— डॉ सुनीलम —
आज 23 मार्च 2023 को डॉ राममनोहर लोहिया जी की 113वीं जयंती है। देशभर में समाजवादियों द्वारा उनकी जयंती के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। आज भी किए जा रहे हैं।
मुझे लगता है कि 23 मार्च 2023 को देश के समाजवादियों को क्रांति संकल्प दिवस के रूप में मनाना चाहिए तथा देश में सांप्रदायिक एवं कारपोरेट मुखी भाजपा को आगामी सभी चुनावों में हराने का संकल्प लेना चाहिए।
23 मार्च का दिन डॉ लोहिया द्वारा प्रतिपादित सप्त क्रांति के सिद्धांत को जमीन पर उतारने के संकल्प के साथ मनाया जाना चाहिए।
डॉ राममनोहर लोहिया ने जब सप्त क्रांति का सिद्धांत दिया था, तब उन्होंने अमीर देशों द्वारा गरीब देशों के शोषण और लूट का मुद्दा उठाने के साथ-साथ देश के भीतर अमीर द्वारा गरीबों के आर्थिक शोषण के मुद्दे को उठाया था।
डॉ लोहिया चाहते थे कि श्रम की कीमत दुनिया में एक जैसी होनी चाहिए। यह सर्वविदित है कि अमरीका और यूरोप में एक श्रमिक को 15 डॉलर प्रतिघंटा अर्थात 1240 रुपये प्रतिघंटा मिलता है। भारत में न्यूनतम मजदूरी (8 घंटे) के तौर पर 200 रु. प्रतिदिन दी जाती है जिसका अर्थ है कि भारत और अमरीका के श्रम के मूल्य में कई गुने का अंतर है। इसी तरह डॉ लोहिया चाहते थे कि किसी कंपनी में कार्य करने वाले श्रमिक और वहां के सीईओ के वेतन में अंतर 10 गुने से अधिक का नहीं होना चाहिए।
यानी डॉ लोहिया चाहते थे कि पूरी दुनिया में न केवल श्रम का मूल्य एक जैसा हो बल्कि किसी भी कंपनी के सबसे ऊंचे पद पर पदस्थ कर्मचारी और सबसे निचले पायदान के कर्मचारी के वेतन में 10 गुने से ज्यादा का अंतर ना हो। यह दुखद है कि देश और दुनिया में आर्थिक समानता के इस मुद्दे पर चर्चा होनी लगभग बंद हो चुकी है।
समाजवादियों को चाहिए कि वे इस चर्चा को जनता के बीच ले जाएं क्योंकि आज के समय में एक तरफ गौतम अडानी की आमदनी 1500 करोड़ रुपए प्रतिदिन है, दूसरी तरफ मनरेगा मजदूर की आमदनी 200 रुपए प्रतिदिन है। जिसे 100 दिन में केवल 32 दिन रोजगार गारंटी के नाम पर काम मिल पाता है।
सप्त क्रांति में डॉ लोहिया ने जातिगत शोषण और भेदभाव का मुद्दा उठाया था। देश में आज भी जातिगत ऑनर किलिंग जारी है।
डॉ लोहिया ने जाति उन्मूलन का सपना देखा था । यह वही सपना था जो उनके समकालीन समाज सुधारक और संविधान निर्मात्री सभा के प्रमुख शिल्पकार के तौर पर डॉ बाबासाहब आंबेडकर ने देखा था। दोनों ने अपने जीवनकाल में मिलकर कार्य करने का प्रयास किया था लेकिन डॉ आंबेडकर की मृत्यु हो जाने के कारण दोनों का साथ कार्य करने का सपना पूरा नहीं हो सका। जातिप्रथा का संपूर्ण उन्मूलन समाजवादियों का संकल्प होना चाहिए। यह तभी संभव है जब समाजवादियों, आंबेडकरवादियों, फुलेवादियों, पेरियारवादियों द्वारा साथ मिलकर संयुक्त रणनीति के साथ जाति उन्मूलन का प्रयास किया जाए।
डॉ लोहिया ने महिलाओं के साथ समाज में होने वाले शोषण और भेदभाव को सप्त क्रांति में शामिल किया था।
हम नारा जरूर लगाते हैं कि नारी के सहभाग बिना हर बदलाव अधूरा है परंतु महिलाओं को अपने परिवार एवं संगठन में बराबरी का स्थान देने को तैयार नहीं हैं। महिलाओं को बराबरी की भागीदारी सुनिश्चित करने के संघर्ष की अगुवाई देश में समाजवादियों को करनी चाहिए। नौकरियों और शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी को लेकर समाजवादियों ने पहल की है लेकिन विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण मिले, इस लड़ाई को लड़ने में समाजवादियों को अगुवाई करनी चाहिए तथा अपने संगठनों में महिलाओं को बराबरी की भागीदारी देने का संकल्प लेना चाहिए।
डॉ लोहिया ने सप्त क्रांति में रंगभेद के मुद्दे को भी शामिल किया था। अमरीका में उन्होंने रेस्टोरेंट में अश्वेतों के प्रवेश पर रोक जैसे भीषण भेदभाव को खत्म करने के लिए सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तारी देकर रंगभेद के मुद्दे की ओर देश और दुनिया का ध्यान आकर्षित करने में सफलता हासिल की थी। अमरीका में रंगभेद की घटनाओं के चलते ट्रंप सरकार बदल गई लेकिन भारत में जातिगत भेदभाव राजनीतिक मुद्दा नहीं बन सका। सभी किस्म के भेदभाव खत्म करने का मुद्दा समाजवादियों के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए।
