— रमाशंकर सिंह —
छुटपन से ही रामचरितमानस का पारायण करते हुये और बाद में भी श्रीरामचरित को समझते हुये जितना जैसा मैं रामायण के नायक राम को जानता हूँ तो इतना कह सकता हूँ कि सरल सहज मर्यादा पुरुषोत्तम को अयोध्या के ये लेजर शो और चकाचौंध के दृश्य यदि विचलित नहीं तो ज़रूर ही असहज कर रहे होंगे।
राम में वनवासी की सादगी , त्याग और पर्णकुटियों में रहने का अभ्यास था । जंगल में जो उपलब्ध था उसी को खाते पीते थे। पैदल चलते हुये अति सामान्य और निरीह जन से तादात्म्य बिठाते हुये परस्पर सहयोग की भावना थी। सबकी सुनते थे, मिलते थे। शबरी के जूठे बेर खाते थे। राजा के रूप में एक अकेले व्यक्ति की भी आलोचना सुनने गुनने की गंभीरता थी । अपने चरित्र में अतीव अनुशासन मर्यादा वाले राम इस दृश्य को कैसे देख सकते हैं जिनकी उपस्थिति मात्र मे – ‘राम राज विषमता खोई ‘ संभव होती थी
ये चकाचौंध अनैतिक सत्ता का दंभ है। रामचरित का विरोधी भाव है। रामभाव न समझने वालों का दिखावा है। करदाता के पैसे पर धोखा है। भारी विषम समाज का अट्टहास है। बुझ चुके दियों के बचे हुये तेल से रसोई चलाने की क्रूर विवशता है। विश्वरिकॉर्ड बनाने का फटा ढोल है।
राम जैसे थे वैसा ही भाव लाना पाँच दियों की विनम्र दीपमालिका से संभव है पर २५ लाख + और कई सौ करोड़ के लेजर शो से असंभव है। हमारी राम परंपरा में दीवाली पर उपेक्षित स्थानों कोनों और यहॉं तक कि घूरे पर दिया रखने की रही है। जो मन मस्तिष्क लेजर चलाता है वह उपेक्षित घूरे को फिर देख भी नहीं पाता।
पिछले वर्षों में हमने इसी स्थान पर विश्व रिकॉर्ड की अगली सुबह दियों से बचा हुआ तेल इकट्ठा करते गरीब परिवारों के बच्चों को देखा है। इस साल पुलिस का खास इंतज़ाम है कि कोई उन बुझे हुये दियों के नज़दीक न जाने पाये ।
राम कितने प्रसन्न होते यदि अयोध्या में उन हजारों मजलूमों के घर भी उत्साहपूर्वक अपनी कमाई से दीवाली मन रही होती ! राम कितने भाव विभोर होते यदि रामभक्तों के राज में ‘ दैहिक दैविक भौतिक ताप’ विलोपित करते हुये संपूर्ण अयोध्या को ग़रीबी रेखा से मुक्त कर दिया होता। राम के संदेश अभी भी मिलते रहते हैं , वे कर्कश भाषा में नहीं होते। एक संदेश इसी साल ५ जून को मिला था पर लेजर शो का डंका घोषित कर रहा है कि उसे सुना नहीं जायेगा। जिस मस्जिद में रहते हुये तुलसीदास ने लोक की भाषा में विश्व की सबसे लोकप्रिय ऐसी कविता लिखी जो एक धर्मग्रंथ बन गया और घर घर पहुँच कर जीवन को सौम्य दिशा देने लगा उन्हीं स्थानों पर उकसायीं उग्र भीडें ‘ सर्वधर्म समभाव’ की धज्जियाँ उड़ा रही हों तो राम को कितना कष्ट हुआ होगा। महाकवि गुसाईं तुलसी दास को अब ठौर कहॉं होगा ?
‘राजधर्म ‘ पर भारत के ऋषियों संतों विचारकों ने स्पष्ट निर्देश व दिशानीति तय की है कि राजा के लिये सब समान होंगें , वो सबको समदृष्टि से न्याय देगा। वह राजधर्म भी छिन्नभिन्न हो रहा है। राजा की दृष्टि भी एकांगी पक्षपाती हो रही है। राजा का प्रशासन ही न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठ चुका है और यह सब वहॉं जहॉं प्राचीन काल से राम की गूंज है और सबके मन में राम के प्रति सादर श्रद्धा है।
हे राम! आपके संदेशों की प्रतीक्षा रहेगी!