राजमार्ग परियोजना के नाम पर जमीन अधिग्रहण के शिकार किसान दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर

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15 नवम्बर। केंद्र में जब से बीजेपी की सरकार आयी है, तब से राजमार्ग, रेलमार्ग या फिर अन्य परियोजना के नाम पर किसानों की जमीनें यह कहकर एक तरह से छीन ली जा हैं कि जमीन के बदले उनको या तो नौकरी मिलेगी या फिर जमीन का अच्छा मुआवजा मिलेगा। लेकिन आज तक न तो नौकरी मिली और न ही मुआवजा। अच्छा मुआवजा तो दूर की बात है, उनकी जमीन की वास्तविक कीमत तक नहीं मिल पायी है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ का है, जहाँ एयरपोर्ट के नाम पर वहाँ के किसानों की जमीनें हथियाने के चक्कर में सरकार पड़ी है। किसान इसके विरोध में 30 दिनों से अनवरत धरने पर हैं। एक नया मामला मध्य प्रदेश का भी है।

विदित हो, कि मध्यप्रदेश के सागर जिले में केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने भारत के राजपत्र में 25.8 किमी. भूमि अर्जन की अधिसूचना जारी की है। अधिसूचना में राजमार्ग 146 (रिंग रोड 2) के निर्माण हेतु राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 की शक्तियों के तहत 15 गाँवों की जमीन के अर्जन का जिक्र किया गया है। अधिसूचना में यह भी वर्णित है, कि कोई भी भूमि में हितबद्ध व्यक्ति अधिसूचना प्रकाशन के 21 दिन के भीतर अपनी आपत्ति प्रकट कर सकेगा। जिसके बाद 15 गाँवों के लोगों ने अपनी माँगों को लेकर अनुविभागीय, एसडीएम और कलेक्टर जैसे अधिकारियों को सामूहिक और व्यक्तिगत आपत्तियां दर्ज करायी हैं। विरोध की वजह किसानों के घरों और जमीनों पर से राजमार्ग निकालने के अलावा सरकारी जमीन भी एक विकल्प है जिसे नहीं अपनाया जा रहा है।

MN न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन 15 गाँवों की भूमि के अधिग्रहण की घोषणा की गयी है, उनमें अनुसूचित जाति, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग सहित सामान्य वर्ग के भी कुछ लोगों की जमीनें शामिल हैं। यह जमीनें इनकी आजीविका का एकमात्र साधन हैं। प्रस्तावित राजमार्ग की अधिसूचना में मुआवजे का भी कोई उल्लेख नहीं है। अतः किसानों ने आपत्ति दर्ज कराई है। आपत्ति में कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण से ग्रामीण आवासहीन होकर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाएंगे।


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