(पिछले दिनों साहित्यकारों की पत्नियों पर हिंदी के वरिष्ठ कवि और पत्रकार विमल कुमार ने एक अनोखी पुस्तक “साहित्यकारों की पत्नियों” का संपादन किया। इसमें 47 नामी-गिरामी लेखकों की पत्नियों के बारे में लेख हैं। देश में पहली बार ऐसी पुस्तक आयी है। इसमे तुलसीदास, टैगोर, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त, गणेशशंकर विद्यार्थी, निराला, जैनेंद्र, रेणु से लेकर नामवर सिंह, ज्ञानरंजन, प्रयाग शुक्ल की पत्नियों पर लेख हैं। प्रस्तुत है इस पुस्तक में विमल जी की भूमिका का एक अंश)
कहा जाता है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है लेकिन उस स्त्री के बारे में हमें बहुत कम बताया जाता है और हम उनकी चर्चा भी नहीं करते इसलिए वे स्त्रियां बहुधा पर्दे के पीछे रहती हैं, ओझल रहती हैं। इस तरह वह हाथ अदृश्य ही रहता है। उनके चेहरों पर रौशनी नहीं डाली जाती फलतः वे अंधेरे में गुमनाम रहती हैं और इतिहास में उनका जिक्र नहीं होता। इसलिए हमारा समाज इन स्त्रियों के बारे में बहुत कम जानता है और दुनिया को कम बताता भी है। इसलिए ये स्त्रियां हमेशा इतिहास से बाहर रहती हैं। शायद यही कारण है कि दुनिया के अधिकतर महापुरुषों की पत्नियों के बारे में हम लोग बहुत कम जानते हैं, इसके कुछ अपवाद जरूर हैं लेकिन हिंदी के लेखकों की पत्नियों के बारे में तो हम बिल्कुल ही नहीं जानते।
अंग्रेजी साहित्य में तो शेक्सपियर, टॉलस्टॉय चेखव, हेमिंग्वे जैसे विश्वप्रसिद्ध लेखकों की पत्नियों पर भी कई किताबें आपको मिल जाएंगी लेकिन हिंदी साहित्य में आज तक किसी भी लेखक की पत्नी के जीवन पर कोई किताब नहीं है। अपवादस्वरूप प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी के ऊपर अब जाकर दो वर्ष पहले एक किताब जरूर आई लेकिन वह किताब भी शिवरानी देवी के रचना संसार पर केंद्रित थी। यह किताब इलाहाबाद के आलोचक क्षमाशंकर पांडेय ने लिखी थी जिनका कोविड में देहांत हो गया पर उन्होंने शिवरानी जी के जीवन पर विशेष प्रकाश नहीं डाला था। वैसे भी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद के निधन के बाद ‘प्रेमचंद घर में’ नामक एक पुस्तक लिखी थी जिसमें उनके ( शिवरानी देवी के) जीवन प्रसंगों के बारे में भी थोड़ी बहुत जानकारी मिल जाती है लेकिन वह भी किताब मुख्यतः प्रेमचंद पर ही केंद्रित है।
प्रेमचंद के अलावा जयशंकर प्रसाद, निराला, जैनेंद्र, दिनकर, अज्ञेय और मुक्तिबोध या नागार्जुन जैसे अनेक लेखकों की पत्नियों के बारे में हमें कोई किताब दिखाई नहीं पड़ती है। यही नहीं, हिंदी के कई लेखकों के बारे में पत्नियों का कोई जिक्र तक नहीं मिलता, यहां तक कि कुछ लेखकों की पत्नियों के नाम भी हिंदी साहित्य में नहीं पता हैं। मसलन हिंदी गद्य और पत्रकारिता के उन्नायक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की पत्नी का नाम तक हिंदी साहित्य को नहीं पता जबकि उन्होंने अपनी पत्नी की स्मृति में अपने गांव में एक मंदिर भी बनाया था लेकिन उनकी पत्नी का नाम क्या था, यह कहीं दर्ज नहीं मिलता। कुछ लेखकों ने द्विवेदी जी पर लिखे अपने संस्मरणों में उनकी पत्नी का जिक्र किया है लेकिन उनका नाम नहीं लिखा है।
