाखों करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया जा रहा है। कुछ उद्योगपति बैंकों को चूना लगाकर, सरकार को ठेंगा दिखाकर विदेशों में आराम से जीवन बिता रहे हैं।
संगठित व असंगठित, कृषि श्रमिकों का शोषण, बढ़ती महँगाई, बेरोजगारी, समाज के हर क्षेत्र में गहरी जड़ें बना चुका भारी भ्रष्टाचार, आदि देश की प्रमुख समस्याएँ हैं। भारत की प्राचीन, समृद्ध, संयुक्त गंगाजमुनी संस्कृति जो आपसी सद्भाव, प्रेम, परस्पर सहयोग पर आधारित है, जिसने भारत को ऐसा गुलदस्ता बना दिया जिससे विभिन्न रंगों एवं सुगंधों के पुष्प एकसाथ अपना जलवा प्रस्तुत करते हैं तथा अनेकता में एकता को प्रमाणित करते हैं, इसको आज गंभीर खतरे के दौर से गुजरना पड़ रहा है। वर्तमान सरकार नागरिकों की ज्वलंत समस्याओं का संतोषजनक जवाब देने की स्थिति में नहीं क्योंकि वह हर मोर्चे पर विफल हुई है। सरकार देश की प्रमुख समस्याओं से जनता का ध्यान हटाकर हिंदू, मुस्लिम, अजान, नमाज, हलाल, हिजाब, 80-20, रामजन्मभूमि, ज्ञानवापी, मथुरा, ताजमहल, कुतुबमीनार आदि पर कट्टरपंथी, दक्षिणपंथी, समूह सत्तासीन लोगों के आशीर्वाद, निर्देशन, प्रोत्साहन से आज समाज को बाँटने का प्रयास कर रहे हैं।
दूसरी ओर सरकार श्रमजीवी वर्ग द्वारा अथक प्रयासों से अर्जित 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को समाप्त कर श्रमिक विरोधी, नियोक्ता समर्थक चार श्रम संहिताएँ श्रमिकों से बिना चर्चा कर वर्तमान केंद्रीय श्रम कानूनों के श्रमिक हितकारी प्रावधानों को संशोधित, शिथिल अथवा समाप्त कर नियोक्ताओं को “इज ऑफ डूइंग बिजनेस”, लचीलापन अथवा तथाकथित श्रमसुधार के नाम से “हायर एंड फायर” में सहायक बन रही है। इसके अतिरिक्त सरकार में पुरानी पेंशन व्यवस्था को समाप्त कर नई पेंशन योजना को मनमाने ढंग से लागू कर दिया गया है, जिससे श्रमिकों में भारी आक्रोश है, देश भर में नवीन पेंशन योजना समाप्त कर पुरानी पेंशन योजना को लागू करने हेतु प्रदर्शन व धरने आदि का आयोजन किया जा रहा है।
कृषि क्षेत्र में किसानों की आमदनी दुगुनी करने का वायदा तो सरकार पूरा नहीं कर सकी पर बिजली की दर बढ़ाकर, उर्वरक के दामों में वृद्धि, वजन में कमी, गन्ने का भुगतान लंबे समय तक रोक कर, तथा एम.एस.पी. पर खरीद सुनिश्चित न करके, किसानों में गंभीर रोष जरूर उत्पन्न कर दिया, इसके अतिरिक्त किसानों से परामर्श किए बगैर अर्थव्यवस्था का प्रमुख क्षेत्र जो देश में 60 प्रतिशत नियोजन उपलब्ध कराता है उस कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश हेतु तीन कृषि कानून बना दिए गए जिनसे किसानों में आक्रोश विकसित हुआ। संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व में किसानों ने अत्यंत शांतिपूर्ण, अनुशासित, धैर्य रखते हुए, एक वर्ष से अधिक समय तक राष्ट्रव्यापी, अहिंसात्मक, आंदोलन किया जिसमें 750 से अधिक किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी। अंततः सरकार को तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेना पड़ा। किसानों के आंदोलन को समाज के हर वर्ग से सहयोग प्राप्त हुआ। केंद्रीय श्रम संगठनों ने संयुक्त मोर्चे के किसान आंदोलन को समर्थन देकर किसान मजदूर एकता का सूत्रपात किया।
