— विजय कुमार तिवारी —
मेरे सामने महत्त्वपूर्ण कवि शैलेन्द्र चौहान का नवीनतम कविता संग्रह सीने में फाँस की तरह है। यह शीर्षक पर्याप्त रूप से संकेत दे रहा है, कवि के भीतर कोई बेचैनी है, कुछ भाव-विचार अटके पड़े हैं और ये कविताएं उसी के प्रतिफल के रूप में निःसृत हुई हैं।
शैलेन्द्र चौहान वरिष्ठ कवि हैं, कहानीकार हैं, समीक्षक-आलोचक हैं, उन्होंने यात्रा संस्मरण के साथ-साथ पत्रकारिता भी की है। यह उनका पाँचवाँ कविता संग्रह है। इस संग्रह में कुल 57 कविताएं हैं जिनके विविध विषय पाठकों को भिन्न-भिन्न दुनिया में ले जाते हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए उनके शब्द-सामर्थ्य, गहन भाव-संवेदनाओं का अनुभव होता है और उनके बिम्ब, प्रतीक अलग प्रभाव छोड़ते दिखते हैं। यह किसी भी कवि का साहित्य को, समाज को बड़ा योगदान होता है।
उनकी कविताओं के सन्दर्भों को पकड़ना किंचित कठिन है, शायद सहज भी, वे एक-दूसरे से जुड़े भी हैं और दूर-दूर छिटके हुए भी। ‘सम्मोहन’ कविता में राॅबिनहुड घोड़ा है, आयकर विभाग का नोटिस है, पुराने लकड़ी के संदूक में पीले होते जाते पन्नों की किताब है और हर बिम्ब के साथ कवि के गहरे भाव हैं। सबसे भयावह है-भानुमती के कुनबे में/सरकता साँप/आस्तीनों में घुस जाता चुपचाप। कवि के सीने की फाँस है सेलेब्रिटी बनाम सामान्य मनुष्य। वह कहते हैं- सराहना में/खो जाते सामान्यजन स्वतः/अपने आप। लगभग सभी कविताओं में कवि ऐसे ही विचलित होता है और मानवता के पक्ष में अपनी आवाज उठाता है। ‘आदिवासी’ कविता में निमाड़, मालवा के आदिवासियों का संघर्ष, उनकी बेबसी, उनके दुख, गरीबी और पीड़ा की अभिव्यक्ति हुई है। ‘मिथ’ बड़े पृष्ठभूमि की कविता है जिसमें कवि ने अन्तर्विरोधों को रेखांकित किया है। यह कविता व्यवस्था पर प्रश्न उठाती है, व्यंग्य करती है और किसान,आदिवासी गरीबों की गरीबी आदि का चित्रण करती है।
‘कोंडबा’ एक आदिवासी श्रमिक की व्यथाकथा है। कविता में कवि श्रमिक, सैनिक, चौकीदार और दुनिया भर के मजदूरों के साथ खड़ा होता है। उसकी दृष्टि में कल-कारखाने हैं, गौरैया, कटफोड़वा व गाय है, संभ्रांत लोगों की गंदी नालियाँ साफ करते श्रमिक हैं। पचहत्तर वर्ष के कोंडबा के लिए किसी के मन में दया नहीं है, विधान-सभाओं में नाना विषयों पर बहसें होती हैं, कोंडबा की चर्चा कहीं नहीं है। कोंडबा या वैसे लोगों के लिए कवि के प्रश्न जरूरी हैं, सामयिक हैं और झकझोरते हैं। देश के उजाड़ जंगलों और गाँवों की बदहाली पर ‘वन ग्राम’ सशक्त कविता है। कवि की संवेदना देखिए-हम खाए जा रहे हैं पृथ्वी का हर अंग, प्रत्यंग/ खोदकर, काटकर, जलाकर/ निष्ठुर हो कर रहे हैं प्रकृति का विनाश। ‘दुकानदार’ कविता में व्यंग्य है और व्यक्ति की पहचान भी कि तुम थे तमाशबीन/वे थे दुकानदार। ‘दंडवत’ आज के लेखक,संपादक, सामाजिक मीडिया पर जबरदस्त व्यंग्य की कविता है।
‘बौनों के देश में’ अच्छा व्यंग्य है, आज की सच्चाई है और बहुतेरे लोग इस फन मे माहिर हैं।’मौसम बहुत सुहाना है’ कविता में कवि ने अपनी सोच को खूब हवा दी है, पाठकों पर निर्भर करता है, वे सहमत हैं या असहमत। दुनिया में सब तरह के लोग है, हर विचार के मानने वाले मिल जायेंगे और विरोधी भी। यह रचनाकार को ही तय करना है, वह किसके साथ है, किसे सत्य मानता है और सम्पूर्ण मानवता के लिए स्वयं क्या करता है। ‘चाह यही बस’ कविता के भाव स्वतः स्पष्ट हैं और कवि को विशेष पार्टी के राज के हालात दिखाई दे रहे हैं। ‘शायद मैं शायद तुम’ व्यवस्था पर चोट करती कविता है।
