संयुक्त किसान मोर्चा का पूर्वी उ.प्र. का सम्मेलन संपन्न; भूमि अधिग्रहण विरोधी संघर्षों का समर्थन

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1 जुलाई। संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वावधान में पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न किसान मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों की वाराणसी के पराड़कर स्मृति सभागार में बैठक संपन्न हुई। बैठक में सर्वसम्मति से सर्व सेवा संघ पर हो रहे फासीवादी हमले को गांधी, विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण की लोकतांत्रिक विरासत पर हमला मानते हुए निंदा की गई और इसके खिलाफ जारी संघर्ष के साथ एकजुटता प्रकट की गई ।

वक्ताओं ने कहा कि डबल इंजन की फासीवादी सरकार आजमगढ़, मऊ, बनारस, चंदौली, सोनभद्र में जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई के लिए उतारू है, जिसमें भारी पैमाने पर लोगों की खेती, जमीन, मकान, संस्थान को जमींदोज कर देने की रणनीति है। लोग अपनी लोकतांत्रिक, संवैधानिक, वैचारिक आजादी, आजीविका और अस्तित्व के लिए भी लाचार हो जाएंगे।आजमगढ़(खिरिया बाग) के बाद अब बनारस(वरुणा नदी के किनारे गांधी शिक्षण संस्थान, मोहन सराय, दशाश्वमेध घाट पर किल्ला), चंदौली (नवगढ़,चकिया, सिकंदरपुर, कैमूर), मिर्जापुर(मणिहान-कोटवा पांडे), सोनभद्र(भैसवार-घोरावल), मऊ(ताल रतोय) और लखीमपुर खीरी इलाके में भूमि अधिग्रहण के मुद्दों को जनता द्वारा उठाया जा रहा है। ऐसी सारी लड़ाइयां हम सब की साझी लड़ाइयां हैं। संघर्ष में हम सभी जाति-धर्म से ऊपर उठकर संघर्ष के साथी हैं। सरकार कारपोरेट के लिए जनता की रिहायशी, उपजाऊ खेती की नामी-बेनामी(recorded and non-recorded) जमीन से लोगों को बेदखल करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके लिए बुद्धिजीवी वर्ग को चुप कराने, भ्रमित करने के लिए गोदी मीडिया दिन रात काम कर रहा है। इन्वेस्टर्स समिट, एयरपोर्ट विस्तारीकरण, वन्य अधिकार कानून, पर्यावरण संरक्षण, रिजर्व टाईगर्स, पर्यटन, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, खनन, माल ढुलाई केंद्र, ग्रीन बेल्ट, एक्सप्रेस वे, आदि तमाम लोक लुभावने नामों से भूमि अधिग्रहण के बाद एक तरफ जनता उजड़ेगी और दूसरी तरफ आजीविका के साथ पर्यावरण संकट और बढ़ जाएगा। इसीलिए लोकतंत्रविरोधी सरकार की बुलडोजर नीति के खिलाफ किसान, मजदूर सड़क पर आकर आदोलन के लिए मजबूर हैं।

वक्ताओं ने कहा कि देश में जब सभी पूंजीवादी पक्ष विपक्ष की पार्टियां मौन हो जाए, न्याय पंगु हो जाए, तब जनता को सड़क पर आना होगा और जनविकल्प का रास्ता तैयार करना होगा।

चौतरफा आंदोलन की परिस्थिति से सरकार बखूबी परिचित है लेकिन इन जनांदोलनों का पक्ष सुनने के बजाय पुलिसिया तरीके से निपटाना चाहती है। लिहाजा, पूर्वी उ.प्र. के मजदूर-किसान संगठनों को आपसी तालमेल करना होगा।

बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय समन्वय समिति, प्रदेश संयोजन समिति और यूपी जनरल बाडी की उपस्थिति में मेहनतकश मुक्ति मोर्चा, इंकलाबी मजदूर केंद्र, खेत मजदूर किसान संग्राम समिति, किसान मजदूर परिषद, जनवादी किसान सभा, अखिल भारतीय किसान महासभा, अ.भा.क्रांतिकारी किसान सभा, क्रांतिकारी किसान यूनियन, मजदूर किसान एकता मंच, जय किसान आंदोलन, संग्रामी किसान समिति, भारतीय किसान यूनियन, जन स्वराज, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, भगतसिंह स्टूडेंट मोर्चा, अखिल भारतीय किसान फेडरेशन आदि संगठनों के सत्यदेव पाल, राजनेत यादव, प्रह्लाद सिंह, ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा, चौधरी राजेंद्र, रामजी सिंह, तेज नारायण यादव, राजेश आज़ाद विद्याधर, श्रवण कुशवाहा, मणिदेव चतुर्वेदी, प्रज्ञा सिंह, कृपा वर्मा, अअफलातून, सिंहनाथ सिंह, राजेश कुमार, रजनीश भारती, अनिल सिंह, शशांक, रितेश विद्यार्थी, कन्हैया, डॉ महेश विक्रम, दुखहरण राम, तेज बहादुर, सौरभ कुमार, विमल त्रिवेदी, बलवंत यादव, शशिकांत, उमाकांत, गरीब राजभर, डॉ संतोष कुमार, शिवराम यादव, सत्यप्रकाश, सत्येंद्र कुमार प्रजापति, सदानंद पटेल, रामदयाल वर्मा, रमेश कुमार सिंह, कैलाश शर्मा, कामरेड रमाशंकर, सरोज, बचाऊ राम, लक्ष्मण प्रसाद मौर्य, कमलेश कुमार राजभर, मो. अहमद अंसारी, पराग, श्याम, महेंद्र यादव, रामजनम, संतोष कुमार सिंह, परशुराम मौर्य, सिद्धि बिस्मिल, संदीप, डॉ राजेश, पंकज भाई, जुम्मन, रामनयन यादव आदि उपस्थित थे।

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