हिंदी साहित्य में लेखकों की पत्नियों पर संस्मरण भी देखने को नहीं मिलते या बहुत कम लिखे गए हैं ताकि आज हमें उनके बारे में पता कर सकें। हिंदी नवजागरण के अग्रदूत शिवपूजन सहाय की पत्नी पर पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का एक संस्मरण जरूर है अन्यथा रामचन्द्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचन्द, रायकृष्णदास आदि की पत्नियों पर किसी ने संस्मरण नहीं लिखे। प्रसाद जी की तीन पत्नियां थीं जिनमें दो का निधन हो गया था। उनकी तीसरी पत्नी का नाम कमला था जिनसे प्रसाद जी के पुत्र भी हुए लेकिन कमला जी के बारे में भी कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। न प्रसाद ने उनके बारे में लिखा और न किसी अन्य ने। पिछले दिनों जयशंकर प्रसाद की प्रकाशित जीवनी में भी कमला जी के प्रसंग में कोई विशेष उल्लेख नहीं है।
प्रसाद जी के इस जीवनीकार ने बताया कि प्रसाद जी के पुत्र भी अपनी माता के बारे में उन्हें कोई जानकारी दे नहीं सके क्योंकि उनके पास खुद जानकारी नहीं थी। प्रसाद के पुत्रों का मानना था कि अगर उनकी माताजी इतनी महत्वपूर्ण होतीं तो उनके पिताजी यानी जयशंकर प्रसाद उनके बारे में जरूर कुछ लिखकर जाते। इसी तरह निराला की पत्नी मनोहरा देवी के बारे में रामविलास शर्मा ने “निराला की साहित्य की साधना” पुस्तक में अधिक कुछ लिखा नहीं। इसलिए आज हमारे पास कोई साधन उपलब्ध नहीं है कि हम लेखकों की पत्नियों के बारे में कुछ जान सकें। यहां तक कि कुछ लेखकों की पत्नियों की तस्वीरें भी उपलब्ध नहीं हैं। गणेश शंकर विद्यार्थी और विशम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ की पत्नियों के चित्र भी आज उपलब्ध नहीं हैं।
इस पुस्तक की योजना आचार्य शिवपूजन सहाय की पुण्यतिथि 21 जनवरी 2022 को बनी थी जब स्त्री दर्पण पोर्टल पर पहली बार लेखक की पत्नी शृंखला के तहत एक पोस्ट जारी किया गया और वह पोस्ट सहाय जी की पत्नी बच्चन देवी के बारे में था जिनके नाम से लोग अनभिज्ञ थे। सहाय जी ने अपनी पत्नी की स्मृति में 1954 में एक व्याख्यानमाला शुरू की थी और किसी लेखक द्वारा अपनी पत्नी की स्मृति में किया गया पहला प्रयास था जिसमें उस समय के सभी दिग्गज लेखकों ने भाग लिया था और इसका उदघाटन हिंदी के पुरोधा पुरुषोत्तम दास टंडन ने किया था।
इस व्याख्यानमाला में महापंडित राहुल सांकृत्यायन, बालकृष्ण नवीन, उदयशंकर भट्ट, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, जैनेंद्र, भगवतीचरण वर्मा, किशोरी दास वाजपेयी, नागार्जुन, उपेन्द्रनाथ अश्क, आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा, धर्मवीर भारती, विद्यानिवास मिश्र जैसे अनेक जाने-माने लेखकों ने भाग लिया था लेकिन दुर्भाग्य से हिंदी साहित्य को इस व्याख्यानमाला के बारे में भी आज जानकारी नहीं है। इसके अंतर्गत करीब 185 व्याख्यान हुए थे। परिमल की गोष्ठियों से कम महत्वपूर्ण बच्चन गोष्ठी नहीं थी। अगर उसकी रिकार्डिंग होती तो हिंदी साहित्य के पाठक आज लाभान्वित होते और उन दिनों का इतिहास दर्ज होता।
शिवपूजन जी ने कम से कम अपनी पत्नी के लिए इतना तो किया कि उन्होंने उनकी स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए एक व्याख्यानमाला शुरू की लेकिन हिंदी के लेखकों ने अपनी पत्नी को स्मृति को संरक्षित करने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किया यहां तक कि उनके पुत्रों ने भी नहीं।प्रेमचन्द परिवार और हिंदी समाज ने भी शिवरानी देवी की स्मृति में कुछ नहीं किया। शायद यही कारण है कि हम प्रेमचंद की जयंती तो मनाते हैं लेकिन उनकी पत्नी शिवरानी देवी को कभी याद नहीं करते हैं जबकि वह खुद भी अपने समय की एक प्रमुख कथाकार थीं। आज तक शिवरानी देवी पर हिंदी साहित्य समाज में किसी भी समारोह का आयोजन नहीं किया गया।
