अमीर-गरीब में बढ़ती खाई को राजनीति का मुद्दा बनाएं

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— योगेन्द्र यादव —

भारत जोड़ो यात्रा से और कुछ हासिल हो या न हो, कम से कम अमीर और गरीब के बीच बढ़ती हुई खाई का सवाल देश के मानस-पटल पर दर्ज हो रहा है। राहुल गांधी ने लगातार गरीबों की दुर्दशा और अमीरों की बढ़ती दौलत का सवाल उठाया है। पहली बार किसी बड़ी पार्टी के नेता ने गौतम अडाणी के दिन दोगुने रात चौगुने फैलते साम्राज्य पर उंगली उठाई है।

पिछले कुछ समय से अर्थशास्त्रियों और विश्व की नामचीन संस्थाओं की रिपोर्टों ने भी इस सवाल को रेखांकित किया है। इन्हें जानना जरूरी है, चूंकि देश में आर्थिक गैरबराबरी का अनुमान एक अखबार पढ़ने वाले व्यक्ति को भी नहीं है। घर में ए.सी. और कार रखने वाला, पचास लाख रुपए के मकान का मालिक और हर महीने एक लाख से अधिक कमाने वाला व्यक्ति अपने आप को ‘मिडल क्लास’ कहता है।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी के निर्देशन में बनी ”वर्ल्ड इनिक्वालिटी रिपोर्ट 2022” भारत की आर्थिक विषमता की तस्वीर पेश करती है। इसके अनुसार 2021 में भारत के हर वयस्क व्यक्ति की औसत आय प्रति माह 17 हजार के करीब थी। लेकिन देश की निचली आधी आबादी की औसत मासिक आय 5 हजार भी नहीं थी, जबकि ऊपर के 10 प्रतिशत व्यक्तियों की औसत मासिक आय 1 लाख के करीब थी। शीर्ष पर बैठे 1 प्रतिशत की प्रतिव्यक्ति मासिक आय लगभग 4 लाख रुपए थी।

अगर आय की बजाय कुल जमा संपत्ति के आंकड़े देखें तो यह गैरबराबरी और भी भयावह है। वर्ष 2021 में देश के औसत व्यक्ति की घर, जमीन और जायदाद कुल मिलाकर लगभग 10 लाख रुपए की थी। नीचे की आधी आबादी के पास कुल जमा संपत्ति की कीमत औसतन 1 लाख रुपए थी, जबकि ऊपर के 10 प्रतिशत व्यक्तियों के पास औसतन 65 लाख की संपत्ति थी, और ऊपर के 1 प्रतिशत लोगों की संपत्ति प्रति व्यक्ति 3.2 करोड़ रुपए थी। देश की आधी आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का सिर्फ 6 प्रतिशत था। जबकि ऊपरी 10 प्रतिशत के हाथ में देश की 65 प्रतिशत संपत्ति थी। देश की एक तिहाई दौलत पर सिर्फ 1 प्रतिशत लोगों का कब्जा है।

इन आंकड़ों से भी देश की गैरबराबरी पूरी तरह समझ नहीं आती। उसके लिए हमें शीर्ष के 1 प्रतिशत से भी ऊपर झांकना होगा। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘फोर्ब्स’ दुनिया के धनाढ्य बिलियनेयर लोगों की लिस्ट छापती है। यानी कि वो लोग जिनकी कुल संपत्ति एक बिलियन यानी 100 करोड़ डॉलर यानी 8000 करोड़ से भी ज्यादा है। इस पत्रिका के अनुसार इस साल अप्रैल तक भारत में 166 ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी घोषित संपत्ति एक बिलियन डॉलर से अधिक है। इसमें अघोषित यानी काले धन का हिसाब नहीं जोड़ा गया है।

अगर केवल एक व्यक्ति यानी गौतम अडाणी की संपत्ति का हिसाब लगाएं तो आज उनकी कुल दौलत कोई 14 लाख करोड़ रुपए के करीब है। यहां गौरतलब है कि जब देश में कोविड और लाकडाउन शुरू हुआ था उस वक्त उनकी कुल संपत्ति 66000 करोड़ थी। यानी पिछले अढ़ाई साल में उनकी संपत्ति में 20 गुना इजाफा हुआ है।

एक सवाल और बचता है। क्या यह गैरबराबरी घट रही है या बढ़ रही है? वर्ल्ड इनिक्वालिटी रिपोर्ट बताती है कि नब्बे के दशक से लेकर अब तक पूरी दुनिया में गैरबराबरी बढ़ी है। भारत में अमीर और गरीब के बीच खाई और भी तेजी से बढ़ी है। कोविड महामारी का दुनिया में गैरबराबरी पर क्या असर पड़ा, इसके आंकड़े हमें विश्व बैंक द्वारा 2022 में प्रकाशित रिपोर्ट से मिलते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक महामारी से पूरी दुनिया में गरीब और अमीर के बीच खाई और ज्यादा चौड़ी हो गयी।

पूरी दुनिया में कोई 7 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिए गए। इनमें से सबसे बड़ी संख्या भारत से थी जहां इस महामारी के चलते 5 करोड़ से अधिक परिवार गरीबी रेखा से नीचे आ गए।

इस आंकड़े को लेकर खूब घमासान हुआ। सरकारी और दरबारी अर्थशास्त्रियों ने इसे झूठा साबित करने की असफल कोशिश की।

सरकार के खासमखास अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने तो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े देकर यह साबित करने की कोशिश की कि मोदी राज में गरीबी घटी है। लेकिन विख्यात अर्थशास्त्री ज्यादा ड्रेज ने पिछले सप्ताह एक लेख लिखकर यह साबित कर दिया कि वे आंकड़े फर्जी थे और भल्ला का दावा गलत था।

दुनिया में बढ़ती गैरबराबरी को रेखांकित करने वाली ये दोनों रिपोर्टें इसे कम करने के तीन उपाय भी बताती हैं। पहला, धन्नासेठों पर संपत्ति टैक्स लगाना। दूसरा, अमीरों पर इनकम टैक्स की दर को बढ़ाना। और तीसरा, गरीबों की आय बढ़ाने के लिए सीधा उन तक कैश ट्रांसफर से पैसा पहुंचाना। गौरतलब है कि आमतौर पर पूंजी का समर्थन करने वाले विश्व बैंक ने भी इन उपायों की सिफारिश की है।

सवाल यह है कि जिस देश में गरीब बहुसंख्यक हों वहां लोकतांत्रिक राजनीति में गरीब-अमीर के बीच खाई का सवाल क्यों नहीं उठता? अमीरों पर टैक्स बढ़ाने के प्रस्ताव पर देश में चर्चा क्यों नहीं होती? गरीबों तक सीधा पैसा पहुंचाने की योजनाएं क्यों नहीं बनतीं? भारत जोड़ो यात्रा में अब तक राहुल गांधी ने बढ़ती विषमता को तो रेखांकित किया है लेकिन उसे कम करने का प्रस्ताव नहीं रखा है। देश को किसी भी नेता से ऐसे किसी प्रस्ताव का इंतजार है।

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