ओड़िशा में नियमगिरि कार्यकर्ताओं पर यूएपीए लगाने की चौतरफा निन्दा

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# तमाम जन संगठनों ने कारपोरेट द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट और दमन के खिलाफ मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

22 अगस्‍त। देशभर के 20 राष्ट्रीय नेटवर्क/संगठनों, 40 जन संगठनों और 350 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, अधिवक्ताओं, कलाकारों आदि ने ओड़िशा के मुख्‍यमंत्री को पत्र लिखकर ओड़िशा में हाल के घटनाक्रमों के प्रति अपना रोष प्रकट किया है। पत्र में कहा गया है कि नियमगिरी क्षेत्र में आदिवासी, ग्रामीण कार्यकर्ताओं का पुलिस द्वारा अपहरण, गिरफ्तारी के साथ, नियमगिरी सुरक्षा समिति (एन.एस.एस.) के नौ नेताओं और समर्थकों के खिलाफ, “गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम” (यूएपीए) जैसे दमनकारी कानून और भारतीय दंड संहिता के अन्य कड़े प्रावधानों के तहत दर्ज किए गए मामले बेहद अन्यायपूर्ण हैं।

पत्र में कहा गया है कि पारिस्थितिक और जैव-विविधता से सम्पन्न और संवदेनशील कालाहांडी और रायगढ़ क्षेत्रों में वेदांता कंपनी द्वारा बॉक्साइट खनन के खिलाफ, डोंगरिया कोंध नियमगिरि आदिवासियों का ऐतिहासिक संघर्ष दुनिया भर में जाना जाता है। यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी 18 अप्रैल, 2013 के अपने महत्वपूर्ण निर्णय में आदिवासी ग्राम सभाओं के अधिकारों को बरकरार रखा है। इसके बावजूद, राज्य सरकार की नाक के नीचे और उसके प्रोत्साहन के चलते, आदिवासी क्षेत्रों का सैन्यीकरण करते हुए, वेदांता जैसे बड़े निगमों की ज्यादतियों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

पत्र में कहा गया है कि हम विचलित हैं कि यूएपीए जैसे दमनकारी कानून का प्रयोग, आंदोलन पर शिकंजा कसने के लिए किया जा रहा है; इससे शीर्ष अदालत के फैसले की भावना का भी उल्लंघन किया जा रहा है।

हस्‍ताक्षरकर्ताओं ने पत्र में कहा है कि हम राज्‍य पुलिस के इन संदिग्ध तरीकों से स्तब्ध हैं, जिनसे आदिवासी नेताओं, विशेषकर युवाओं को पुलिस द्वारा अपहरण किया जा रहा है, कानून का उल्लंघन करते हुए लंबे समय तक हिरासत में रखा जा रहा है, और उनमें से कुछ को कई दिनों के बाद ‘गिरफ्तार’ दिखाया जा रहा है। यह भी जानकारी मिली है कि 13 और 16 अगस्त को रायगड़ा जिले के काशीपुर ब्लॉक के 3 गांवों में आधी रात को पुलिस की छापेमारी हुई, जिसके बाद कई आदिवासी युवाओं के ‘लापता’ होने की खबर है। यह सब राज्य सरकार को शोभा नहीं देता।

पत्र में राज्‍य सरकार से मांग की गयी है कि नियमगिरि सुरक्षा समिति के आदिवासी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के खिलाफ यूएपीए-एफआईआर, आईपीसी के तहत दर्ज सहित सभी आरोपों को वापिस लेते हुए, एफआईआर खारिज की जाए। वहीं अगस्त महीने के दौरान हिरासत में लिये गए सभी व्यक्तियों के वर्तमान ठिकाने और उनके खिलाफ लंबित मामलों का विवरण सार्वजनिक करें।

पत्र में यह भी कहा गया है कि शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लिए नियमगिरि और ओड़िशा के सभी आंदोलनों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखें। आदिवासी क्षेत्रों में अपहरण, गिरफ्तारियों के साथ-साथ, कॉर्पोरेट-प्रेरित हिंसा और सैन्यीकरण को रोकें। 2018 में कृष्णा सिकाका के खिलाफ संदिग्ध एफआईआर की निष्पक्ष जांच की जाए और जांच लंबित रहने तक, उन्हें जेल से रिहा किया जाए। उपेन्द्र बाग को भी तुरंत जेल से रिहा करें।

