जब नेताजी ने कहा, गांधीजी मेरे गुरु हैं

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— विनोद कोचर —

लोहिया जयंती पर जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने, विषय से हटकर, ये कहते हुए नरेंद्र मोदी की विरुदावली गाई थी कि जिस तरह महात्मा गांधी के पास कोई डिग्री न होते हुए भी वे प्रतिभाशाली थे, उसी प्रकार नरेंद्र मोदी भी डिग्री विहीन होने के बावजूद प्रतिभाशाली हैं।

और अब, भारत की भीतरी और बाहरी सुरक्षा पर मॅंडरा रहे खतरों से बेखबर,भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को याद करने के बहाने ये कहकर नरेंद्र मोदी की विरुदावली गा रहे हैं कि ‘नरेंद्र मोदी, नेताजी द्वारा बनाए गए राष्ट्रवाद के विचारों को फिर से जीवित करने के इच्छुक हैं।’

सुपर नौकरशाहों व अन्य स्तुति गायकों के तानेबाने से बुने गए ‘चक्रवर्ती सम्राट’ के अपने सपने में डूबी सरकार के उपरोक्त यशोगायकों में से एक ने मोदीजी को गांधीजी के समकक्ष बताने की दुर्भावना से गांधी को बदनाम करने की कोशिश की, और उसके बाद, दूसरे ने नरेंद्र मोदी को नेताजी के समकक्ष बताने की दुर्भावना से नेताजी के राष्ट्रवाद को मोदीजी के संघी हिन्दूराष्ट्रवाद के समकक्ष बताने की जुर्रत कर डाली है।

ऐसा करने के लिए अजीत डोभाल ये कहने से भी नहीं चूके कि ‘एक नेताजी ही थे जिन्होंने गांधीजी को चुनौती देने का दुस्साहस किया।’

अजीत डोभाल इतना कहकर ही नहीं रुके। उन्होंने ये कहकर भी अप्रत्यक्ष रूप से गांधी पर हमला किया कि नेताजी भीख में आजादी नहीं चाहते थे, गोया भीख में आजादी पाने के तलबगार गांधीजी और कांग्रेस रही हो और इसीलिए नेताजी ने गांधीजी को चुनौती देने का साहस किया हो!

अजीत डोभाल का पद भले ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का हो लेकिन आजादी के ऐतिहासिक आंदोलन के गांधीजी एवं नेताजी जैसे महानायकों के बीच मतभेद के ऐसे झूठे और घटिया आरोप लगाने का, उनका ये कुकर्म उन्हें गुनहगारों के कठघरे में खड़ा करता है।

अजीत डोभाल बहुत पढ़े-लिखे हो सकते हैं लेकिन नेताजी और गांधीजी के रिश्तों के बारे में, नेताजी और गांधीजी के विचारों की समानता के बारे में, उनकी जानकारी, किसी संघी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी द्वारा फैलाई गई कपोल कल्पित झूठी जानकारी से अधिक, कुछ भी नहीं है।

आजादी के आंदोलन के ताजा इतिहास में तो ये दर्ज है कि नेताजी भी गांधीजी के विचारों के वैसे ही अनुयायी थे जैसे कि नेहरू, पटेल आदि अन्य नेता। आजादी के आंदोलन में आंदोलनकारियों के अलग अलग दो ही रास्ते थे–एक अहिंसा का और दूसरा हिंसा का।

लेकिन तथ्य ये भी है कि हिंसा और अहिंसा सिर्फ साधन थे जबकि दोनों रास्तों से आजादी पाने वाले रणबांकुरों का आजाद भारत के बारे में सपना एक ही था। वो सपना था स्वतंत्र भारत को एक स्वायत्तशासी, लोकतांत्रिक समतावादी भारत बनाने का। नेताजी भी यही चाहते थे और गांधीजी भी यही चाहते थे। यही था दोनों का राष्ट्रवाद जबकि नरेंद्र मोदी का हिन्दूराष्ट्रवाद अधिनायवादी, अलोकतांत्रिक, विषमतामूलक और नफरत फैलाऊ राष्ट्रवाद है जिसके कट्टर विरोधी थे नेताजी।

सच तो ये है कि हिंसा और अहिंसा के अलग अलग रास्तों पर चलने के बावजूद नेताजी अपनी आखिरी सांस तक गांधीजी को अपना गुरु मानते रहे।

सिंगापुर में जब नेताजी को समाचार मिला कि गांधीजी के नेतृत्व में 9 अगस्त 1942 से, ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ तथा ‘करो या मरो’ आंदोलन शुरू हो गया है और देशभर में आंदोलनकारियों को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जेलों में कैद किया जा रहा है, तो नेताजी ने इस बात के लिए अफसोस जाहिर किया कि ऐसे समय में गांधीजी का साथ देने के लिए वे भारत में क्यों नहीं हैं।

क्या 1920 का असहयोग आंदोलन और 1942 का ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन, आजादी की भीख मांगने वाले आंदोलन थे?

अजीत डोभाल की जानकारी के लिए उन्हें ये बताना भी जरूरी है कि देश छोड़कर चले जाने के बाद विदेशी धरती पर गठित आजाद हिंद फौज के साथ मिलकर नेताजी ने संभवतः अक्टूबर 1942 या 43 को गांधी जयंती का एक यादगार आयोजन किया था और प्रतिष्ठित एवं विश्वसनीय मासिक पत्रिका ‘नवनीत’ के अक्टूबर 2013 के अंक में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, इस कार्यक्रम में उन्होंने गांधीजी के बारे में कहा था कि –

‘ ..गांधीजी मेरे गुरु हैं। मैं अपने गुरु की स्मृति को प्रणाम करता हूँ।
‘इस क्षितिज के पार इन बल खाती नदियों, लहराते जंगलों के पार, हमारी स्वर्णभूमि है, हमारे सपनों का देश।
‘वह देश संसार का सबसे सुंदर देश है। उसके आकाश में चांद अजब रोशनी करता है। उसके पेड़ों की डाली पर विहंग अजब मिठास से बोलते हैं और उन पेड़ों की छांव में बैठकर, वहाँ के ऋषियों ने जीवन के विभिन्न रहस्य हमें बताए हैं। गांधी, जिनकी जयंती हम मना रहे हैं, वह आधुनिक ऋषि हैं। उनकी अहिंसा ही मानवता की एकमात्र आशा है।

‘लेकिन गुलाम देश की अहिंसा, अहिंसा नहीं, कमजोरी होती है। इसलिए हम पहले अपने देश को आजाद करेंगे।मौत की मंजिलें पार करते हुए, हमें दिल्ली पहुंचना है। जिस दिन दिल्ली पर तिरंगा झंडा लहराएगा, उस दिन मणि जटित सिंहासन पर हम महात्मा को बिठाएंगे, गंगाजल से उनके पैर धुलाएँगे और उनसे कहेंगे कि अब आप संसार का नेतृत्व अपने हाथ में लीजिए। अब आपकी अहिंसा की जरूरत है मेरे गुरुदेव।’

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