18 मई। दुनिया फिलिस्तीन में इजराइल द्वारा किया जा रहा नरसंहार देख रही है। फिलिस्तीनी इजराइली कब्जे को हटाने के लिए 1948 से संघर्षरत हैं। यह हजारों किलोमीटर दूर हो रहा है, जिससे पूरी दुनिया चिंतित है।
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर के जंगलों में अर्धसैनिक बलों द्वारा कैम्पों के नाम पर आदिवासी किसानों की जमीन पर किये जा रहे कब्जे के खिलाफ ग्रामवासी अहिंसक तरीके से विरोध कर रहे हैं क्योंकि कैम्प बनने के बाद आदिवासियों के जंगल में निस्तार के लिए जाने और जानवरों को ले जाने पर तमाम बंदिशें लग जाती हैं।
तब विरोध को कुचलने के लिए अर्धसैनिक बल ग्रामीणों को माओवादी बताकर निहत्थे आदिवासियों पर कहर ढाते हैं।
17 मई को हुई पुलिस फायरिंग में 3 आदिवासी मारे गए, 6 लापता हैं तथा गोलियों से 18 आदिवासी घायल हैं। पुलिस अधिकारी स्वयं यह आंशिक तौर पर स्वीकार कर रहे हैं।
किसान संघर्ष समिति और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने इस बर्बर पुलिस फायरिंग की निंदा करते हुए सवाल उठाया है कि जब कैम्प लगाने का आदिवासियों द्वारा विरोध किया जा रहा था, तो फिर 12 मई को कैम्प क्यों जबरदस्ती स्थापित किया गया? 13 मई से आदिवासियों ने विरोध स्वरूप धरना शुरू किया। अफसरों ने बातचीत करने के बजाय विरोध करनेवालों को सबक सिखाने के लिए 17 मई को फायरिंग क्यों की?
पुलिस अधिकारी 6 लापता आदिवासियों के बारे में तथा घायलों की वास्तविक स्थिति से ग्रामवासियों को अवगत कराने को क्यों तैयार नहीं हैं?
किसान संघर्ष समिति ने छत्तीसगढ़ सरकार से गोलीचालन के दोषी अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करने, मृतकों के परिवारजनों को 50 लाख मुआवजा राशि और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने तथा गोलीचालन की उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से न्यायिक जांच कराने की मांग की है।
किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने उपर्युक्त बयान जारी करते हुए मुख्यमंत्री से स्वयं घटनास्थल का निरीक्षण करने, ग्रामीणों से मिलकर तथ्यों का स्वयं अवलोकन करने तथा मानव अधिकार संगठनों की फैक्ट फाइंडिंग कमिटी भेजकर वास्तविकता को जानने और सबके सामने अविलंब लाने की अपील की है।
– भागवत परिहार, किसान संघर्ष समिति, मुलतापी