13 जून। एक तरफ देश आजादी के ‘अमृत काल’ में पहुँच गया है, तो वहीं दूसरी तरफ देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ लोगों को छुआछूत के चलते पीने का पानी नहीं नसीब हो रहा है। ऐसा ही एक मामला रांची के सिल्ली प्रखंड स्थित नवाडीह गाँव का है। यहाँ लोहरा जनजाति के कुछ परिवारों को पानी के लिए रोजाना ज़लालत झेलनी पड़ती है। गाँव के ही अन्य पिछड़ा समुदाय(कुर्मी,लाई, लोहार आदि) के लोग छुआछूत के चलते इन्हें अपने कुएँ से पानी नहीं भरने देते। यह लंबे समय से जारी है। ‘जनज्वार’ की रिपोर्ट के मुताबिक, गाँव के इन लोहरा परिवारों के मुहल्ले में न तो सरकारी चापानल (हैंडपंप) है, न कुआँ और न जलमीनार।
इन लोगों को पीने के पानी के लिए गाँव के बाहर तालाब के समीप एक दांड़ी का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन गर्मी के आते ही वह सूख जाता है। इस दांड़ी पर बाकी अन्य जाति के लोग पानी लेने नहीं जाते हैं, जबकि यह दांड़ी उन्हीं लोगों की जमीन पर बना है। यही वजह है, कि गर्मियों में लोहरा जनजाति की महिलाओं का पूरा दिन पानी के जुगाड़ में बीत जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी नेता लक्ष्मीनारायण मुंडा ने बताया कि सिल्ली के नावाडीह गाँव के सभी कुएँ ऊँची जातिवालों के हैं, जिसमें से दलित पानी नहीं भर सकते हैं।
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