— कलानंद मणी —
मध्य प्रांत के स्वराज्यवादियों के विद्रोह की चर्चा के आलोक में टाइम्स आफ इंडिया के प्रतिनिधि ने महात्मा गांधी से सवाल किया कि डॉक्टर मुंजे ने वक्तव्य दिया है कि स्वराज्यवादी लोग अब अपनी सारी शक्ति कांग्रेस पर से श्री गांधी का प्रभाव खत्म करने में लगाएंगे और यह करेंगे कि कांग्रेस दल में भाई-भाई का संघर्ष अनिवार्य हो जाए। इस वक्तव्य से तो यही लगता है कि स्वराज्यवादियों ने विद्रोह की ठान ली है। क्या आपका खयाल है कि मध्य प्रांत के बाहर के स्वराज्यवादी भी डॉक्टर मुंजे के विचारों से कमोबेश सहमत हैं ? क्या आपको ऐसी आशंका है कि स्वराज्यवादी लोग आपके सिद्धांत और कार्यक्रम के विरुद्ध विद्रोह का झंडा उठाएंगे? उसे हालत में क्या आप उनके प्रति अपनी तटस्थता त्याग कर उनके विरुद्ध प्रचार शुरू करेंगे?
महात्मा गांधी: मैं नहीं जानता कि डॉक्टर मुंजे के विचारों से और भी बहुत से स्वराज्यवादी लोग सहमत हैं या नहीं। वह सहमत हों या ना हों, मुझे इससे कोई परेशानी नहीं, क्योंकि इससे किसी भी पक्ष की प्रतिष्ठा को हानि होने नहीं जा रही है, भले ही इसका कारण सिर्फ यही हो कि मैं भाई भाई की लड़ाई में शामिल नहीं होऊंगा। इस तरह की कोई भी लड़ाई तो तभी चल सकती है जब दो पक्ष लड़ाई पर आमदा हो, किसी एक के चाहने से नहीं।
मैंने दोनों पक्षों के हित का ध्यान रखकर ही कांग्रेस कार्यकारिणी कमिटियों पर एक पक्षीय नियंत्रण की बात रखी है और यदि मैं देखूंगा की स्वराज्यवादी लोग कांग्रेस कार्यकारिणी कमेटियों पर अपना अधिकार जमाने की जरा भी कोशिश करते हैं तो मैं अपने तई उनकी मुखालफत नहीं करूंगा, मैं उनको अधिकार कर लेने दूंगा। उसके बाद मैं कांग्रेस के बाहर एक दूसरा संगठन बनाऊंगा और कांग्रेस कार्यक्रम में विश्वास रखने वाले लोगों से कांग्रेस से अलग रहकर इस कार्यक्रम को पूरा करने के लिए कहूंगा। इस तरह मैं स्वराज्यवादियों से कभी भी टक्कर नहीं लूंगा। मुझे उनके विरुद्ध प्रचार करने की कोई जरूरत ही नहीं रह जाएगी।
स्रोत: टाइम्स आफ इंडिया
6 जून 1924
साभार: संपूर्ण गांधी वांग्मय, खंड 24 पृष्ठ 208
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