— गोपाल राठी —
लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए माननीय प्रधानमंत्री ने तुष्टीकरण की नीति को जमकर कोसा। जबकि उनकी सरकार और उनकी राज्य सरकारें इन्हीं नीतियों का अनुसरण कर रही हैं।
80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन बांटना, महिलाओं को बहन बनाकर उनके खाते में हजार हजार रुपए डालना, किसानों की आय दुगुनी करने के बजाय किसान सम्मान निधि के नाम पर पैसा जमा करना, तीर्थ यात्रा करवाना, शादी करवाना आदि इस तरह की तमाम योजनाएं वोट कबाड़ने का एक उपक्रम है जो विभिन्न वर्गों के असंतुष्ट मतदाताओं को संतुष्ट करने का जरिया है। बिना किसी योजना के नकद रुपए बांटना तुष्टीकरण का सबसे बड़ा उदाहरण है।
लोकतंत्र में सरकार विभिन्न वर्गों, जातियों, सम्प्रदायों और संस्कृतियों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विशेष योजना बनाकर, विशेष अवसर देकर कमजोर, लाचार, पिछड़े समूहों के विकास के लिए काम करना तुष्टीकरण नहीं बल्कि यह सरकार का कर्तव्य है। भाषाई या धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय का संरक्षण करना सरकार की जिम्मेदारी है। यह भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए एक मान्य सिद्धांत है।
भारत विभाजन की त्रासदी के बाद पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए सिंधी भाइयों के पुनर्वास के लिए भारत सरकार ने बिना किसी मांग के उनके लिए यथासंभव प्रयास किये। उनके आवास और व्यवसाय के लिए जगह दी। सिंधी भाई उस समय न यहां की भाषा जानते थे और न यहां की संस्कृति से परिचित थे। सरकार के संरक्षण में वे धीरे धीरे मुख्यधारा में शामिल हो गए। अब वे हमारे लिए और हम उनके लिए अजनबी नहीं रहे।
पाकिस्तान जैसे मुस्लिम राष्ट्र में जब वहां के हिन्दू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता है तो उसकी विश्व भर में निंदा की जाती है। पाकिस्तान की संसद और कोर्ट भी इसको गलत मानते हैं। पाकिस्तान के किसी जिम्मेदार नेता, लेखक, कवि, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक ने कभी इस तरह के हमले को उचित नहीं बताया। पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता (जो मुसलमान हैं) सरकार से मांग करते रहे हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय हिन्दू और ईसाई को सुरक्षा मिले और उन्हें अपनी आस्था और विश्वास अनुसार पूजापाठ और त्योहार मनाने की खुली छूट और संरक्षण मिले। अगर सरकार ऐसा कदम उठाती है तो पाकिस्तानी मुसंघी अपनी सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाने लगते हैं।
भारत के अल्पसंख्यक भारत के हैं और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक पाकिस्तान के हैं। हम चाहते हैं कि दोनों देशों की सरकारें अल्पसंख्यक समुदाय को सुरक्षा मुहैया कराएं। उनके विकास के नए रास्ते शुरू करें ताकि वे राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होकर राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें। अल्पसंख्यकों को संरक्षण देना या उनके लिए तरक्की के नए रास्ते खोलना तुष्टीकरण नहीं राष्ट्र निर्माण है।
अल्पसंख्यकों के साथ बर्बर और अमानवीय बर्ताव आदिम युग में मान्य था लेकिन आधुनिक विश्व में सभ्य और सुसंस्कृत राष्ट्र वह माना जाता है जो अपने देश के अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति संवेदनशील हो। अब आप तय करें कि आप दुनिया में भारत की कैसी छवि बनाना चाहते हैं?
भारत से चीता लुप्त हो गए। दुनिया में शेरों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। शेर को बचाने, उनकी संख्या वृद्धि के लिए भारत में कई प्रान्तों में टाइगर रिजर्व बनाए गए हैं। शेर बचाने के लिए हजारों साल से जंगल में निवास कर रहे आदिवासियों को जंगल से बाहर निकाल दिया गया है। जंगल में मानव उपस्थिति और गतिविधि को शून्य करने के लिए इस तरह के इस तरह के निर्णय लिये गए हैं। ऐसी स्थिति में जंगल में रहने वाले वन्य प्राणी और आदिवासी सरकार पर यह आरोप लगा सकते हैं कि सरकार का सारा ध्यान शेर बचाने पर है। शेर के अलावा अन्य जीव जंतुओं और मनुष्यों के बारे में सरकार सोच भी नहीं रही। सब मिलाकर अगर यह नारा लगाएं कि शेरों का तुष्टिकरण बन्द करो तो कैसा लगेगा ? ( गोपाल राठी )
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