संविधान की पाँचवीं अनुसूची, वनाधिकार कानून, 2006; पेसा अधिनियम, 1996 और सर्वोच्च न्यायालय के 18 अप्रैल 2013 के फैसले में निहित ग्राम सभाओं के अधिकारों का उल्लंघन न करें और वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत या अन्य तरीके से किसी भी खनन संबंधी गतिविधि या मनमानी कार्रवाई की अनुमति न दें।

उच्चतम न्यायालय के निर्णय के एक दशक बाद भी नियमगिरि के आदिवासियों को अपने वनों और पहाड़ों को कारपोरेट लूट से बचाने के लिए संघर्ष जारी रखना पड़ रहा है। ओड़िशा सरकार को अपने आम लोगों के लिए काम करने का जनादेश है, न कि बड़े उद्योगपतियों की मुनाफाखोरी के लिए।

पत्र में ओड़िशा के मुख्यमंत्री से यह उम्मीद जताई गई है कि आदिवासी मूलवासी समुदायों के इस उत्पीड़न को समाप्त करने में, सच्चा राजकौशल दिखाएंगे, जो अपने जल, जंगल, जमीन और संविधान प्रदत्त अन्य अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।

उल्‍लेखनीय है कि ओडिशा के सामाजिक कार्यकर्ताओं के बयान (लिंगराज आजाद, प्रफुल्ल सामंतरा, नरेंद्र मोहंती और बिश्वप्रिय कानूनगो), पी.यू.डी.आर. के बयान और “राज्य दमन के खिलाफ अभियान” के बयान में इन चिंताजनक परिस्थितियों का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिन परिस्थितियों में 6 अगस्त को प्राथमिकी (एफ.आई.आर 87/2023) दर्ज हुई। इस एफ.आई.आर. में लादा सिकाका और ड्रेन्जू कृष्णा (एन.एस.एस.के नेता), मनु सिकाका और सांबा हुइका (एन.एस.एस.के युवा नेता), लिंगराज आजाद (एन.एस.एस.के सलाहकार), ब्रिटिश कुमार (खंडुलामली सुरक्षा समिति), लेनिन कुमार (कवि और समर्थक साथी), गोबिंद बाग (एन.एस.एस.से जुड़े ग्रामवासी) और उपेंद्र बाग (एन.एस.एस.के सदस्य प्रवक्ता) शामिल हैं। इनके खिलाफ कई आरोप लगाए गए हैं। इनमें से, उपेन्द्र बाग को 4 दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा गया और 14 अगस्त को ‘स्वतंत्रता दिवस’ की पूर्व संध्या पर रायगढ़ा जेल में बंद कर दिया गया। जानकारी है कि हिरासत के दौरान उन्हें धमकाया और पीटा गया।

एफ.आई.आर. के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उपरोक्त 9 व्यक्तियों के खिलाफ जिस लापरवाही और गलत तरीके से आरोप लगाए गए हैं, उससे हैरानी होती है। उदाहरण के लिए, लाठी और कुल्हाड़ी, जो कई डोंगरिया कोंध आदिवासी पारंपरिक रूप से लेकर चलते हैं, को यूएपीए के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए आधार के रूप में उद्धृत किया जा रहा है। इसी तरह, एनएसएस को ‘वामपंथी उग्रवाद’ से जोड़ने वाले आरोप पूरी तरह से निराधार हैं। कानून की प्रक्रिया के इस दुरुपयोग और शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लोकतांत्रिक आंदोलन के अधिकार पर हमले की निंदा करते हैं।

पत्र में कहा गया है कि हम हस्‍ताक्षरकर्ता 5 अगस्त से इस घटनाक्रम पर चिंतित हैं, जब एन.एस.एस.के दो युवा नेता (कृष्णा सिकाका, गांव पतंगपदर और बारी सिकाका, गांव लखपदर) संदेहास्पद तरीके से ‘लापता’ हो गए थे। उन्हें कथित तौर पर सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों ने लांजीगढ़ से अगवा कर लिया था, जहां वे 9 अगस्त को आगामी मूलवासी जन दिवस (इन्डिजिनस पीपल्स डे) मनाने के बारे में लोगों के साथ बातचीत करने आए थे। कई अनुरोधों के बावजूद, यहां तक कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने भी उनके बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी। उनकी चिंताओं को दूर करने के बजाय, विरोध प्रदर्शन के दौरान कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा आदिवासी लोगों का मजाक उड़ाया गया। इसके अलावा, जब पुलिस ने एन.एस.एस.के नेता ड्रेंजू क्रिसिका को हिरासत में लेने की कोशिश की, तो लोगों की एकता ने इसे विफल कर दिया।

