3 मई। असम के किसान नेता अखिल गोगोई की रिहाई की मांग उतनी ही पुरानी है जितनी उनकी गिरफ्तारी। लेकिन चुनाव में उन्हें मिली जीत ने एक बार फिर से इस मांग को हवा दे दी है। संयुक्त किसान मोर्चा समेत बहुत सारे जनसंगठनों और जनमोर्चों ने उनकी जीत पर उन्हें बधाई देते हुए उनपर थोपे गए केस वापस लेने और उन्हें अविलंब रिहा करने की मांग की है।
अखिल गोगोई सरकारी दमन के भी प्रतीक हैं और उसके खिलाफ सशक्त प्रतिरोध के भी। गौरतलब है कि उन्हें दिसंबर 2019 में गिरफ्तार किया गया था जब वह सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ असम में जोरदार मुहिम चला रहे थे। इससे नाराज भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों ने अखिल को निशाने पर ले लिया। वह न सिर्फ गिरफ्तार कर लिये गए बल्कि जमानत पाने के उनके रास्ते में कांटे बिछाते हुए उनपर यूएपीए लगा दिया गया। फिर मामले को एनआईए को सौंप दिया गया। पिछले महीने गुवाहाटी हाईकोर्ट ने अखिल गोगोई को जमानत देने के एनआईए कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। फिर भी उनकी रिहाई संभव नहीं हो सकी, क्योंकि उनके खिलाफ लंबित दूसरे मामले में जमानत अभी नहीं मिली है।
अखिल गोगोई फिलहाल गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में भर्ती हैं। वहीं से यानी कैद में रहते हुए अस्पताल से उन्होंने चुनाव लड़ा। वह खुद चुनाव प्रचार नहीं कर पाए, लेकिन शुभचिंतकों, समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने अखिल गोगोई के लिए दिन-रात एक कर दिया। अखिल की मां ने भी गांव-गांव जाकर अपने बेटे का पक्ष रखा और वोट मांगा।
अखिल गोगोई ने पिछले साल अक्टूबर में रैजोर दल नाम से एक पार्टी बनाई तथा एक अन्य नवगठित पार्टी असम जातीयता परिषद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। रैजोर दल ने 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन अखिल को छोड़कर कोई कामयाब नहीं हुआ। उनको हराने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी थी क्योंकि अखिल गोगोई असम में सीएए विरोधी आंदोलन और किसान आंदोलन, दोनों का चेहरा हैं। फिर भी अखिल ने भाजपा की उम्मीदवार को दस हजार से अधिक वोटों से हराया। यही नहीं, वह शिवसागर निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार थे जो भाजपा का गढ़ माने जानेवाले ऊपरी असम में आता है। यह बिलकुल स्वाभाविक है शिवसागर सीट से अखिल गोगोई की जीत ने असम की सत्ता में भाजपा की वापसी की चमक फीकी कर दी है। अखिल गोगोई प्रतिरोध के साथ-साथ उम्मीद का भी चेहरा बनकर उभरे हैं।