हनुमान पुराण – 13

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Hanuman

— विमल कुमार —

हनुमान – प्रभु! क्या आपको हिंदी दिवस के मौके पर किसी मंत्रालय या किसी स्कूल कालेज या किसी संस्थान में बुलाया नहीं गया?
राम – मैं समझ गया तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो? पिछले दिनों हिंदी दिवस गुजरा। अरे, मुझे तो इस बार 14 सितंबर याद ही नहीं रहा और वैसे भी किसी ने मुझे बुलाया नहीं कि मैं हिंदी पर भाषण दूं।
हनुमान – आप तो हिंदी जानते हैं। अंग्रेजी भी जानते हैं। आपको एक फ़िल्म में मैंने अंग्रेजी में बोलते सुना है।अच्छा यह बताएं आपके जमाने में तो अंग्रेजी स्कूल होते नहीं थे इसलिए आपको हिंदी स्कूल में ही दाखिला लेना पड़ा होगा।
राम – नहीं पवनसुत। उस समय न हिंदी स्कूल थे न अंग्रेजी स्कूल। उस ज़माने में गुरुकुल था और हमलोगों ने संस्कृत माध्यम से पढ़ाई की थी ।
हनुमान – अयोध्या में उस ज़माने में कोई डीपीएस होता तो महाराज दशरथ ने आपका दाखिला उसमें जरूर कराया होता।
राम – ऐसा ना कहो हनुमान! हमारा पूरा परिवार संस्कृत प्रेमी था। हम लोग घर में संस्कृत बोलते थे। उस समय हिंदी स्कूल भी कहां होते थे। लेकिन ये सारे सवाल मुझसे क्यों पूछ रहे हो?
हनुमान – प्रभु! आप देख ही रहे हैं कि हिंदी दिवस पर हिंदी वालों की हर साल जमकर धुनाई होती है। अब तो हिंदी दिवस का मजाक उड़ाया जाता है लेकिन दूसरी तरफ कई लोग हिंदी दिवस के अवसर पर विभिन्न मंत्रालयों में जाकर हिंदी दिवस मनाते हैं। पीएसयू में भी जाते हैं और पुरस्कार वितरित करके चले जाते हैं। और तो और, हिंदी दिवस पर भाषण अंग्रेजी में भी दिए जाते हैं।
राम – अब मैं क्या कर सकता हूं? मेरे ही नाती पोते अब अंग्रेजी में बोलते हैं। लव कुश के बच्चों को देख लो। वे आज अमेरिका में सेटल हैं। मैंने कितनी बार उनसे कहा कि तुम लोग थोड़ा हिंदी सीख लो। कम से कम अपने बाप-दादाओं की लाज तो रखो लेकिन वे मानते नहीं। मुझे भी दादा बाबा की जगह लार्ड रामा कहते हैं।
हनुमान – Ya ! I understand ur pain my lord.

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