— रमाशंकर सिंह —
कर्पूरी ठाकुर जैसे साँचे के नेता अब नहीं बन रहे हैं और न ही भविष्य में कभी बन सकेंगे !
भारतीय समाजवाद के महानायकों में से एक थे !
समाज में करोड़ों मुफ़लिस गरीब पिछड़े लोगों की ज़िंदगी को सम्मान, गरिमा और ताक़त दी, जिसका सही अंदाज़ा महानगरों में बैठे वाचाल विलासी उच्चवर्गीय कथित बौद्धिकों को हो ही नहीं सकता है।
एक ग्रामीण झोंपड़ी में गरीब नाई के घर पैदा हुए कर्पूरी के लिए स्कूल जाना और परास्नातक तक पढ़ना कितना संघर्षमय रहा होगा इसकी कल्पना आज नहीं की जा सकती; कि यह 95 साल पहले के अति क्रूर, असभ्य सामंती समाज की बात थी और इसके बाद आज़ादी की लड़ाई में शामिल होना, जेल जाना और आज़ादी के बाद फिर से सामाजिक आर्थिक न्याय की एक नयी लड़ाई में आख़िरी साँस तक खप जाना।
सादगी बल्कि ताजिंदगी की ग़रीबी ऐसी कि मुफ़लिसी सादगी भी खुद शर्मिंदा होने लगे जिसके सामने। दो बार मुख्यमंत्री बने पर जेब में सदा कुछ रुपयों सिक्कों को गिन गिन कर काम चलाते थे और जैसी झोंपड़ी घर की गाँव में थी वैसी ही बनी रही मृत्यु तक। कहीं कुछ भी संपत्ति, बैंक बैलेंस नहीं !
गुलाम भारत के स्वतंत्रता सेनानी रहे, आज़ादी के बाद फिर से सामाजिक मानसिक आज़ादी के लड़ते लड़ते मर गये।
कृतघ्न समाज देश ऐसे आदर्श पुरुषों को भूलकर अपनी निजी सफलताओं के दंभ का जश्न मनाता है।
कर्पूरी जी की जन्मशती चल रही है पर उनकी राजनीति के बनाये नेताओं, सांसदों, विधायकों, मंत्रियों और सरकारों को सुध ही नहीं है कि “कर्पूरी विचार” को नये समय में कैसे अंतिम पायदान तक क्रियान्वित किया जाए। आरती और नाम जाप में किसकी दिलचस्पी होगी?
देश के सत्ताविरत चुने हुए सोशलिस्ट अगले पांच महीनों में देश के कुछ स्थानों पर निजी सामर्थ्य भर स्मृति समारोह करेंगे !
आपकी इच्छा हो मन करे तो आइएगा, ऐसी स्मृति सभाओं में।
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