— प्रो राजकुमार जैन —
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की पहली-पहल टोली के सनदयाफ्ता, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में सोशलिस्ट तहरीक मे रंगे गए नाट्यकर्मी, रंगमंच की सभी विधाओं मे पारंगत, शंकर सुहेल तमाम उम्र अपनी धुन में समाजवाद के परचम को अपनी तरह से लहराने को जिंदगी की सार्थकता मानते रहे। तलाश थी कि लोहिया पर एक संपूर्ण फिल्म बने। ग्वालियर में रमाशंकर सिंह की पहल पर फिल्म बनाने के इरादे से तकनीकी जानकारों का एक जमावड़ा भी हुआ। शंकर भाई सालों की मेहनत से तैयार, लिखी हुई स्क्रिप्ट लेकर खराब सेहत के बावजूद पहुंच गए। बड़ी तमन्ना थी कि लोहिया की शख्सियत के मुताबिक फिल्म बने। बाहरी दुनिया के लिए शंकर सुहेल एक रंगकर्मी, फिल्मकार, कलाकारों की दुनिया के उम्रदराज पुरानी कतार के नायक थे।
परंतु मेरे जैसे लोगों के लिए एक जुनूनी दोस्त। उनकी दीवानगी का आलम यह था, अगर मैं व्हाट्सएप ग्रुप पर कुछ लिख भेजता तो अमूमन हाथों-हाथ तारीफ के साथ-साथ हौसला अफजाई करना उनका दस्तूर था। उनकी आखिरी पोस्ट जो शायद अपने इंतकाल के आसपास ही भेजी थी।
‘”सही कहा गया है कि जो भी डा, लोहिया मधु लिमये के साये से भी गुजरा है, उसमें जज्बात और अखलाक के साथ दोस्तनवाजी का एहसास होना लाजमी है। इसलिए मैं आपका मुरीद हूं। जिन लफ्जों से आपने मुझे इज्जत बख्शी है, तहेदिल से शुक्रिया।”
शंकर भाई का हर घटनाक्रम पर अंदाज ए बयां निराला और ऊंचे पायदान को छूने वाला होता था।
नए साल की आहट पर उन्होंने लिखा-
“वैसे तो यह आने वाला 2023 नया साल ईसा मसीह से ताल्लुक रखता है। पर हमारे बुजुर्गों ने मुल्क की बहबूदी वह खुशहाल सेहतमंदगी के साथ कामयाब जिंदगी और रिश्तों के लिए दिलोजान से कबूल किया है, इसलिए हर मजहब को कुदरत की देन समझकर सभी की बेहतरी के लिए दुआ मांगते हुए, साथ ही उम्मीद करता हूं कि मेरे लिए सेहत के साथ कामयाबी की दुआ करिए।”
मुल्क के सियासी और समाजी हालात पर बड़ी संजीदगी, जानकारी, तथ्यों और तर्कों से लैस वे वक्त-वक्त पर अपनी टिप्पणी करते रहते थे। उनके लेखन में व्यंग कितना पैना और धारदार होता था उसकी एक मिसाल जो उन्होंने मुझे भेजी थी :
“लक्ष्मी जी (दौलत की देवी) से आज मेरी बात हो गई है। वो खुशी-खुशी आपके और आपके परिवार के लिए डॉलर, पाउंड, रुपया, गोल्ड, सिल्वर, डायमंड के साथ प्रॉमिनेंट जगह पर रियल स्टेट प्रॉपर्टी से एक 5 बैडरूम ग्राउंड फ्लोर फ्लैट, गैराज तथा सर्वेंट क्वार्टर भेंट करेंगी क्योंकि आप सोशलिस्ट पैटर्न आफ कंट्री के सपने देखने के आदी हो रहे हैं।”
रीढ़ की हड्डी के असहय दर्द को सहन करते हुए रात के 11:42 पर दोस्तों की तारीफ में केवल शंकर सुहेल ही लिख सकते थे :
“भाई राजकुमार,
आज रात 11:42 पर स्पाइनल पेन की वजह से बेपनाह दर्द हो रहा था और दर्द से निजात पाने के लिए दवा निकाल और खाने से पहले मैंने मोबाइल पर आप के जरिए मधु लिमये जी पर लिखे यादगार लेख को देखा तो जाहिर है तय यह करना था कि दवा खाकर दर्द से निजात पाने के लिए सोया जाए या आपके बेहतरीन लफ्जों और यादों में लिखे लेख पर हिम्मत अफजाई की जाए। जाहिर है आपकी कलम ने जो मधु जी की तस्वीर खींची उसमे पूरा तस्किरा पढ़ने के बाद फिर उस हैरतअंगेज शख्सियत की यादों के आगे नींद और दर्द आने का तस्किरा करना बेमानी।”
उसी वक्त मैंने शंकर भाई को लिखा :
“शंकर सोहेल भाई, आपकी तकलीफ और खासतौर से उसके कारण हो रहे दर्द को जानकर बेहद दुख का एहसास हुआ। आप जैसा खुशमिजाज, मस्त, हरफनमौला सोशलिस्ट बिस्तर तक महदूद रहे उस वेदना को महसूस तो किया जा सकता है उसको बयां करने के लिए अल्फाज नहीं हैं। मेरे लिए आपके द्वारा वक्त-वक्त पर तारीफ के प्रेम वचन मुझे लगता है कि वे एक तरह से मेरी दोस्ताना तरफदारी है। आप जल्दी से जल्दी तकलीफ से निजात पाएं यही कामना है। मेरे लायक कोई भी हुक्म हो बेतकल्लुफ होकर मुझे बताएं तो मुझे संतोष होगा।”
ऐसे साथी शंकर सुहेल के जाने से न केवल सोशलिस्ट तहरीक को बल्कि निजी रूप से दोस्तों में जो खालीपन का अहसास पैदा हुआ है, उसको बयां करना आसान नहीं है।