— विनोद कोचर —
स्त्रियों का (10 से 50 ही वर्ष) सबरीमाला (केरल)मंदिर में प्रवेश वर्जित रखने की बरसों पुरानी कुप्रथा को गैर कानूनी करार देकर स्त्रियों के लिए भी पुरुषों की भांति मंदिर प्रवेश का अधिकार देने वाला सुप्रीम कोर्ट का तर्क और संविधान सम्मत फैसला आने के तुरंत बाद, आरएसएस(संघ)की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा को संबोधित करते हुए आरएसएस के दूसरे नंबर के आला दर्जे के अधिकारी और सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने यह कहकर अदालत के फैसले का स्वागत किया था कि,’बिना किसी भेदभाव के स्त्रियों का मंदिर में प्रवेश होना चाहिए अनुचित परंपराओं के कारण मंदिरों में प्रवेश वर्जित है जो अनुचित है तथा ऐसे मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए।’ संघ का ये रुख, सत्ता की राजनीति से हटकर अपनाया गया नारी अधिकार समर्थक ,पूर्णतः उचित एवं नैतिक रुख था।
लेकिन फैसले के बाद, केरल का तर्क शून्य आस्थाओं का समर्थक हिन्दू समाज जब फैसले की धज्जियां उड़ाते हुए, महिलाओं के मंदिर प्रवेश को जबरन रोकने लगा, तो इसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत को केरल में भी हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण नजर आने लगा तो, इस ध्रुवीकरण का भाजपा को सीधा लाभ पहुंचाने की खालिस राजनीतिक बदनीयत से उन्होंने संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में दिए गए आधिकारिक वक्तव्य को पलटते हुए अभी हाल ही में नारी अधिकार विरोधी बयान दे डाला कि, ‘सैकड़ों वर्ष की जिस परंपरा को समाज स्वीकार कर चुका है, उसे मानने की बजाय, क़ानूनी फैसलों के जरिये अशांति फैलाई जा रही है।हिन्दू समाज की श्रद्धा पर ही ऐसे आघात किये जाते हैं।’
क्या मोहन भागवत का ये बयान, एक तरह से सुप्रीम कोर्ट को खुली धमकी नहीं है कि वह कानून और संविधान की बजाय, हिंदुओं की ऐसी तर्कशून्य आस्था (श्रद्धा) वादी मान्यताओं के पक्ष में फैसले दे वर्ना हिन्दू मत की भीड़ द्वारा इन फैसलों की धज्जियां उड़ाने के मामले में आरएसएस इसी तरह ऐसी भीड़ के समर्थन में उतरता रहेगा? ये बयान भारत के संविधान और इससे उपजे क़ानूनी मापदंडों के प्रति आरएसएस की अनास्था को भी उजागर करता है ये बयान वोटों के ध्रुवीकरण की सत्तालोलुप राजनीति में आरएसएस के लिप्त रहने का भी एक जीता जागता प्रमाण है।आरएसएस अपने एकालापी बयानों का कितना भी बड़ा अंबार लगाकर अपनी इस रटन्त को दुहराता रहे कि वह राजनीति नहीं करता, लेकिन उसके कारनामे तो इन खोखले बयानों का भंडाफोड़ करते ही रहेंगे।प्रसंगवश ये भी उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट जब मुसलमानों की तीन तलाक की कुरीतियों के खिलाफ न्याय और संविधान सम्मत फैसले करता है तो मोहन भागवत और उनका आरएसएस परिवार खुशियों से झूम उठता है।
बकौल दुष्यंत-
मूरत संवारने में
बिगड़ती चली गई
पहले से हो गया है जहाँ
और भी खराब!