पुरुषोत्तम कौशिक – जिन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण से जीवन जिया

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Purushottam Kaushik

sunilam

— डॉ सुनीलम —

माजवादी चिंतक पुरुषोत्तम कौशिक जी की आज 7वीं पुण्यतिथि है । पुरुषोत्तम कौशिक जी की आजीवन की दो प्रमुख प्राथमिकताएं रही । पहली किसान, किसानी और गांव की आवाज बुलंद करना तथा दूसरी समाजवादी आंदोलन को मजबूत बनाना। वे चाहे विधायक रहे हो या सांसद या केंद्रीय मंत्री, उनकी प्राथमिकताएं कभी नही बदली। जिस समाजवादी विचार के साथ वे सार्वजनिक जीवन में आए थे, उसी विचार को उन्होंने जीया।

जनता परिवार के बिखर जाने के बाद में यदि चाहते तो कांग्रेस या भाजपा में भी शामिल होकर केंद्रीय मंत्री से लेकर राज्यपाल तक का पद हासिल कर सकते थे लेकिन उन्होंने दोनों पार्टियों के प्रस्तावों पर कभी विचार ही नहीं किया। आम तौर पर जो एक बार सांसद हो जाता है, केंद्रीय मंत्री बन जाता है, वह आमतौर पर दिल्ली नहीं छोड़ता लेकिन कौशिक जी ने कभी दिल्ली से मोह नहीं पाला। उन्हें छत्तीसगढ़िया होने पर गर्व था। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन में उनकी अहम भूमिका रही है। उनकी जीवन शैली छत्तीसगढ़िया संस्कृति में रची बसी रही।

जो परिवर्तन की राजनीति करना चाहते हैं उन्हें पुरुषोत्तम कौशिक जी का जीवन सदा प्रेरणा देता रहेगा। पुरुषोत्तम कौशिक जी ने यह साबित किया कि यदि कोई राजनीतिक कार्यकर्ता तय कर ले तो वह न्यूनतम संसाधनों से सबसे शक्तिशाली पूंजीपति को हरा सकता है। जिस तरह जॉर्ज फर्नांडीज ने मुंबई में एसके पाटिल को मजदूरों को संगठित कर हराया था, उसी तरह पुरुषोत्तम कौशिक जी ने नेमीचंद श्रीमाल (राइस किंग) को किसानों को गोलबंद कर हराया । लोभ, लालच सत्ता की धमक और चमक से प्रभावित हुए बिना, बिना कोई सैद्धांतिक समझौते के उन्होंने जीवन जीकर कबीर की इस पंक्ति को चरितार्थ किया- ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’।

पुरुषोत्तम कौशिक जी से ग्वालियर में ही परिचय हो गया था। मैं दिल्ली जब आया तब वे सांसद थे। वे वीपी हाउस में रहते थे। सौम्यता उनके चेहरे पर सदा बनी रहती थी । कपड़े बहुत सलीके से पहनते थे। केतली में उनकी चाय बनती थी। नींबू डालकर चाय पीते थे, साथ में मेरीगोल्ड के दो बिस्कुट खाते थे। सदा गंभीर रहते थे। जॉर्ज साहब के निकटस्थ सहयोगी भी थे लेकिन स्वतंत्र विचारों वाले शुद्ध किसान, समाजवादी नेता ।

जब मैंने दिल्ली छोड़ने का विचार बनाया तब कौशिक जी का आग्रह था कि मैं रायपुर, भिलाई, महासमुंद में जाकर उनके साथ काम करूं। वे मुझे मध्य प्रदेश की राजनीति (वर्तमान छत्तीसगढ़) में सक्रिय करना चाहते थे। इस मंसा से एक दो बार मैं वहां गया भी लेकिन मुझे वहां यह समझ में आया कि वहां बाहरी वाला मामला गंभीर है। उन्हें परदेशी कहा जाता है। स्थानीय लोग और बाहरी लोगों के बीच में तनाव (अलगाव) रहता है। मैं किसी पर निर्भर होकर राजनीति नहीं करना चाहता था। इस कारण कौशिक जी के साथ शिफ्ट नही हुआ। हालांकि शुक्ल परिवार वहां बाहर से आकर ही राजनीति करता था तथा उनका वर्चस्व छत्तीसगढ़ में बना हुआ था।