भारत सरकार बड़े उद्योगिक घरानों एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारी दबाव में है और निरंतर जनविरोधी नीतियों का अनुसरण कर रही है, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण और अंततः निजी क्षेत्र को बेचने, कोयला, गोदी एवं बंदरगाह, रेल, बैंक, बीमा, दूरसंचार, सड़क परिवहन, हवाई सेवाएँ, हवाई अड्डे, विद्युत उत्पादन, प्रेषण, वितरण आदि में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, “नेशनल मॉनेटाइजेशन पाइप लाइन परियोजना” के अंतर्गत राष्ट्रीय परिसंपत्तियों को कौड़ी के भाव अपनी पसंद के निजी क्षेत्र को बिक्री, आदि।
कोयले में 500 ब्लॉक चिह्नित किए गए हैं, रेलवे में 600 रेलवे स्टेशन निजी क्षेत्र हेतु चिह्नित किए गए हैं, अत्यंत व्यस्त तथा लाभ अर्जित करनेवाले 109 रेलमार्गों पर 150 रेलगाड़ियों का पूर्ण संचालन निजी क्षेत्र को सौंपना, रक्षा क्षेत्र में लंबे समय से कार्यरत 41 आयुध निर्माणीयों जिनमें 80,000 से अधिक कामगार कार्यरत हैं, को बंद करना, रेल, कोयला, गोदी एवं बंदरगाह, हवाई अड्डों, रक्षा प्रतिष्ठानों के आसपास भारी भूखंडों को व्यावसायिक उपयोग हेतु लंबी अवधि के पट्टे पर निजी क्षेत्र को देना आदि प्रमुख श्रमिक, किसान, युवा विरोधी निर्णय है।
शिक्षा व्यवस्था में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना ऐसा निर्णय है जिससे निजी क्षेत्र के शिक्षा संस्थानों भविष्य में भारी फीस के चलते मजदूर, किसान, समाज के दुर्बल वर्ग के बच्चे शिक्षा से वंचित रहे जाएंगे।
देश अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। राजनीतिक लाभ के लिए समाज को धर्म, जाति, क्षेत्र में बाँटने का प्रयास, परस्पर सहयोग, सद्भाव, के स्थान पर एक दूसरे के प्रति नफरत, घृणा को प्रोत्साहित करना, नाम पूछकर अथवा कपड़ों से व्यक्तियों की पहचान करना, गौवंश मांस रखने के शक पर किसी को पीट-पीट कर मार डालना, जाँच के बाद बरामद मांस गौवंश का नहीं निकलना। सम्पूर्ण राष्ट्र में आज धार्मिक उन्माद का वातावरण है, धार्मिक संसदों का आयोजन किया जा रहा है, अल्पसंख्यकों के विरुद्ध शास्त्र उठाने का आवाहन हो रहा है, सत्यमेव जयते को शस्त्रमेव जयते में बदलने की बात की जा रही है। सार्वजनिक रूप से “राष्ट्रीय ध्वज अस्वीकार्य है हमें भगवा झंडा तथा हिन्दू राष्ट्र चाहिए”, ऐसे बयान जारी करना, महिलाओं के विरुद्ध जघन्य अपराधों की निरंतर वृद्धि, अधिकांश में राजनीतिक हस्ती से मजबूत लोगों की संलिप्तता होना, प्रजातांत्रिक मूल्यों, संविधान एवं संवैधानिक संस्थाओं, मूल्यों की अवहेलना, उल्लंघन, संविधान विपरीत कार्य, सरकारी एजेंसी का दुरुपयोग आदि ने राष्ट्र में भय और आतंक का वातावरण बना दिया है। समाज का हर वर्ग आज असंतुष्ट, आक्रोशित, भयभीत, सशंकित तथा उपेक्षित महसूस कर रहा है।
ऐसी अत्यंत असाधारण परिस्थितियों में देश के समाजवादी एवं समान विचारधारा वाले अन्य सभी, कामकाजी, महिला, युवा, किसानों को एकजुट होकर एक बार पुनः हठधर्मी, घमंडी, सत्ता के नशे में चूर राष्ट्र की बहुमूल्य परिसंपत्तियों को बेचने में लगी, कामकाजी वर्ग के अधिकारों पर भयंकर प्रहार करने वाली सरकार की नीतियों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी एकता बनाना व निर्णायक संघर्ष में उतरना समय की पुकार है।
समाजवादी समागम सहित सभी समाजवादी साथी इस प्रयास में लगे हुए हैं और आपके समर्थन, सहयोग का आग्रह करते हैं।