माधुरी कृष्णस्वामी पर जिला बदर की कार्रवाई के विरोध में आदिवासियों ने निकाली रैली

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20 जुलाई। बुधवार को बड़वानी (मप्र) में आदिवासियों के बीच कार्यरत जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में हजारों आदिवासी महिला एवं पुरुषों ने संगठन सहयोगी सामाजिक कार्यकर्ता माधुरी कृष्णस्वामी को जिला बदर किए जाने के आदेश को जागरूक आदिवासियों पर हमला बताते हुए तीखा विरोध किया।

आदिवासी महिलाओं के नेतृत्व में आदिवासियों की रैली इंद्रजीत हॉस्टल से शुरू होकर अंजड नाका होते हुए कलेक्टर कार्यालय पहुंची। कलेक्टर कार्यालय के बाहर हजारों आदिवासी महिला पुरुषों ने “सरकार तेरी तानाशाही नहीं चलेगी” और “हक नहीं तो जेल सही” के नारे लगाए। आदिवासियों द्वारा बुरहानपुर जिला प्रशासन की कड़ी निंदा की गई और सवाल उठाया गया कि आदिवासियों की सरकार कहाँ है? आदिवासियों के लिए विकास कहाँ है? जो सरकार हमें न इलाज देती है न शिक्षा देती है न फसल का सही दाम देती है उसे ही जिला बदर करना है !

जागृत आदिवासी दलित संगठन की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में आदिवासी कार्यकर्ता नासरी बाई एवं हरसिंग जमरे ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने 15000 एकड़ जंगल को कटने दिया, और जंगल को बचाने के लिए खड़े उन आदिवासियों पर हमला चालू कर दिया, जिन्होंने जंगल के विनाश में सरकार की मिलीभगत को उजागर किया। अपनी चोरी को ढकने के लिए सरकार अब जागरूक आदिवासियों को गिरफ्तार कर रही है, वन अधिकार दावेदारों के घरों को तोड़ रही है और अब आदिवासियों के कानून की जानकार साथी माधुरी बहन को जिला बदर कर दिया है।

जंगल कटवाने वाले अधिकारियों के खिलाफ हो जिलाबदर की कार्रवाई

तारकी बाई ने कहा कि हम ‘बुरहानपुर प्रशासन’ को ‘जिलाबदर’ करने आए हैं–इस भ्रष्‍ट सरकार ने हमेशा हमारे कानून को दबाकर रखा है, अब हम कानून जान गए हैं, जागृत हो गए हैं, सरकार पर सवाल उठा रहे हैं, इसीलिए सरकार हमको दबाना चाह रही।

आंदोलन में यह भी मांग उठाई गई कि उन अधिकारियों के खिलाफ जिलाबदर की कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने जंगल कटवाए हैं। लेकिन सरकार आदिवासियों को दबाना चाहती है, उनके संवैधानिक आंदोलन को कुचलना चाहती है, इसीलिए संगठन की कार्यकर्ता पर जिलाबदर की कार्रवाई की गयी है।

हरसिंग भाई ने बड़े स्तर पर हो रहे पलायन के बारे में उल्लेख करते हुए कहा कि आदिवासी तेजी से अपने गांव छोड़कर गुजरात जा रहे हैं। जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए अंग्रेज सरकार से लड़ाई लड़ने वाले भीमा नायक के वंशज आज मजदूर बन कर महाराष्ट्र के दूरदराज के इलाकों में बंधुआ मजदूरी करने को मजबूर हैं।

आजादी के 75 साल बाद भी आदिवासी विकास कहां है?

आदिवासियों ने यह भी पूछा कि आजादी के 75 साल पूरे होने के बाद भी आदिवासी के लिए विकास कहां है? आज भी हमारे गांव-फलियों में सड़कें नहीं है। स्कूल भवन खानापूर्ति के लिए खुलते हैं, वहां योग्य शिक्षक नहीं हैं, शिक्षा के अभाव में हमारी युवा पीढ़ी बड़े किसानों और उद्योगपतियों के सस्ते मजदूर बनने को मजबूर है। अस्पताल आज भी संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। आयुष्मान कार्ड का झांसा देकर सरकार सार्वजनिक अस्पतालों को खत्म करने पर तुली है। आयुष्मान कार्ड होने के बाद भी आदिवासी कर्ज लेकर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवा रहा है और ज्यादा ब्याज के कर्ज में डूबता जा रहा हैं।

आदिवासियों ने मुख्यमंत्री के नाम एसडीएम को ज्ञापन सौंपा

मुख्यमंत्री के नाम एसडीएम को ज्ञापन सौंपकर आक्रोशित आदिवासियों ने घोषणा की- सरकार चाहे कितना भी दमन कर ले, हम अपने संवैधानिक हक और अधिकार लेकर रहेंगे। जल, जंगल, जमीन बचाने की, लूट और शोषण के खिलाफ भीमा नायक, खाज्या नायक, बिरसा मुंडा जैसे हमारे पूर्वजों की लड़ाई हम और भी आगे बढ़ाएंगे।

नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा भी माधुरी बहन को जिला बदर किए जाने के विरोध में मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया। रैली एवं घेराव के दौरान राजेंद्र मंडलोई, नर्मदा बचाओ आंदोलन से वाहिब भाई, कैलाश अवासे, कमला बहन, जन जागरण संगठन से रहेंदिया बाई, रसीद भाई, अशोक जैन, आदिवासी मुक्ति संगठन से गेंदाराम भाई, आदिवासी एकता परिषद से राजेश कनोजे एवं तिरंगा सोशल ग्रुप के गुरदीप सिंह शामिल रहे ।

माधुरी कृष्णस्वामी पर जिला बदर की कार्रवाई अन्यायपूर्ण : नर्मदा बचाओ आंदोलन

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, कमला यादव, पवन सोलंकी, राहुल यादव, वाहिद मंसूरी ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि बुरहानपुर जिले में आदिवासी संगठित होकर वन अधिकार और अन्य मुद्दों पर संघर्ष करते रहे हैं। उन्होंने कानून के अमल के साथ शासकीय स्तर से वन कटाई पर रोक लगाने के लिए भी आवाज उठायी है। जागृत दलित आदिवासी संगठन का नेतृत्व करती आयी माधुरी कृष्णस्वामी के खिलाफ, उपरोक्त परिस्थिति में एक साल तक जिले से बाहर करने का जिलाबदर का नोटिस शासन ने दिया, यह गंभीर और अन्यायपूर्ण है। माधुरी बहन और स्थानीय आदिवासियों के जवाब को नामंजूर करते हुए कार्रवाई निश्चित की। जनशक्ति के आधार पर अधिकार जताने वाले संगठनों पर म.प्र. शासन हर प्रकार से दबाव और दमन करता है, यह जनतंत्र के खिलाफ है।

अहिंसक, सत्याग्रही, संवैधानिक कार्य करने वालों को सत्यवादी प्रतिसाद और उनकी मांगों पर जवाब देने के बदले जिले से बाहर रखने की कार्रवाई संगठन पर आघात करने जैसा है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने माधुरी कृष्णस्वामी समेत आदिवासी नेतृत्व पर दर्ज किये झूठे प्रकरणों की वापसी और जिला बदर की कार्रवाई रद्द करने की मांग की है।


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