हिन्दू कोड बिल और समान नागरिक संहिता

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— प्रवीण मलहोत्रा —

जाद भारत में समान नागरिक संहिता के सबसे प्रबल समर्थक पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. बीआर आंबेडकर तथा डॉ. राममनोहर लोहिया थे। इनमें से प्रथम दो नेता संविधान सभा के महत्त्वपूर्ण सदस्य भी थे। पं. नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री तथा डॉ. आंबेडकर संविधान की मसौदा समीति (ड्राफ्ट कमेटी) के अध्यक्ष थे।

संविधान सभा में जब हिन्दू संहिता कानून (हिन्दू कोड बिल) और समान नागरिक संहिता पर बहस हो रही थी तब संविधान सभा में दो गुट बन गए थे। प्रगतिशील गुट का नेतृत्व पं.नेहरू और डॉ. आंबेडकर कर रहे थे तथा पुरातनपंथी कट्टर हिंदुओं का प्रतिनिधित्व डॉ. राजेंद्र प्रसाद कर रहे थे, जिन्हें बाद में वल्लभ भाई पटेल के समर्थन से सी.राजगोपालाचारी के ऊपर वरीयता देते हुए देश का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया।

हिन्दू पुरातनपंथी हिन्दू कोड बिल में परिवर्तन के मुखर विरोधी थे। वे सम्पत्ति में स्त्रियों की बराबरी की हिस्सेदारी का विरोध कर रहे थे। वे तलाक और एकल पति-पत्नी व्यवस्था के भी विरोधी थे तथा बहुपत्नी व्यवस्था के समर्थक थे। इन पुरातनपंथी कट्टर हिंदुओं का नेतृत्व हिन्दू महासभा, आरएसएस और स्वामी करपात्री कर रहे थे। स्वामी करपात्री को तो इस पर भी आपत्ति थी कि एक पूर्व अछूत डॉ. आंबेडकर, जो कि कानून मंत्री थे, को ब्राह्मणों के विशेषाधिकार की बातों में हस्तक्षेप करने का कोई हक नहीं है। उनका तर्क था कि हिन्दू जनमानस अपने कानूनों की दैवीय उत्पत्ति में विश्वास रखता है।

आजादी के बाद जिन लोगों ने हिन्दू संहिता में बदलावों का घोर विरोध किया वही लोग आज समान नागरिक संहिता के प्रबल समर्थक बन गए हैं। क्योंकि कट्टर मुस्लिम उलेमा समान नागरिक संहिता के विरोधी हैं। जो तर्क हिन्दू पुरातनपंथी नेताओं ने हिन्दू संहिता में बदलाव के विरोध में दिया था वही तर्क मुस्लिम उलेमा समान नागरिक संहिता के विरोध में देते हैं।

भारतीय संविधान की धारा 44 कहती है कि “राज्य देश के समस्त भाग में रहने वाले नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता के निर्माण का प्रयास करेगा।”

संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों ने इस धारा का जबरदस्त विरोध किया था। उनका कहना था कि मुसलमानों के हक, उनका उत्तराधिकार, उनके विवाह और उनका तलाक पूरी तरह से उनके मजहब पर निर्भर है। उनका तर्क यह भी था कि संविधान के मूल अधिकार के प्रावधान में किसी भी नागरिक को उसके धर्म का प्रचार और उसका पालन करने की पूरी आजादी दी गयी है। धर्म के पालन की आजादी और समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी अवधारणा है।

हिन्दू पुरातनपंथियों के प्रबल विरोध, आपत्तियों और संशोधनों के कारण, जिनका नेतृत्व प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद कर रहे थे, प्रथम आमचुनाव से पूर्व कामचलाऊ (तदर्थ) संसद में हिन्दू कोड बिल पारित नहीं हो पाया। दुखी होकर डॉ. आंबेडकर ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में कानून मंत्री के पद से इस्तीफा देकर अपनी अलग पार्टी “अनुसूचित जाति महासंघ” (शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन) बना ली।

प्रथम आमचुनाव (1951-52) में हिन्दू कोड बिल का मुद्दा छाया रहा। आम चुनाव में पं. नेहरू का सामना हिन्दू कोड बिल के कट्टर विरोधी भगवा वस्त्रधारी नेता दत्त बह्मचारी नाम के एक हिन्दू साधु से हुआ। प्रथम आमचुनाव में पं. नेहरू और कांग्रेस पार्टी की शानदार जीत के बाद हिन्दू कोड बिल विरोधी आंदोलन कमजोर पड़ गया। लगभग दस साल की रस्साकशी के बाद नेहरू और आंबेडकर का हिन्दू कोड बिल संसद में पारित हो ही गया। लेकिन यह उस रूप में एक ही बार पारित नहीं हो पाया जैसा डॉ.आंबेडकर चाहते थे। बल्कि यह टुकड़े-टुकड़े में पारित किया गया। सन 1955 में हिन्दू विवाह अधिनियम और सन 1956 में हिन्दू उत्तराधिकार, अल्पसंख्यक और अभिभावक, दत्तक संतान और देखभाल अधिनियम पारित किया गया।

जिन हिन्दू पुरातनपंथियों और उनकी प्रतिनिधि संस्थाओं – हिन्दू महासभा और आरएसएस – ने हिन्दू कोड बिल का पुरजोर विरोध किया था, आज वही समान नागरिक संहिता के प्रबल समर्थक बन कर उभरे हैं। इसके पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम पर्सनल लॉ को निष्प्रभावी करना है। वे किसी व्यापक जनहित, बहुलतावादी और समतामूलक समाज की स्थापना के उद्देश्य से समान नागरिक संहिता लागू नहीं करना चाहते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम समाज सहित सभी अल्पसंख्यकों के निजी कानूनों को समाप्त करना है तथा इसके बाद मनु संहिता और याज्ञवल्क्य स्मृति के आधार पर हिन्दू धार्मिक कानूनों और परंपराओं को पुनः लागू करना है।

पुरातनपंथियों के इस छिपे उद्देश्य का अर्थ यह नहीं है कि देश का आधुनिक सोच का प्रगतिशील वर्ग समान नागरिक संहिता का विरोध करे। मुस्लिम समाज सहित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को विश्वास में लेकर समान नागरिक संहिता, जो हमारे संविधान के नीति निदेशक तत्त्व का हिस्सा है, को लागू करने का प्रयास और समर्थन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही हिन्दू पुरातनपंथियों के षड्यंत्र को भी सफल नहीं होने देना है। तभी हमारा देश सही अर्थों में एक प्रगतिशील एवं आधुनिक राष्ट्र बनेगा। यही पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ.बीआर आंबेडकर तथा डॉ. राममनोहर लोहिया को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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