कर्नाटक में स्कूली शिक्षा बेहाल; शिक्षकों के 57 फीसदी से ज्यादा पद खाली

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23 अप्रैल। कर्नाटक में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भाजपा बड़े-बड़े दावे कर रही है। भाजपा की राज्य सरकार और केंद्र सरकार, दोनों शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति का दावा कर रही हैं। विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। शिक्षकों की भर्ती को लेकर प्रचार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोटो के साथ ई-विद्या योजना के संदर्भ में प्रचार चल रहा है। चमकीला प्रचार तो चारों तरफ है, लेकिन भाजपा ये नहीं बता रही कि कुल मिलाकर कर्नाटक में शिक्षा और सरकारी स्कूलों की स्थिति क्या है?

राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि कर्नाटक में शिक्षकों के आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। कर्नाटक में शिक्षकों के 141358 पद यानी 57 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं। देश में शिक्षकों के सबसे ज्यादा खाली पद कर्नाटक में हैं। इन खाली पदों में साल दर साल लगातार बढ़ोतरी ही हुई है। वर्ष 2019-20 में शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या 22,200 यानी 8.46 फीसदी थी, वर्ष 2020-21 में ये संख्या बढ़कर 34,079 यानी 14.62 फीसदी हो गई, और वर्ष 2021-2022 में ये आँकड़ा 1,41,358 यानी 57.57 फीसदी पर पहुँच गया।

जबकि वहीं कर्नाटक में 7,848 यानी 15 फीसदी सरकारी स्कूल मात्र एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। 26,320 स्कूलों में पुस्तकालय नहीं है। जिन स्कूलों में पुस्तकालय है, जरूरी नहीं कि किताबें भी हों। 23,185 यानी मात्र 47 फीसदी स्कूलों में किताबों वाली लाइब्रेरी है। 25,862 यानी 52 फीसदी स्कूलों में बिजली नहीं है। 207 स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए पीने के पानी की सुविधा नहीं है। 28,778 यानी 58 फीसदी स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है। 29,022 यानी 58 फीसदी स्कूलों में मेडिकल सुविधा नहीं है।

(‘न्यूज क्लिक’ से साभार)

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