डॉ लोहिया ने निजता के सवाल को अति महत्वपूर्ण माना था। उनका स्पष्ट मत था कि किसी भी सरकार को किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है लेकिन इस समय देश में वह सरकार है जो खाने, पढ़ने, सुनने, बोलने एवं धार्मिक आस्था जैसे मुद्दे पर लगातार हस्तक्षेप कर रही है।
गौरक्षा के नाम पर गौभक्तों द्वारा सरेआम लिंचिंग की जा रही है। हिजाब को मुद्दा बनाकर लड़कियों को स्कूलों में पढ़ाई से वंचित किया जा रहा है। लव जिहाद के नाम पर अंतर्धार्मिक विवाह करने वालों को सरेआम प्रताड़ित किया जा रहा है। आज केंद्र सरकार पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर घर घर की निगरानी कर रही है। आधार कार्ड के माध्यम से देश के 141 करोड़ नागरिकों की निजता को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है।
नागरिकों का डाटा अब बाजार की कंपनियों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
हिंसा के माध्यम से समाज में वर्चस्व बनाने को डॉ लोहिया ने सप्त क्रांति के माध्यम से चुनौती देने का प्रयास किया था। लेकिन आज भी हिंसा के माध्यम से अपना वर्चस्व कायम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास जारी हैं।
रूस द्वारा यूक्रेन पर थोपे गए युद्ध के चलते एक वर्ष से अधिक हो जाने के बावजूद शांति स्थापित नहीं की जा सकी है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के तमाम प्रयासों के बावजूद युद्ध जारी है लेकिन युद्ध के विरोध में जिस तरह दुनिया भर में शांति प्रयासों को बल देने के लिए नागरिकों के शांति मार्च निकालने की आवश्यकता थी, वह दिखलाई नहीं दे रहा है। उसके बारे में समाजवादियों की कोई सामूहिक पहल दिखाई नहीं देती। दुनिया में आज भी अमेरिका और यूरोप की हथियार बनाने वाली कंपनियों का बोलबाला है।
भाजपा सरकार लगातार भारत-पाकिस्तान को आमने-सामने खड़ा कर हथियार की होड़ में लगी रहती है, जिसके चलते नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताएं उपलब्ध कराने की जगह हथियारों की खरीद में बजट खर्च किया जाता है। अहिंसा का सवाल समाजवादियों के लिए अति महत्त्व का है। विशेषकर ऐसे समय में जबकि समाज, देश और दुनिया में हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है।
समाजवादी नेताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था। आज स्वतंत्रता के मूल्य और संवैधानिक मूल्य खतरे में हैं। डॉ लोहिया ने जान खतरे में डालकर जेलों में रहकर भारत की और गोवा मुक्ति की लड़ाई लड़ी थी। समाजवादियों को आज उन मूल्यों को बचाने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेनी चाहिए।
यह सच है कि समाजवादी आज अकेले संघ परिवार की चुनौती से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन संघर्षशील एवं कुर्बानी देने वाली जमात होने के चलते समाजवादियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे व्यवस्था परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध अन्य समूहों के साथ वैचारिक एकता बनाकर राष्ट्रव्यापी संघर्ष खड़ा करेंगे।
यहां मैं यह उल्लेख करना आवश्यक समझता हूं कि समाजवादियों के एक संगठन समाजवादी समागम ने एक सोशलिस्ट मेनिफेस्टो तैयार किया था जिसे आधार बनाकर न केवल गैरभाजपा दलों का न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाया जा सकता है बल्कि जो लोग यह मानते हैं कि वर्तमान समय में कोई नीतिगत विकल्प मौजूद नहीं है, उनके सामने भी विकल्प प्रस्तुत किया जा सकता है।
यह वर्ष मधु लिमये जी, मधु दंडवते जी, कर्पूरी ठाकुर जी, गोपाल गौड़ा जी जैसे प्रतिबद्ध समाजवादियों का जन्मशती वर्ष भी है। समाजवादियों को इन महान समाजवादी नेताओं के व्यक्तित्व और कृतित्व से जुड़े आयोजन कर लोहिया के विचारों को जनता के बीच ले जाने का प्रयास करना चाहिए।
याद रहे डॉ लोहिया का जब देहांत हुआ था, तब उनके पास न तो कोई बैंक बैलेंस था, न जमीन जायजाद, ना ही उनके परिवार का कोई सदस्य उनकी राजनीति को आगे बढ़ाने वाला मौजूद था, परंतु डॉ लोहिया अपने व्यक्तित्व और कृतित्व की बदौलत आज भी जिंदा हैं। हम उनसे कितना सीख पाते हैं तथा अपने जीवन में समाजवादी मूल्यों को अपनाते हैं, यह हमें स्वयं को तय करना है।