डॉ जरनैल सिंह आनंद की छह कविताएँ

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पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल

1. कभी चेहरा कभी नाम

कभी चेहरे तो कभी नाम
बदल जाते हैं
कितने सच हैं जो
झूठ नज़र आते हैं

उजड़े घरों में दीप
जलाये हैं किसने
क्यों मुझे रह रह कर
शमशान याद आते हैं

शब्द तो दो ही थे
आखिर जो कहने थे हमने
कभी महाभारत कभी रामायण
क्यों बुलाते हैं?

मैं कुछ और कहता हूँ
वो कुछ और पढ़ते हैं
ये कैसे शब्द हैं
जो अर्थों को उलझाते हैं

सत्यमेव जयते
तो एक जुमला है
यहाँ तो ठग
सत्यवान कहे जाते हैं।

2. वहां के लोग

कभी लोग ख़ुशी से मर ही जाया करते थे
अब ऐसा नहीं होता
जब ईमेल पूछते हैं
और आधार नंबर भी

शमशान में घूमने पर भी जीएसटी है
कुछ प्रेत बड़े पशेमान थे
हम क्यों नहीं रख सकते
आगे क्यों भेजना पड़ता है

एक मुर्दा दोबारा होश में लाया गया
इनकम टैक्स नहीं दिया था
घरवाले खुश हो गए
पर जब कारण पता लगा तो रोने लगे

मैंने कुछ रूहें इधर उधर भटकती देखीं
ये वो लोग थे
जिनकी लाशें अभी भी
किसी फ्रिज में लगी हैं

दोस्तों ने कहा तुमने सपना देखा होगा
ये सपना ही तो लगता था
वर्ना चलते फिरते
भूखे मरते भूत किसने देखे हैं?

3. खुद्दार

घर में भूख से डर आता है
बाहर भेड़ियों से
वो क्या करती
भूख भेड़ियों से खतरनाक थी

बॉस की नज़र से बचती
तो साथ काम करने वाले
लड़के
उसे कुछ कुछ कहने की कोशिश करते

सड़क पर निकलती
तो अकेली चल नहीं पाती थी
अँधेरे में थ्रीव्हीलर वाले
पता नहीं कहाँ ले जाएँ

घर में भाई और बाप
का कहर
यहाँ शादी होगी
वहाँ नहीं होगी

दफ्तर में बॉस का डर
साथ चलने वाले भी
लूट का माल समझते थे
बसों में अकेले सफर??

घर बैठ जाऊं?
या कोई बॉय फ्रेंड रख लूँ
शादी करूँ या लिव-इन
उसे फ्रिज भूलता नहीं था

यही अज़्ज़ादी थी
डर डर कर जीने की अज़्ज़ादी
घर में रहने की आज़ादी
बाहर निकलो तो लूट का माल

क्या करे वो सोचती
और सोचते सोचते सो जाती
वो पढ़ी लिखी खुद्दार लड़की थी।
पर क्या निर्भया के बाद कुछ बदला था?

ड्राइंग : प्रयाग शुक्ल

4. शुगर

शुगर मीठा खाने से कहीं ज़्यादा
मीठा मीठा सोचने से
और मीठा बोलने से
भी हो जाती है

सच कड़वा होता है
सच न कहने से भी हो जाती है
आंसू नमकीन होते हैं
इनके न बहने से भी हो जाती है

शुगर का मतलब है शरीर में
अनियमितता का होना
कुछ ऐसा खाना, कुछ ऐसा न खाना
पेट का कन्फ्यूज्ड रहना

बुरा हो तो बुरा न कहना
अच्छा हो तो अच्छा न कहना
सदैव किसी के डर में रहना
ये नहीं करना वो नहीं कहना

शुगर आज कल तो सभी को है
डाक्टर ने कहा है न मीठा खाना है
न मीठा बोलना है, सोचना तो बिलकुल भी नहीं
बस सच से दूर रहना है।

5. किसी ने तो देखा होगा

मेरा कुछ खो गया है
शायद मैं ही,
और मैं खुद को शब्दों की भीड़ में
ढूंढ़ता रहता हूँ

लगता है इसने या उसने
मुझे कहीं देखा होगा
किसी को तो धोखा होगा
कोई तो मेरा नाम लेगा या उगलेगा

बहुत ढूँढ़ा
कहीं नहीं था मेरा ज़िक्र
अच्छों में भी नहीं
बुरों में भी नहीं

आखिर मिला
शमशान के रेकॉर्ड्स में
किसी अज्ञात लाश का ज़िक्र था
जो मुझसे मिलती जुलती थी

तब पता चला
पता चल गया आखिर
कि मैं इस धरती का ही था
यहां का ही था बेशक कहीं का न था

जो अब नहीं रहा
रिकार्ड में लिखा था
कोई कवि था
जिसका न कोई आगा था न पीछा।

कवि से याद आया
अपने पूर्वज जो राजाओं के दरबार में
राजा की स्तुति में शे’र कहते थे
और इनाम पाते थे

ऐसा कवि मैंने नहीं सुना जिसने कभी भी
राजा को निराश किया हो
क्योंकि या मोहरें मिलती थीं
या फांसी

ये फांसी वांसी की बात मत करें
कोई इनाम शनाम हो
तो बताओ
बताओ क्या लिखना है

मैं लिख दूंगा मेरा क्या जाता है
बुरा भी तो लिखता हूँ
थोड़ा अच्छा लिख दूंगा
खलकत में बहुत कुछ : अच्छा भी तो है

नाम के साथ शमशान नसीब हुआ
इनाम में बहुत कुछ मिला
ये देखो मेरी मेहनत का मीठा फल
मेरे रुतबे मेरे सर्टिफिकेट

शिक्षा : किसी का बुरा कभी मत चाहो
बुराई का ज़िक्र तक न हो
सब अच्छा ही तो है
शाबाश ! अरे बीरबल इसको दस मोहरें दे दो.

6. कीचड़

कहीं रौशनी होती है
कहीं साया
और कहीं अँधेरा

ॲंधेरों को रोशनियों से
सजाया जाता है
दमकाया जाता है

रौशनी से कहीं बढ़ कर
चमकते अँधेरे
ज़्यादा लुभायमान करते हैं

रौशनी में वो काम नहीं हो सकते
जिन्हें करते समय
अँधेरे कुछ नहीं कहते

मुझे रौशनी से डर आने लगा है
सूर्य देव को
दूर से ही नमस्कार कर देता हूँ

फिर अँधेरे की आगोश में
चला जाता हूँ
मुझे ॲंधेरों की आदत हो गयी है

अँधेरे में अच्छा सोचने की
ज़रूरत नहीं है
सब कुझ काला ही होता है

कपडे़ धोने में कड़ी मेहनत लगती है
विचारों को रोशन रखने में भी।
बेहतर है घसमेला अँधेरा

एक सूअर पर तरस खाकर
नारद ने देवताओं से उसके लिए
स्वर्ग मांग लिया

सुअर ने कहा
स्वर्ग में क्या होता है?
नारद ने बताया दूध की नदियां बहती हैं

रौशनी ही रौशनी है
संत महात्मा दिन रात
परमात्मा का जाप करते हैं

सूअर को बेचैनी होने लगी
वहां कोई गन्दी नाली भी होती है या नहीं
जिसमें शराबी पड़े रहते हैं

नारद ने सर हिला दिया
तो सुअर ने फैसला सुना दिया
तुम चले जाओ, मुझे क्यों कीचड़ में घसीटते हो।

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