30 मई। 1-2 अप्रैल 2023 को बांद्राभान नर्मदापुरम में नदी घाटी मंच और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया था कि 1 से 7 जून 2023 तक नदी बचाओ-पर्यावरण बचाओ संघर्ष सप्ताह का आयोजन देशभर में किया जाएगा। विनाशकारी “विकास”, कार्पोरेट लूट और दमन के खिलाफ नदियों, अन्य जलस्रोतों, प्राकृतिक संसाधनों और अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत समुदायों की आवाज को मिलकर एकसाथ उठाना समय की मांग है।
देश के जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर आह्वान किया गया है कि प्राकृतिक संसाधन जीवन का आधार होता है, जिससे भोजन, आवास, प्राणवायु, पानी जैसी जरूरतों की पूर्ति होती है, हम चाहते हैं कि इसका अंधाधुंध दोहन न हो। अवैध रेतखनन जलचक्र तोड़कर नदी के जल प्रवाह में बड़ी गिरावट लाता है। बहती हुई नदी में शहरों की गंदगी, नदी किनारे के खेतों में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक खाद एवं कीटनाशक और औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ मिलने से पानी पीने लायक शुद्ध या निर्मल नहीं रहा है।
संविधान के अनुच्छेद 48 व 51 तथा विविध पर्यावरणीय कानूनों और समय-समय पर न्यायालयों द्वारा दिये गए आदेशों का संपूर्ण पालन हो। यह जरूरी है कि “विकास” की अवधारणा बदली जाए। विकेंद्रित जल एवं उर्जा नियोजन के साथ बड़े बांधों का विनाश टालने के लिए छोटे तालाब, बांध आदि से जल ग्रहण क्षेत्र का विकास हो। अतः चुने हुए जनप्रतिनिधि के नाते आपके क्षेत्र, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उठाए जा रहे जल जंगल जमीन और विकास के उपरोक्त मुद्दों पर जनता का प्रतिनिधित्व करें।
450 में से 350 नदियाँ प्रदूषित
भयावहता का अंदाजा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इस आकलन से लगाया जा सकता है कि देश की 450 में से 350 नदियां प्रदूषित हैं। 10 साल पहले 121 ही प्रदूषित थीं। हजारों करोड़ रुपए नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर खर्च हो चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई भी सरकार यह दावा करने में समर्थ नहीं हो पायी है कि उसने अपने यहां से बहने वाली नदियों प्रदूषण मुक्त कर दिया है। क्योंकि प्रदूषषण मुक्त करने के लिए बनाई जाने वाली योजनाएं धरातल पर कम ही उतर पाती हैं।
सुझाव
# नदियों के प्रशासकीय प्रबंधन की जगह पर्यावरणीय प्रबंधन की दृष्टि से निगरानी तंत्र विकसित करना चाहिए। जिसमें पारिस्थितिकीय तंत्र, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की समझ रखने वाले विशेषज्ञ को शामिल किया जाना आवश्यक है।
# जीवित नदी कहा जाता है तो इसे संरक्षित करने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। जिसमें नदी,जंगल और जमीन को एकसाथ रखकर विचार किया जाना चाहिए। वर्तमान में आईपीसी की धारा 377 (सन 1860) में नदी जल को प्रदूषित करने पर मात्र 500 रुपये का जुर्माना है।
# नदी किनारे के गांवों में शत-प्रतिशत जैविक खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाए।
# नदी को प्रदूषित करने वाले कल कारखाने, अस्पताल, गैराज आदि पर टैक्स लगाया जाए। उस राशि को नदी में मिलने वाले प्रदूषित पानी को ट्रीटमेंट प्लांट में खर्च किया जाए।
# स्थानीय समुदाय ही नदी को अवैध खनन से बचा सकता है। इसलिए निगरानी के लिए बनने वाली समितियों में स्थानीय लोगों को अनिवार्य तौर पर शामिल करना चाहिए।
# रेत की तुलना में प्रमुख खनिज के तौर सूचीबद्ध कोयले के लिए पर्यावरणीय अनुमति सख्त है। माइन्स एंड मिनरल रेगुलेशन एक्ट 1957 में प्रमुख और उपखनिज को परिभाषित किया गया है। 1957 से अबतक स्थिति बदल चुकी है और रेत का इस्तेमाल कई गुना बढ़ गया है। अतः रेत को भी प्रमुख खनिज में शामिल कर सख्त पर्यावरणीय अनुमति का प्रावधान किया जाए।
# वर्ष 1985 में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय बनने के 37 वर्षों बाद भी नदियों पर अनुसंधान के लिए एक संस्थान तक तैयार नहीं किया है। इसलिए नदियों पर अनुसंधान के लिए एक संस्थान बनाया जाए।
– राजकुमार सिन्हा