जनता दल की जब सरकार बनी, वीपी सिंह जी पुरुषोत्तम कौशिक जी को मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन बीसी शुक्ला भी जनता दल में थे तथा वी पी सिंह के गुट में (जनमोर्चा) के साथ आए थे। इस कारण पूरे कार्यकाल में भिलाई जैसी जगह से जीतकर आने के बाद भी वे मंत्री नहीं बनाए गए । जब वीपी सिंह जी की सरकार चली गई तब चंद्रशेखर जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अध्यक्ष जी ( चंद्रशेखर जी) का बहुत दबाव था कि वे सरकार में शामिल हो जाए लेकिन कौशिक जी तैयार नहीं हुए। उन दिनों मैं 421 वीपी हाउस, रफ़ी मार्ग में रहता था। बगल में केरला के सांसद एम ए बेबी 420 नंबर में रहते थे, जो बाद में शिक्षा मंत्री भी बने।
एक दिन मेरे यहां कौशिक जी से मिलने ओम प्रकाश चौटाला जी, यशवंत सिन्हा जी आए ।

उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि हम चाहते हैं कि आप चंद्रशेखर जी की कैबिनेट में शामिल हो जाए। कौशिक जी ने जब इनकार कर दिया तब सभी नेता कुर्सी छोड़कर फर्श पर बैठ गए तथा कहा कि मंत्रिमंडल में जो भी विभाग चाहे ले लें। अभी आपको शपथ लेनी है, लेकिन कौशिक जी नहीं माने।

उन्होंने कहा कि मैं जनता दल और वीपी सिंह जी के नाम से चुनाव जीत कर आया हूं। जनता का भरोसा नहीं तोड़ सकता। हालांकि कौशिक जी के साथ घोर नाइंसाफी हुई थी, इसके बावजूद भी उन्होंने सिद्धांत के साथ समझौता करना पसंद नहीं किया।
राजनीति में पदलोलुपता की अंधी दौड़ में पुरुषोत्तम कौशिक जी जैसे सिद्धांतवादी, स्पष्ट राय रखने वाले बहुत कम नेता हैं।

आश्चर्यजनक तौर पर जिस व्यक्ति को कैबिनेट मंत्री बनना था उस व्यक्ति को भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत ग्रामीण विकास योजनाओं हेतु संस्थाओं को फंड उपलब्ध कराने वाली कपाट एजेंसी के वेस्टर्न ज़ोन का सदस्य मेरे साथ बना दिया गया। अन्ना हजारे उस कमेटी के चेयरमैन थे। हमारी मुलाकात बैठकों में हुआ करती थी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने इसका बूरा नहीं माना। जो व्यक्ति 1977 की जनता पार्टी की सरकार में संचार मंत्री, नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुका था, उसका खुशी खुशी अहमदाबाद की मीटिंगों में जाना कौशिक जी के विराट व्यक्तित्व और ग्रामीण विकास के कार्य के लिए प्रतिबद्धता दर्शाता है।

कौशिक जी ने महासमुंद के इलाके में ग्रामीण विकास का बहुत कार्य किया था। सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद वे महासमुंद जाकर रहने लगे थे तथा खेती बाड़ी का कार्य किया करते थे। समाजवादी आंदोलन में यदि कौशिक जी जैसे नेता अधिक संख्या में रहे होते तो समाजवादी आंदोलन में महत्वाकांक्षाओं की तथा अहम की टकराहट के चलते इतना अधिक बिखराव नही होता। मैं लगातार कौशिक जी के साथ समाजवादी साथियों के कार्यक्रम में जाया करता था। कौशिक जी के साथ मेरा पारिवारिक संबंध था। उनके दोनों बेटे दिलीप और बल्लू के साथ घनिष्ठता थी। मेरा बेटा और बल्लू का बेटा साथ साथ खेला करते थे।

मैं उनसे रायपुर और महासमुंद जाकर मिला करता था। वे हर समय एक ही बात करते थे कि समाजवादियों को इकट्ठा करने का काम करो, उससे ही रास्ता निकलेगा। कौशिक जी को छत्तीसगढ़ में आज भी सामाजिक और राजनीतिक साथियों द्वारा सम्मान पूर्वक याद किया जाता हैं। जहां भी जब भी कौशिक जी जाते थे, वहां वे किसान, किसानी और गांव को बचाने के साथ साथ समाजवादी आंदोलन को पुनर्स्थापित करने को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते थे।


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