9 अप्रैल। हम 3 दिसंबर को ‘दिव्यांग (विकलांग) दिवस’ मनाने लगे हैं लेकिन यह कम लोगों के लिए चिंता की बात है कि देश की लगभग पाँच प्रतिशत जनसंख्या दिव्यांग (विकलांग) भारतीयों की है और इनमें से दो तिहाई स्त्री-पुरुष गाँवों में रहते हैं। कि हमारी पाठ्य-पुस्तकों में इतनी बड़ी आबादी की कोई जानकारी नहीं है। कि आजादी के 75 बरसों में कुल 4 दिव्यांग व्यक्ति संसद और कुल 6 दिव्यांग व्यक्ति विधानसभाओं के सदस्य चुने जा सके हैं। कि अधिकांश दलों की तरफ से दिव्यांग स्त्री-पुरुषों को न तो समितियों में रखा जाता है और न चुनाव में टिकट दिया गया है। किसी दल में दिव्यांग प्रकोष्ठ नहीं है। कि राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा नामांकित व्यक्तियों में एक भी दिव्यांग नहीं है। कि दिल्ली के नागरिक संगठनों की माँग पर दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल से इस वर्ग से किसी व्यक्ति के नामांकन की सिफारिश जरूर की लेकिन यह अनुरोध नहीं स्वीकार हुआ। दूसरे शब्दों में विकलांगता से प्रभावित भारतीयों के लिए स्वराज दूर की बात बना हुआ है।
संयुक्त राष्ट्रसंघ की तरफ से विश्व भर में ‘विकलांगता वर्ष ‘ मनाने के कारण लंबे अरसे तक सरकारी उदासीनता के बाद श्री राजीव गांधी के कार्यकाल में एक राष्ट्रीय आयोग की नियुक्ति की गयी थी और अगले दशक में संसद ने एक विधेयक पारित करके शिक्षा और रोजगार में 5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की। इसको प्रभावशाली बनाने के लिए 2016 में एक नया विधेयक पारित किया गया। लेकिन जमीनी हालात बहुत नहीं बदले हैं। महानगरों में कुछ परिवर्तन किया गया है लेकिन शहरों, कस्बों और गाँवों में बहुत कुछ जस का तस है। विकलांग व्यक्ति सामाजिक उपेक्षा और आर्थिक बदहाली के शिकार हैं। इन्हें 2,500 रु. की मासिक मदद देकर हम अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
इस संदर्भ में पूर्वांचल विचार मंच द्वारा गुरु तेग बहादुर अस्पताल और कुछ सरोकारी नागरिक संगठनों के सहयोग से 8 अप्रैल को देश की राजधानी में एक महत्त्वपूर्ण नागरिक समागम का संयोजन किया गया। दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल, समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र आनंद, विकलांगता विभाग के आयुक्त रंजन मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय केंद्रीय विकलांग कल्याण संस्थान के उप-निदेशक डा. ललित और गुरु तेगबहादुर अस्पताल की निदेशिका डा. राठौर की हिस्सेदारी से यह प्रयास बहुत महत्त्वपूर्ण बन गया। संयोजक डा. राकेश रमण झा का स्वागत भाषण दिल्ली को दिव्यांग मित्र प्रदेश बनाने के ठोस सुझावों के कारण चर्चा का विषय बना। सभा के बाद 50 वाहनों का जरूरतमंद स्त्री-पुरुषों में नि:शुल्क वितरण इसकी सार्थकता का उल्लेखनीय पहलू रहा।
– आनंद कुमार