ऐसे हालात हैं और कवि ने अंगुली रख दी है। कवि में बेचैनी है, आक्रोश है और उसका संकेत स्पष्ट है। ‘कुछ कमजोरियाँ’ कविता में कवि सभी की पहचान करता है और अपनी कमजोरियों की भी। अपनी कमजोरियों को सामने लाना कवि का साहसिक कृत्य कहा जाएगा। ‘अवसान’ कविता में कवि व्यंग्य करता है कि इस व्यवस्था को हत्यारों, तस्करों, चोर-लुटेरों से परेशानी नहीं है बल्कि सहानुभूति है। उनकी परेशानी अन्यत्र है। होना तो यह चाहिए, जो भी गलत है उस पर कलम चले और खूब चले। अक्सर अपनी सुविधा और विचारधारा के अनुसार हम दुनिया को बाँटते रहते हैं। इससे न समाज का भला होता है, न देश का और न साहित्य का। ‘फिलवक्त’ कविता में छह दशक का उल्लेख है, जबकि यह आदिम काल से कहा जाता रहा है, मनुष्य का स्वभाव यही है। कवि के प्रश्न अपनी जगह सही हैं क्योंकि वह मनोविज्ञान समझता है और सम्यक संदेश देता है। ‘आगे की राह कौन’ कविता में कवि बेचैन है। यह केवल उसकी ही बेचैनी नहीं है बल्कि लाखों-करोड़ों लोग हैं। वह कतिपय धनाढ्य लोगों से तुलना करता है, व्यवस्था में पल रहे लोगों को देखता है, उनके दुश्चक्रों को समझता है और दुखी होता है। कविता मशाल तभी बनती है जब प्राण-चेतना को झकझोरती है।
शैलेन्द्र चौहान जी की कविताओं के शीर्षक भी कम रोचक नहीं हैं, सीधे मुद्दों से जुड़ जाते हैं और प्रभाव डालते है। ‘मिटेंगे अब अपराधों के साये’ कविता का विस्तार ध्यान खींचता है,सारे परिदृश्य हमारे लिए सुपरिचित हैं और कवि सबको होश में आने की सलाह देता है। ‘जय जयकार’ कविता में कवि का चिन्तन देखिए-सब के सब बुरे नहीं होते/ज्यादातर अच्छे,कुछ बुरे होते हैं/और कुछ/न बुरे होते हैं न अच्छे। कवि ने बड़ी साफगोई से अच्छे-बुरे होने की स्थिति-परिस्थिति का चित्रण किया है। ‘हम एक-दूसरे के शत्रु होना नहीं चाहते थे’ कविता हमारे आपसी सम्बन्धों पर मनोवैज्ञानिक चिन्तन करती है। ‘कबीर बड़’ कविता हमें किसी अलग लोक-चिन्तन में ले जाती है और कवि के भीतर के अन्तर्विरोध का दर्शन करवाती है। कवि का दृश्य, प्रतीक और बिम्ब चयन अद्भुत है। ‘अग्निगर्भा हूँ मैं’ कविता में मां को लेकर कवि की यह बात बिल्कुल सही है-नहीं सोचता उसके बारे में कोई/जिस तरह सोचती है वह हमेशा/उन सबकी खातिर। मां को लेकर इतने अच्छे बिम्बों-प्रतीकों के साथ लिखी गई कविताओं में से यह एक है। ‘जघन्यतम’ निठारी की घटना को लेकर स्वतः स्पष्ट कविता है। ‘सूखा’ में सिलिका जेल के माध्यम से कवि ने पूरे विस्तार का दृश्य दिखाया है।
शैलेन्द्र जी की कविताओं में खास तरह की दुरूहता है, कई बार समझ में आती है, कई बार नहीं आती, बार-बार पढ़ना पड़ता है। इसके दृश्य, बिम्ब और प्रश्न विचलित करते हैं और संवेदित भी। ‘लोअर परेल’ बंद कपड़ा मिलों की व्यथा समेटे कविता है। ‘अंततोगत्वा’ भिन्न निरपेक्ष भाव की कविता है। आज के मानव मन की सच्चाई यही है-हम थोड़ी देर विह्वल होते हैं और अपनी राह चल देते हैं।
