— विनोद कोचर —
वर्तमान चुनावी मौसम में आरएसएस/बीजेपी ने पाकिस्तान, मुसलमान और हेमंत करकरे जैसे शहीद देशभक्त से दुश्मनी के आधार पर, ‘राष्ट्रवाद’ की नकाब ओढ़कर, तर्कहीन हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण को अपने चुनाव प्रचार का मुख्य आधार बनाया हुआ है। ऐसे माहौल में पाकिस्तान सरकार और वहाँ की एक पत्रकार ज़ाहिदा हिना की, जलियांवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में, तारीफ करने से, इस खतरे के बावजूद मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूं कि आरएसएस/मोदीभक्त मुझे देशद्रोही होने का प्रमाणपत्र दे सकते हैं! मुझे इनके प्रमाणपत्र की न तो कोई जरूरत है और न ही इनके नकली ‘राष्ट्रवाद’ में मेरी कोई आस्था है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की 100वीं बरसी पर पाकिस्तान ने पहली बार, इससे जुड़े दुर्लभ दस्तावेजों की प्रदर्शनी लगाई है। लाहौर हैरिटेज म्यूज़ियम में 6 दिन चलने वाली प्रदर्शनी 19 अप्रैल से शुरू हुई है। इसमें जलियांवाला बाग नरसंहार और मार्शल लॉ से जुड़े करीब 70 ऐतिहासिक दस्तावेज प्रदर्शित किये गए हैं। इससे एक साल पहले पाकिस्तान ने क्रांतिकारी भगतसिंह पर चले मुकदमे से जुड़े कुछ दस्तावेज सार्वजानिक किये थे। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लेखागार विभाग के निदेशक अब्बास चुगतई ने बताया कि पाकिस्तान सरकार ने विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं और प्रख्यात हस्तियों से जुड़े प्राचीन दस्तावेज सार्वजनिक करने का फैसला किया है, ताकि लोग जान सकें कि उस दौर में क्या हुआ था।
इसी संदर्भ में, भारत के विभाजन से दुखी, पाकिस्तान की मशहूर पत्रकार ज़ाहिदा हिना ने एक लेख लिखा है जिसे पढ़कर इस पत्रकार की कलम को चूम लेने का जी चाहता है। ज़ाहिदा हिना लिखती हैं कि,
“….जलियांवाला बाग तहरीके आजादी को बढ़ावा देने का बहुत बड़ा सबब बना और भगतसिंह तथा उधमसिंह जैसे शेरदिल पैदा हुए। भगतसिंह ने जलियांवाला बाग जाकर वहां की खाक़ चूमी थी और बर्तानवी राज से लड़ने की कसम खाई थी। आज अगर हम तहरीके आजादी के बारे में पढ़ें, तो अंदाज़ा होता है कि रॉलेट ऐक्ट और जलियांवाला बाग, इस तहरीक के लिए मील के पत्थर साबित हुए। ये अगर न होते तो हमें आजादी देर से मिलती।”
पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है और अमृतसर भारत में है। भगतसिंह और उधमसिंह, हिन्दू (सिख) देशभक्त थे। ज़ाहिदा हिना मुसलमान है। फिर भी इन्होंने हिन्दू देशभक्तों और जलियांवाला बाग की हृदयविदारक यादों के इतिहास से, दुनिया की नई पीढ़ी को वाकिफ़ कराने का स्तुत्य प्रयास किया है।
क्या आरएसएस और नरेंद्र मोदी से ये अपेक्षा की जा सकती है कि वे आज़ादी की जंग में शहीद हुए अनगिनत मुस्लिम देशभक्तों की यादों के इतिहास से दुनिया की नई पीढ़ी को अवगत कराने की कोई कोशिश करेंगे? मुसलमानों के खिलाफ अपने भाषणों और कर्मों से जहर उगलने वाले प्रज्ञा ठाकुरऔर साक्षी महाराज जैसे लोगों को लोकसभा चुनावों में टिकट देनेवालों से ऐसी अपेक्षा करने की मूर्खता, कम से कम, मैं तो नहीं कर सकता। रामायण और महाभारत ने मुझे तो यही सिखाया है कि शत्रु के गुणों की तारीफ करने से हमें कतई हिचकिचाना नहीं चाहिए।गुणग्राहकता एक मानवीय तासीर है जो शत्रु या मित्र की दीवारों की कैद से आज़ाद रहती है।