इससे पता चलता है कि भारतीय समाज में स्त्रियां कितनी उपेक्षित हैं और यह बात केवल लेखकों की पत्नियों के संदर्भ में नहीं बल्कि देश के महापुरुषों के संदर्भ में लागू होती है। इसका प्रमाण यह है कि पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 125वीं जयंती मनाई गई तो कस्तूरबा गांधी के लिए भारत सरकार ने कुछ भी नहीं किया जबकि कस्तूरबा की भी 150वीं जयंती थी। इतना ही नहीं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या उपराष्ट्रपति ने गांधीजी की जयंती पर आयोजित समारोह में कस्तूरबा का नाम तक नहीं लिया। यह देखते हुए ‘स्त्री दर्पण’ ने यह योजना बनाई कि क्यों न हिंदी के लेखकों की पत्नियों को याद किया जाए और उनके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी हासिल की जाए ताकि भविष्य में लोग इस बात को जान सकें कि इन महान लेखकों के निर्माण में उनकी पत्नियों का कितना बड़ा योगदान है।
आपको शायद मालूम होगा लियो टॉलस्टाय की पत्नी ने विश्वप्रसिद्ध ‘वार एंड पीस’ उपन्यास की पांडुलिपि को रात में जगजग- जगकर अपने हाथों से लिखा था और उसे अपने हाथों से कई बार फिर से संशोधित भी किया लेकिन दुनिया टॉलस्टॉय को ही जानती है. ‘वार एंड पीस’ किताब में टॉलस्टॉय की पत्नी के इस योगदान का जिक्र होता तो पाठक समुदाय कम से कम यह जान लेता लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इससे हमारे समाज की सोच का पता चलता है कि वह स्त्रियों को उनका उचित हक नहीं देना चाहता है।
इस किताब में 51 लेखकों की पत्नियों के बारे में लेख हैं।कई लेख तो लेखकों के परिवार के सदस्यों ने लिखे हैं तो कुछ लेख दूसरे लोगों ने लिखे हैं। कुछ लेख किताबों पत्रिकाओं से लिये गए हैं। कुछ इंटरव्यू के रूप में लेखकों के बारे में जानकारी जुटाई गई है। इस किताब को तैयार करने में सबसे बड़ी मुश्किल यह रही कि पुराने लेखकों के बारे में जानने वाले अब लोग नहीं बचे या बहुत कम लोग बचे हैं। जो बचे हैं उनके पास फोटो, दस्तावेज नहीं हैं। पुराने लेखकों की पत्नियों के बारे में कोई संदर्भ सामग्री भी नहीं मिलती है। इन पत्नियों की संघर्ष गाथा पढ़कर पता चलता है कि ये महिलाएं कितनी जीवट वाली रहीं और इन्होंने अपने लेखक पतियों के लिए कितना त्याग और संघर्ष किया ताकि उनके पति समाज को बेहतर रचना दे सकें। ये पत्नियां हमेशा पर्दे के पीछे रहीं और उन्हें न तो उनके पतियों की ओर से और न ही समाज की ओर से किसी प्रकार का कोई श्रेय दिया गया या उनकी कोई चर्चा की गई।
हालांकि इन पत्नियों की असली गाथा तो वह खुद लिखकर देतीं तो ज्यादा प्रामाणिक और विश्वसनीय होती लेकिन हमारे पास ऐसा कोई साधन उपलब्ध नहीं कि उनकी अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय जानकारी हम दे सकें। यह संभव है कि हम इन लेखों से उन पत्नियों के असली व्यक्तित्व को अब तक ना जान पाए या उनके वास्तविक संघर्ष को भी नहीं पहचान पाए हों क्योंकि हमारे पास जानकारी प्राप्त करने का प्राथमिक स्रोत ही उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा लेखकों के परिवार के सदस्य बहुत सारी गोपनीय बातों को अब समाज के सामने रखना नहीं चाहते जिससे इन पत्नियों की वास्तविक स्थिति का पता चले।
टॉलस्टॉय ने अपनी पत्नी के साथ क्या सलूक किया था इसको तो अब पूरी दुनिया जानती है क्योंकि उनपर कई किताबें आ चुकी हैं लेकिन हिंदी की दुनिया में इस तरह की जानकारी कभी उपलब्ध नहीं रही है ताकि हम यह जान सके कि हिंदी के लेखकों ने अपनी पत्नियों के साथ किस तरह का व्यवहार किया था।