बजरंग दल का नाम देखें या काम?

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— विनोद कोचर —

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र ‘सर्व जनांगदा शान्तिय तोटा’ (सभी लोगों के लिए शांति का बगीचा) में यह वादा किया है कि वह सत्ता में आने के एक साल के भीतर उन सभी ‘अन्यायपूर्ण और जनविरोधी कानूनों’ को निरस्त करेगी, जो भाजपा सरकार द्वारा लाए गए थे।

मुख्य विपक्षी दल ने कहा, ‘कांग्रेस जाति और धर्म के आधार पर समुदायों के बीच नफरत फैलाने वाले संगठनों के खिलाफ ठोस और निर्णायक कार्रवाई करने को प्रतिबद्ध है। हमारा मानना है कि कानून और संविधान पवित्र है। कोई व्यक्ति या बजरंग दल, पीएफआई और नफरत एवं शत्रुता फैलाने वाले दूसरे संगठन, चाहे वह बहुसंख्यकों के बीच के हों या अल्पसंख्यकों के बीच के हों, कानून और संविधान का उल्लंघन नहीं कर सकते।’

कोई भी समझदार और शांतिप्रिय व्यक्ति इस तरह के चुनावी वादे का समर्थन ही करेगा क्योंकि इस वादे में संविधान के बुनियादी जीवन मूल्यों पर, आरएसएस परिवार के बजरंगदल तथा अल्पसंख्यक समुदाय के पीएफआई जैसे साम्प्रदायिक, नफरत व हिंसा फैलाऊ संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का संकल्प किया गया है।

लेकिन इस घोषणा के शब्दार्थ में से सिर्फ ‘बजरंग’ शब्द को उठाकर कांग्रेस पर प्रहार करने वाले भाजपा के शीर्षस्थ नेता नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं वह बजरंगबली के प्रति उनकी आस्था का नहीं अपितु बजरंगबली के गरिमामय व चरित्रवान व्यक्तित्व पर कीचड़ उछालने वाली उनकी सत्तालोलुप दुष्टबुद्धि का ही परिचायक है।

बजरंग दल को उसके साम्प्रदायिक, हिंसक व नफरत फैलाऊ कारनामों की कसौटी पर कसा जाएगा, न कि उसके नामकरण के आधार पर।

फूल की पहचान उसकी खुशबू या बदबू के आधार पर ही की जाती है न कि उसके नाम के आधार पर।

बेशरम के फूल का नाम गुलाब रख देने से, उस बेशरम के फूल से गुलाब की खुशबू तो नहीं आ सकती!

मोदी/शाह कर्नाटक के मतदाताओं को ये कहकर बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस बजरंगदल पर बैन लगाने की घोषणा करके बजरंगबली को ताले में बंद करना चाहते हैं।

बजरंगबली को कांग्रेस तो क्या, दुनिया की कोई भी बड़ी से बड़ी हस्ती, न तो आजतक कभी भी ताले में बंद कर पायी है, और न ही भविष्य में भी कभी ताले में बंद कर सकती है।

अलबत्ता, आरएसएस जरूर अपने ‘बजरंगदल’ जैसे संगठनों के जरिये बजरंगबली को बदनाम करने पर आमादा है।

बजरंगबली तो ‘कुमति निवार सुमति के संगी’ अर्थात दुष्टबुद्धि के निवारक और सद्बुद्धि के साथी हैं जबकि ‘बजरंगदल’, ठीक इसके विपरीत, दुष्टबुद्धि का साथी और सद्बुद्धि का शत्रु, अपनी अबतक की करतूतों से खुद को साबित कर चुका है।

ऐसे बजरंगदल के खिलाफ यथोचित कार्रवाई करने का वादा करके कांग्रेस शांतिप्रिय मतदाताओं के मन की ही बात कर रही है।

बकौल दुष्यंत –
कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप?
जो रौशनी थी, वो भी सलामत नहीं रही।

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