7 दिसंबर। हिंद मजदूर सभा (एचएमएस) के राष्ट्रीय महासचिव हरभजन सिंह सद्धू ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ के महानिदेशक गिल्बर्ट होंगबो को एक पत्र लिखकर कहा है कि हमारे लिए मजदूरों का हित सर्वोपरि है। दुनिया कई चुनौतियों के साथ अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। कामगार तबका, समाज का सबसे कमजोर तबका है। गरीबी और भुखमरी बढ़ रही है। अमीरों और गरीबों के बीच खाई लगातार बढ़ रही है। खासतौर पर भारत एक ऐसा देश है, जहाँ कोविड 19 महामारी के दौरान अरबपतियों की संख्या 100 से बढ़कर 140 हो गई। जबकि इसी दौरान सभी उद्योग, सरकारी और निजी प्रतिष्ठान महीनों के लंबे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण बंद थे, दूसरी ओर लाखों नागरिक बेरोजगार थे, उनके पास अपने परिवार को पालने के लिए पैसे नहीं थे।
सिद्धू ने अपने पत्र में कहा है कि केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारें बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े कॉरपोरेट घरानों के गंभीर दबाव में आकर श्रमिक विरोधी कार्यों में लिप्त हैं। इसी कड़ी में बीजेपी की नेतृत्व वाली मौजूदा केंद्र सरकार ने 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को खत्म कर दिया है, और चार लेबर कोड बनाए हैं जो श्रमिक-विरोधी हैं। भारत सरकार ने “राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन परियोजना” के तहत सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र का निगमीकरण, निजीकरण और बिक्री की है, इसने देश की मेहनत की कमाई “राष्ट्रीय संपत्ति” को अपनी पसंद के निजी कंपनियों को औने-पौने दामों पर बेचने का फैसला किया है। रेल, सड़क परिवहन, राजमार्ग, बंदरगाह, रक्षा उत्पादन और अनुसंधान, बिजली उत्पादन आदि देश का कोई भी सार्वजनिक प्रतिष्ठान इससे अछूता नहीं है।
उन्होंने आगे कहा, कि भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का संस्थापक सदस्य होने के नाते विभिन्न सम्मेलनों, सिफारिशों, घोषणाओं, प्रोटोकॉल आदि को अपनाने में सक्रिय रहा है। लेकिन भारत सरकार आईएलओ घोषणा, काम का अधिकार-1998, आईएलओ शताब्दी घोषणा-2019, सतत विकास लक्ष्यों और अन्य प्रोटोकॉल आदि पर संयुक्त राष्ट्र एजेंडा 2030 के लिए खुद को जोर-शोर से पेश करती है, लेकिन वापस आकर उन नीतियों के बिल्कुल विपरीत हो जाती है। हाल ही में चार साल के लिए अनुबंध के आधार पर भारतीय सशस्त्र बलों में युवाओं की भर्ती के लिए नई “अग्निपथ योजना” शुरू की गई है, जो अनिश्चित और अनुबंध कार्य को प्रोत्साहित करती है। यह जहां देश के बेरोजगार युवाओं के साथ क्रूर मजाक है, वहीं हमारे गौरव भारतीय सशस्त्र बलों के लिए सदियों पुरानी नियमित रोजगार नीति के बिल्कुल विपरीत है। सरकार ने इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने से पूर्व हितधारकों के साथ परामर्श या चर्चा करना आवश्यक नहीं समझा। ट्रेड यूनियनों द्वारा बार-बार संयुक्त अनुरोध के बावजूद सरकार ने 2015 से भारतीय श्रम सम्मेलन की एक भी बैठक नहीं बुलाई है।
आईएलओ के संविधान में आरम्भिक स्तर पर ही उल्लिखित है कि “सार्वभौमिक और स्थायी शांति तभी प्राप्त की जा सकती है, जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।” नई चुनौतियों और अवसरों का वैश्विक समाधान मानव, पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक मूल्यों के आसपास केंद्रित होना चाहिए। निःसंदेह भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और 50 करोड़ से अधिक कार्यबल के साथ तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। 2025 तक इसके 64 प्रतिशत नागरिक कामकाजी आयु वर्ग के तहत ‘वैश्विक विकास’ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। हमें विश्वास है कि आपके अनुभवी और गतिशील नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन भारत में त्रिपक्षीय घटक के बीच लंबे संवाद गतिरोध को तोड़ने में कुछ ठोस कदम उठाएगा। हिंद मजदूर सभा आश्वस्त करती है कि श्रमिकों की बेहतरी के किसी भी प्रयास के लिए वह अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का समर्थन करेगी।