— डॉ सुरेश खैरनार —
गौतम अडानी को बचाने के लिए ही राहुल गांधी को विवाद में घसीटा जा रहा है? मराठी में एक कहावत है : “याच साठी केला होता अट्टाहास !” (मतलब सिर्फ इसलिए किया है यह सब !) राहुल गांधी ने अपनी लंदन यात्रा के दौरान जो वक्तव्य दिए उनको लेकर बीजेपी और संघ के द्वारा चलाए जा रहे हंगामे के पीछे एकमात्र उद्देश्य दिखाई दे रहा है – गौतम अडानी के धनकुबेर बनने के राज़ पर परदा डालना!
बजट सत्र के पहले भाग में राहुल गांधी ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर संसद में चर्चा करने की कोशिश की. लेकिन संसद की कार्यवाही से ही उस मुद्दे को हटा दिया गया! नरेंद्र मोदी जी ने जवाब में गांव की पंचायत के मुखिया से भी बदतर भाषा में “मै अकेला सब पर भारी, और नेहरू सरनेम क्यों नहीं रखते?” जैसी बेसिरपैर की बातें एक घंटे से भी अधिक समय तक कहीं. और सत्ताधारी दल के सदस्यों के लगातार बेंच थपथपाकर, पूरी संसद की कार्यवाही को बीजेपी की पार्टी बैठक में तब्दील करने के कृत्य को रेकॉर्ड में रखा गया ! क्या यह भारत की संसद की गरिमा को खत्म करने का काम नहीं है?
दूसरी तरफ तथाकथित भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर ईडी, सीबीआई जैसी एजेंसियों के जरिये तथाकथित छापेमारी करके लोगों का ध्यान भटकाकर, राहुल गांधी के, विदेश यात्रा में दिए गए, वक्तव्य को लेकर हंगामा करना ! जहाँ तक राहुल गांधी के विदेश में दिए गए वक्तव्य की बात है मुझे उसमें कुछ भी आपत्तिजनक टिप्पणी नजर नहीं आ रही है ! इसके बनिस्बत नरेंद्र मोदी ने 2015 में सिओल में जो कहा था वह काबिले-एतराज था. उन्होंने वहाँ “मेरा पूर्व जन्म में कोई पाप होगा इसलिए इस जन्म में मैं भारत में पैदा हुआ’ यह बात क्या भारत की इज्जत बढ़ाने के लिए कही थी?
अमरीका में “अबकी बार ट्रंप सरकार” जैसा नारा लगाकर क्या नरेंद्र मोदी जी ने भारत की छवि बढ़ाने का काम किया है? मेरा बीजेपी और संघ के लोगों को कहना है कि शीशे के घरों में रहने वाले लोग दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारा करते ! पिछले साल ही “एक रुपया दिल्ली से चलकर नीचे आम आदमी तक पंद्रह पैसे ही पहुंचता है” राजीव गांधी की इस बात को नरेंद्र मोदीजी ने जर्मनी में जिस तरह से मसखरे के अंदाज में कहा था, क्या उससे भारत का मान बढ़ा?
खुद मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात के दंगों में क्या भूमिका निभाई, यह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अफसोस जताते बयान से भी जाहिर है. वाजपेयी जी ने कहा था कि “आपने राजधर्म का पालन नहीं किया!” उन्होंने यह भी कहा था, “मैं क्या मुंह लेकर विदेश जाऊँगा?” ऐसे सवालों पर अगर कोई फिल्म बनती है तो मोदी जी को आपको नागवार लगती है और वह सिर्फ बैन लगाकर नहीं रुकते; बीबीसी के दफ्तरों पर छापे डालने की हद तक चले जाते हैं? यह व्यवहार खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे वाली कहावत की याद दिलाता है ! राहुल गांधी को लोकसभा में नहीं बोलने देना यह इस बात का परिचायक है कि मौजूदा सत्तापक्ष के मन में संसदीय प्रणाली के प्रति कितना आदर-सम्मान है! वैसे भी इन लोगों के लिए संसद सत्ता तक ले जाने वाली सीढ़ी के अलावा और कुछ नहीं है !