6 अगस्त को कल्याणसिंहपुर पुलिस स्टेशन के सामने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और उच्च न्यायालय में दायर एक रिट याचिका के बाद, बारी सिकाका को पुलिस द्वारा ‘लौटा’ दिया गया था, लेकिन कृष्णा को 5 साल पुराने बलात्कार के मामले में ‘आरोपी’ के रूप में दिखाया गया। यह आश्चर्यजनक है कि कृष्णा को अगस्त, 2023 में अचानक क्यों गिरफ्तार किया गया, अगर एफआईआर 2018 में दर्ज की गई थी, और वह हमेशा सार्वजनिक रूप से और कार्य में सामने रहे हैं, खुली बैठकों में भाग लेते आए हैं। पता चला है कि जुलाई में, एक अन्य स्थानीय व्यक्ति बाली करकरिया (डेंगुनी गांव) को भी इसी तरह की परिस्थितियों में निराधार आरोपों में अपहरण कर लिया गया था और जेल में बंद कर दिया गया था।

पत्र पर हस्‍ताक्षर करने वाले राष्ट्रीय नेटवर्क / संगठनों में शामिल हैं शामिल हैं –

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM), अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन (AIKKMS), लोक स्वातंत्र्य संगठन (PUCL), इंडियन सोशल एक्शन फोरम (इंसाफ), राष्ट्रीय लघु-स्तरीय मछुआरा मंच (NPSSFW), अखिल भारतीय वन श्रमजीवी मंच (AIUFWP), न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (NTUI), राष्ट्रीय आदिवासी अलायंस (NAA), ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स अलर्ट (HRDA), ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ), नेशनल कैंपेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स (NCDHR), भारतीय महिला फेडरैशन (NFIW), भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (BMMA), माइंस, मिनरल्स एंड पीपल (MMP), नेपाल डिसेबल्ड वुमन एसोसिएशन आदि उल्‍लेखनीय है।

साथ में देश भर के प्रमुख जन-संगठनों व समूहों में शामिल हैं –

इंडिजिनस जन, ज़मीन, जीवन और ज्ञान प्रणाली समूह, ह्यूमन राइट्स फोरम (HRF), वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन, उत्तराखंड महिला मंच, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, फेडरेशन ऑफ रेनबो वॉरियर्स गोवा, झारखंड किसान परिषद, नर्मदा बचाओ आंदोलन, जागृत आदिवासी दलित संगठन, पश्चिम बंगा खेत मजूर समिति, लोक संघर्ष मोर्चा, राजनांदगांव जिला किसान संघ, पेन उरीमय इयक्कम, नागरिक मंच, जीपाल कृषक श्रमिक संघा, राष्ट्र सेवा दल, खोरीगांव टीम साथी, घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन, केंद्रीय जन संघर्ष समिति नेत्रहाट, रंगमाटीपदर आदिवासी कम्यून, युग्मा  कलेक्टिव, पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, साझा संस्कृति मंच, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स पंजाब, कांगड़ा नागरिक मंच, जन विकास शक्ति संगठन बिहार, यूथ फॉर हिमालय, एनवायरनमेंट सपोर्ट ग्रुप, दिल्ली फोरम आदि शामिल है।

देशभर के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, अधिवक्ताओं, कलाकारों में शामिल हैं –

मनोरंजन मोहंती, ज्यां ड्रेज़, मेधा पाटकर, प्रफुल्ल सामंतरा, एनी राजा, जॉन दयाल, चयनिका शाह, डायना तवरेज, नरबिंदर, सुहासिनी मुले, संदीप पांडेय, जेवियर डायस, रूपरेखा वर्मा, मधु बाधुरी, अनिल सद्गोपाल, एग्नेस खारशिंग, वाल्टर फर्नांडीस, प्रणब डोले, जेरोम गेराल्ड कुजूर, नीतिशा खालखो, माधुरी, प्रमोदिनी प्रधान, एडवोकेट प्योली, एस.पी रवि, श्रीकांत मोहंती, सेड्रिक प्रकाश, अनुराधा तलवार, एडवोकेट इंदिरा उन्नीनायर, थॉमस फ्रेंको, वी.एस कृष्णा, अशोक श्रीमाली, सौम्या दत्ता, एडवोकेट शालिनी गेरा, वीणा शत्रुघ्न, सुजातो भद्रो, हेनरी टीफ़ेगने, पसारुल आलम, आदित्य निगम, कविता श्रीवास्तव, एडवोकेट गायत्री सिंह, मीरा संघमित्रा और कई अन्य व्‍यक्ति शामिल हैं।
(सप्रेस)

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