‘विकास’ हमारे बदलाव को रेखांकित करती सशक्त कविता है। इसमें कवि आत्म-चिन्तन करता है, स्वयं के बदलाव को महसूस करता है और कहता है-विकास का यही पैमाना है। ‘भोर की उजास’ कविता में कवि एक एक्टिविस्ट लड़की की उजली, प्रफुल्लित आँखों के बारे में कुछ कह पाने में समर्थ नहीं है, वह उसकी उत्साही,परिवर्तनकामी और स्वप्निल आँखों को सलाम करता है। ‘प्रणयरत’ बिम्बों-प्रतीकों के मायाजाल में उलझी कविता है। यह कविता ऐतिहासिक तौर पर मांडवगढ़ किले की रानी रूपमती से जुड़ती है। उत्तरोत्तर शैलेन्द्र जी की कविताएं गूढ़, रहस्यमयी होती जा रही हैं और सारे बिम्ब दुरुह-चिन्तन की ओर खींच रहे हैं। ‘फफूँद’, ‘शुभ-लाभ’, मनोघात’ जैसी कविताएं भिन्न भाव-दशा का संदेश देती हैं।
‘कैसा नखलिस्तान’ सरदार सरोवर डैम और केवड़िया गाँव में बनी सरदार पटेल की विशाल मूर्ति को लेकर कवि की अपनी सोच की कविता है। उनकी चिंता छह हजार गाँवों, अड़तालीस हजार ग्रामवासियों और पुनर्वसन में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर वाजिब ही है। ‘काठ का घोड़ा’ गुजरात चुनाव पर राजनीतिक चिन्तन की कविता है। कवि ने अपनी सोच के अनुसार सारे सन्दर्भों-बिम्बों को अपनी कविता में समाहित किया है और सब कुछ को राजनीतिक चकमेबाजी कहा है। ‘सर्दियाँ टोरंटो में’ कविता में बर्फ ही बर्फ है। कवि की पंक्तियाँ देखिए-यह मेरे अपने देश की बर्फ है/जमी है सत्ताधारियों के मस्तिष्क में/छल-प्रपंच, कुटिलता सी/मध्यवर्गियों के मन में कुंठा और अहमन्यता सी/गरीबों के अस्तित्व पर यह जमी है सदियों से। कवि स्वयं इस बर्फ से बाहर आना चाहता है। रिलायंस पर अगली कविता है। ‘शेयर खान’ कविता में उन्होंने ज्वलन्त मुद्दे उठाए हैं और प्रश्न भी। कवि का व्यंग्य देखिए-ये जो दसियों करोड़ गरीब है/ये अपनी मेहनत की कमाई/दाँव पर लगाकर/रगड़ रहे हैं अपने हाथ/भारत बनेगा बड़ी वैश्विक आर्थिक शक्ति/बड़ा ग्लोबल मार्केट/ नरकंकालों का भारी जखीरा। ‘महाकाल’ कविता में कवि ने अपने तरीके से बिम्बों का चित्रण किया है, घटनाओं का निरूपण किया है और अपने विचारों को खूब उड़ने दिया है।
इस तरह देखा जाए तो कवि शैलेन्द्र जी भिन्न धरातल पर खड़े होकर दुनिया देख रहे हैं, इससे बहुत अतर नहीं पड़ता यदि उनकी संवेदना वास्तविक तौर पर मानवता के साथ है। उनमें प्रतिभा है, अपनी बातों को कहने-व्यक्त करने का साहस भी है। उनकी कविताओं में कविता के तत्वों के साथ-साथ विरोध, नारेबाजी और अन्तर्द्वन्द है। पाठकों के लिए तनिक अधिक स्पष्टता की जरूरत है। वे दुनिया को सब कुछ बताना चाहते हैं जो उनके मन में है। दुनिया में सब कुछ भयानक, असुन्दर और वीभत्स ही नहीं है बल्कि यह दुनिया सत्यं-शिवं-सुन्दरम् भी है। हमारे पास मस्तिष्क है, हम सोचते हैं, देखते हैं और विचार करते हैं। हमारे पास हृदय भी है, करुणा, दया, संवेदना जैसी भावनाएं हैं। इनका उपयोग न हो तो हमारे जीवन की सरसता, मधुरता खतरे में पड़ जायेगी। कोई फाँस जकड़े रहेगी।
शैलेन्द्र जी बहुत गम्भीरता से अपने आसपास की दुनिया को देखते हैं, विसंगतियों को खोज निकालते हैं। वे इस स्थिति को बदलने की इच्छा रखते हैं और मानवता के हित की बातें करते हैं। उनके पास भाव-सामर्थ्य है,भाषा-बोली और शब्द सामर्थ्य है। साथ ही उनके पास संघर्ष का जोश-जज्बा भी है। संघर्ष ही हमें आगे बढ़ाता है, हमें जीवन्त रखता है और हमारी प्राण-चेतना को जागृत करता है। उनकी कविताओं में हिन्दी के साथ-साथ उर्दू,अंग्रेजी और स्थानीय शब्द भरे पड़े हैं। उनकी शैली में विविधता है और उनकी कविताओं का अपना प्रभाव है।
किताब : सीने में फाँस की तरह (कविता संग्रह)
कवि : शैलेन्द्र चौहान
मूल्य : रु 200/-
प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन,नई दिल्ली