सत्ताधारी दल के द्वारा संसद की कार्यवाही नहीं चलने देना, विपक्षी सांसदों को पुलिस के बल पर ईडी के कार्यालय तक न पहुंचने देना, बीजेपी की मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजस्थान के समलखा में हुई बैठक में यह कहना कि भारत हिंदू राष्ट्र ही है,और यह बात हम सौ साल से बोल रहे हैं !फिर इस वक्तव्य के साथ दत्तात्रेय होसबळे (भावी संघ प्रमुख और वर्तमान में सहकार्यवाह!) का यह कहना कि राहुल गांधी को विदेश में अपने देश के बारे में ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, और संघ के विदेश विभाग के कारनामों की जांच-पड़ताल से यह पता चलना कि इसने भारत जैसे बहुआयामी संस्कृति के देश को हिंदूराष्ट्र बनाने की मुहिम चला रखी है, इस सब से क्या दुनिया में भारत की इज्जत बढ़ रही है?
उसी तथाकथित विदेश इकाई ने ही नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद न्यूयार्क के मेडिसन स्क्वेयर के कार्यक्रम से लेकर हाउडी मोदी जैसे कार्यक्रम पैसे लगाकर आयोजित किए थे ! जिन्हें कवरेज करने के लिए, वहाँ गए हुए भारतीय पत्रकार राजदीप सरदेसाई तथा प्रफुल्ल बिदवई जैसे लोगों के साथ हाथापाई करने से लेकर उलटे उन्हीं के ऊपर विदेश में झूठमूठ के केस करने के रेकॉर्ड मौजूद हैं ! और वे भारत में संघ की गतिविधियों को चलाने के लिए विशेष रूप से धन इकठ्ठा करने का काम करते हैं ! और इस काम पर नजर रखने के लिए संघ की तरफ से अधिकृत किये गए व्यक्ति राम माधव हैं !
अभी संसद का सत्र चल रहा है ! लेकिन सत्ताधारी दल की पूरी कोशिश है कि किसी भी तरह अडानी उद्योग समूह के आर्थिक घोटालों पर चर्चा नहीं होनी चाहिए. मुझे रह-रहकर आश्चर्य हो रहा है कि कुछ लाख रुपये के घोटालों के पुराने बंद हो चुके मामलों को पुनः खोलने का काम करने वाली सरकार को, हिंडेनबर्ग रिपोर्ट, जो इसी साल के शुरू में निकली है, गौर करने लायक क्यों नहीं लगती! हिंडनबर्ग रिपोर्ट में घपले के आंकड़ों को देखते हुए लगता है कि शायद वर्तमान समय में भारत के विभिन्न विरोधी दलों के सभी नेताओं के कथित भ्रष्टाचार के आरोपों के आंकड़ों की तुलना में अडानी का घपला कई गुना अधिक होगा. फिर भी “न खाऊँगा और न ही किसी को खाने दूंगा!” जैसी घोषणा करने वाले हमारे प्रधानमंत्री को भरी संसद में अडानी का नाम लेने की हिम्मत नहीं होती है. और “मैं अकेला सब पर भारी” जैसे जुमले का इस्तेमाल करते हुए देखकर लगता है कि दाल में कुछ तो काला है.
अपने आपको ‘पार्टी विद डिफरंस’ कहने वाले और मातृसंस्था के चाल, चरित्र की बात करने वाले लोगों को लगता है कि संसद में गौतम अदानी को लेकर जेपीसी जांच की मांग करके संपूर्ण विश्व में भारत की छवि खराब की जा रही है तो मैं कहूँगा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट से सामने आए तथ्यों की जांच-पड़ताल करने से ही दुनिया में भारत की छवि दुरुस्त होगी, न कि टाल-मटोल करने से ! वर्तमान सत्ताधारी दल और उसकी मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सचमुच ही इस देश के प्रति आदर-सम्मान है तो हिंडनबर्ग रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए हैं उनकी अविलंब जांच अंतरराष्ट्रीय स्तर की एजेंसी के द्वारा कराना चाहिए, क्योंकि इससे देश को सही-सही जानकारी भी मिलेगी और इज्जत भी !