जन असंतोष से डूबती सरकारों को दंगे का सहारा?

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3 अगस्त। सरकार की नीतियों और महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार से दुखी बहुत से लोगों ने इस बार इस सरकार को हटाने का मन बना लिया था कि अचानक दंगे शुरू हो गए। अब सभी हिन्दू या मुसलमान बनकर वोट डालेंगे। अब कोई किसान, मजदूर, महिला, बेरोजगार नहीं रहेगा, सब हिन्दू या मुसलमान बनकर वोट डालेंगे। हिंदुओं पर मुसलमानों के और मुसलमानों पर हिंदुओं के जुल्म ज्यादती के बहुत से वीडियो व फोटो सोशल मीडिया में खूब वायरल किये जा रहे हैं ताकि अविश्वास और डर का यह माहौल चुनाव तक बरकरार रहे।

सब जानते है दंगा कोई टाइम बम नहीं है कि बटन दबाया और फट गया। दंगों के लिए सुनियोजित तरीके से अफवाह फैलाई जाती है। बाबर की याद दिलाई जाती है। लव जिहाद और गौहत्या की चिंता और बदले की आग सुलगाई जाती है। मुसलमानों को चिढ़ाया जाता है ताकि वे खिसिया कर पहला पत्थर उछाल दें। पहला पत्थर उनकी तरफ से फेंकने के बाद ऑपरेशन शुरू हो जाता है। सारा दोष पहला पत्थर उछालने वाले के सिर पर मढ़कर सरकार उन पर ठोस कार्रवाई कर शाबाशी बटोर लेती है ।

जिन जिन चुनाव क्षेत्रों में भाजपा के नेता और कार्यकर्ता अपने वरिष्ठ नेताओं, सांसद या विधायक से नाराज चल रहे थे, उनकी टिकिट कटवाने या उन्हें हराने की प्लानिंग बना रहे थे उनके देवता अचानक ठंडे हो गए। अब वे हिन्दू हित के लिए फिर उस व्यक्ति को जिताएंगे जिसे वे पिछले पांच सालों से गालियाँ दे रहे थे।

जहाँ जहाँ डबल इंजन की सरकारें हैं वहां की सरकारें दंगों को रोकने के बजाय उन्हें और फैलाने में विशेष दिलचस्पी ले रही हैं। हरियाणा की सरकार ने तो स्पष्ट कर दिया है कि सबकी सुरक्षा करना सम्भव नहीं है अर्थात जिन्हें बचाना होगा उन्हें बचा लिया जाएगा और बाकी को मरने दिया जाएगा।

दंगा कहीं भी हो उसके लिए हिन्दू मुसलमान नहीं सरकार जिम्मेदार है। जिसके पास प्रदेश में पत्ता तक गिरने की सूचना प्राप्त करने का खुफिया तंत्र मौजूद है, सार्वजनिक जुलूस, प्रदर्शन, शोभायात्रा की ड्रोन कैमरे के द्वारा निगरानी की जा सकती है। दंगा शुरू होने के पहले ही रोकने का सारा सिस्टम सरकार के पास होता है। फिर भी अगर दंगे हो रहे हैं तो कटघरे में सरकार है, सिरफिरे हिन्दू या मुसलमान नहीं। सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती?

लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा के साथ जब पूरे देश में घूम रहे थे तब उनकी यात्रा जहाँ जहाँ जा रही थी वहाँ दंगा जैसी स्थितियां बन रही थीं। यात्रा गुजर जाने के बाद दंगे शुरू हो जाते थे। पूरे देश में साम्प्रदायिक उन्माद चरम स्थिति में था। ऐसा कोई प्रांत नहीं बचा था जो साम्प्रदायिक हिंसा की चपेट में न आया हो। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा था कि इस दौर में बिहार एकमात्र ऐसा प्रदेश था जहाँ एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ। जबकि बिहार में रथयात्रा रोक कर आडवाणी जी को गिरफ्तार किया गया था। हुआ यूं कि देश में माहौल बिगड़ते हुए देखकर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने सभी कलेक्टर, एसपी और अन्य आला अधिकारियों की मीटिंग बुलाकर उनसे कहा कि अगर आपके कार्यक्षेत्र में कोई दंगा फसाद हुआ तो उसके लिए कोई और नहीं सिर्फ आप ही जिम्मेदार होंगे। इस मीटिंग के बाद पुलिस और प्रशासन इतना सजग हुआ कि बिहार में कोई दंगा नहीं हो पाया। हमने देखा है कि अगर सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो पुलिस प्रशासन उसी अनुरूप काम करता है ।

दंगा फसाद को सख्ती से रोकना, कुचलना और हर हाल में भाईचारा व अमन-चैन कायम करना, समाज में अविश्वास और भय का माहौल खत्म करना सरकार का दायित्व है। अफसोस है कि डबल इंजन की सरकारें इस कार्य में असफल सिद्ध हुई हैं।

– गोपाल राठी

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