— विनोद कोचर —
नरेन्द्र मोदी के 9 साल के कार्यकाल में जिस बात का भारत को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है वो है भारत की धर्मनिरपेक्ष अर्थात सर्वधर्म समभावी छवि को निरंतर क्षतिग्रस्त किया जाना।
इस धर्मनिरपेक्ष छवि का उदगम, या कहिए कि इसकी गंगोत्री है – भारत का संविधान!
संविधान पर मोदी राज में जितने हमले हुए हैं, ये सारे हमले आरएसएस की हिंदूराष्ट्रवादी विचारधारा के अनुयायियों ने ही किये हैं जिनकी बुनियादी मान्यता संविधान की आत्मा को नष्ट किये बिना कभी साकार हो ही नहीं सकती।इस तथ्य को सभी जानते हैं।
इनकी हिंदूराष्ट्रवादी अवधारणा में इतने पेच हैं कि जिन्हें सुलझाना खुद आरएसएस के लिए भी नामुमकिन है।
इस अवधारणा में शाकाहारी बनाम मांसाहारी हिंदुओं का द्वन्द्व है, गोमांस खाने और नहीं खाने वाले हिंदुओं का द्वन्द्व है, सवर्ण और दलित हिंदुओं का द्वन्द्व है और सबसे जादा द्वन्द्व तो हजारों जातियों में बॅंटे हिंदुओं के परस्पर द्वन्द्व हैं।
इन तमाम द्वन्द्वों को पाटने का काम भारत का संविधान आजादी के बाद से ही करता आ रहा है और इसी संवैधानिक कोशिश में से भारत की वह नैतिक शक्ति अभिव्यक्त होती रही है, जिससे सबसे ज्यादा डर उन देशों को लगता है जिन्हें, भारत को मजबूत होता हुआ देखना, फूटी आँखों भी नहीं सुहाता है।
इन देशों में अग्रणी है पाकिस्तान जिसका संविधान सर्वधर्म समभावी न होकर इस्लामी गणराज्य की मान्यता पर आधारित है।
उसे भारत के मुसलमानों का, भारत के विरोध और पाकिस्तान के पक्ष में सहयोग तभी मिल सकता है जब आरएसएस/बीजेपी के हिंदूराष्ट्रवादी मूल एजेंडे को लागू करने के लिए धीरे धीरे भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को नष्ट कर दिया जाय।
आरएसएस और उसकी उपज नरेंद्र मोदी का कई सालों से अध्ययन करने वाले विदेशी और स्वदेशी राजनयिकों का भी यही मत है।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख, जनरल असद दुर्रानी और भारत की खुफिया एजेंसी, रॉ के पूर्व प्रमुख ए एस दुलत ने संयुक्त रूप से एक किताब लिखी है जिसका शीर्षक है – ‘द स्पाई क्रॉनिकल : रॉ, आईएसआई एंड द इलूज़न ऑफ पीस’।
इस किताब में ये दावा किया गया है कि आईएसआई नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से खुश है क्योंकि उसे उम्मीद है कि मोदी ऐसा कदम उठाएंगे जिससे भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचेगा और फलस्वरूप पाकिस्तान को फायदा होगा।
ये आकलन सच होता नजर आ रहा है।
कश्मीर समस्या आजादी के समय से ही बनी हुई है जिसके लिए नेहरू की कश्मीर नीति की लाख खामियों के बावजूद, कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक आवाजें इतनी कभी नहीं उठीं जितनी मोदी राज के इन 9 सालों में उठ रही हैं।
राष्ट्रभक्ति की कसौटी पर आरएसएस/बीजेपी, कांग्रेस की बनिस्बत ज्यादा खोटी नजर आ रही हैं।