अलविदा ज़ाक़िर हुसैन साहब!

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Zakir Hussain

Parichay Das
— परिचय दास

।। एक ।।

ज़ाकिर हुसैन, भारतीय संगीत के आकाश का वह सितारा थे, जिनकी चमक ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध किया। तबला वादन में उनकी महारत ने उन्हें एक ऐसे कलाकार के रूप में स्थापित किया, जो संगीत को न केवल कला, बल्कि आत्मा का प्रतिबिंब मानते थे। उनके न रहने से भारतीय शास्त्रीय संगीत को जो क्षति हुई है, उसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। ज़ाकिर हुसैन केवल एक तबला वादक नहीं थे; वे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के जीवंत प्रतीक थे। उनके जाने से संगीत के क्षेत्र में एक ऐसा रिक्त स्थान उत्पन्न हुआ है, जिसे भर पाना लगभग असंभव है।

ज़ाकिर हुसैन का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उनकी उंगलियों की थिरकन केवल सुर और ताल पैदा नहीं करती थी, बल्कि उसमें एक ऐसी ऊर्जा होती थी, जो श्रोता के हृदय को छू लेती थी। उन्होंने संगीत को एक साधना के रूप में देखा और उसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया। उनकी कला में भारतीय परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता था। वे एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने तबला वादन को केवल पारंपरिक दायरे तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई।

उनका बचपन से ही संगीत के प्रति लगाव उनके पिता, प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा से मिला। पिता के मार्गदर्शन में उन्होंने संगीत की बारीकियों को सीखा और उसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनके जीवन की यह यात्रा केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह भारतीय संगीत की विजयगाथा भी थी। उन्होंने तबले को उस मुकाम पर पहुँचाया, जहाँ इसे शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ फ्यूज़न और पश्चिमी संगीत में भी सम्मानित स्थान प्राप्त हुआ। उनकी कला ने यह साबित किया कि संगीत किसी भाषा, जाति, या भौगोलिक सीमा का मोहताज नहीं होता।

ज़ाकिर हुसैन का योगदान केवल संगीत तक ही सीमित नहीं था। वे भारतीय संस्कृति के एक सजीव प्रतिनिधि थे। उनकी प्रस्तुतियों में भारतीय परंपरा, सौंदर्य और विविधता झलकती थी। उन्होंने अपने संगीत के माध्यम से भारत की आत्मा को दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाया। उनके द्वारा किए गए अनगिनत प्रयोगों ने यह सिद्ध कर दिया कि संगीत की कोई सीमा नहीं होती। उन्होंने अपने जीवन में अनेक मंचों पर प्रदर्शन किया और हर बार श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी उंगलियों का जादू ऐसा था कि हर ताल में एक नई कहानी सुनाई देती थी।

उनके न रहने से भारतीय संगीत ने एक अद्वितीय रत्न खो दिया है। यह केवल एक शारीरिक अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी विचारधारा और दृष्टि की अनुपस्थिति है, जिसने संगीत को एक नई दिशा दी। ज़ाकिर हुसैन के संगीत में जो गहराई, जो ऊर्जा, और जो भावनात्मक अपील थी, वह विरले ही देखने को मिलती है। उनके बिना भारतीय संगीत जगत एक अनाथ की तरह महसूस करता है।

ज़ाकिर हुसैन का जीवन और उनकी कला हमें यह सिखाती है कि कैसे संगीत आत्मा का प्रतिबिंब बन सकता है। उनकी विरासत केवल संगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक दर्शन है, जो हमें यह सिखाती है कि कैसे परंपरा और नवाचार को साथ लेकर चला जा सकता है। उनके न रहने से यह जिम्मेदारी हमारी बन जाती है कि उनकी विरासत को संरक्षित करें और उसे नई पीढ़ियों तक पहुँचाएँ।

उनके जाने के बाद, जो स्मृतियाँ शेष हैं, वे उनके संगीत के रूप में हमारे साथ हैं। उनका हर प्रदर्शन, हर ताल, और हर धुन एक अमर कृति की तरह है, जो हमें उनकी उपस्थिति का अनुभव कराती है। उनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि कैसे अपने सपनों को साकार किया जा सकता है और अपनी कला के माध्यम से दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाया जा सकता है।

ज़ाकिर हुसैन के न रहने का दर्द केवल उनके परिवार, दोस्तों, और शिष्यों तक सीमित नहीं है। यह एक वैश्विक शोक है। उनकी संगीत यात्रा ने हमें यह सिखाया कि कला का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्मा का उत्थान है। उनके जाने से जो रिक्तता उत्पन्न हुई है, उसे भरने के लिए हमें उनकी शिक्षा, उनके मूल्यों, और उनकी दृष्टि को अपनाना होगा।

ज़ाकिर हुसैन का नाम भारतीय संगीत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके जाने से जो शून्य उत्पन्न हुआ है, वह हमें यह याद दिलाता है कि हमने केवल एक महान कलाकार को नहीं, बल्कि भारतीय संगीत की आत्मा के एक अभिन्न भाग को खो दिया है। उनकी स्मृतियाँ और उनकी कला सदैव हमारे साथ रहेंगी और हमें प्रेरित करती रहेंगी।

।। दो।।

संगीत की बारीकी को समझने और प्रस्तुत करने में ज़ाकिर हुसैन का नाम एक मिसाल है। तबले पर उनकी महारत और संगीत के प्रति उनकी गहरी समझ ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक अद्वितीय साधक बना दिया। उनकी प्रस्तुतियों में संगीत की हर सूक्ष्मता और जटिलता इतनी सहजता से व्यक्त होती थी कि वह श्रोता को सम्मोहित कर लेती थी।

ज़ाकिर हुसैन और सुर-ताल की बारीकी-

ज़ाकिर हुसैन के तबला वादन में सुर और ताल का संतुलन अद्भुत था। उन्होंने सुरों की गूंज और ताल की गहराई के बीच एक ऐसी समरसता स्थापित की, जो श्रोताओं के मन में लंबे समय तक गूंजती रहती थी। उनकी उंगलियाँ तबले पर जिस गति और कुशलता से थिरकती थीं, वह किसी साधारण अभ्यास का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उनके संगीत के प्रति समर्पण और बारीकियों की समझ का प्रमाण था।

ताल की संरचना और जटिलता-

ज़ाकिर हुसैन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के ताल पक्ष को एक नई ऊँचाई प्रदान की। उन्होंने विभिन्न तालों (तीनताल, झपताल, रुद्रताल आदि) के साथ प्रयोग किए और उनकी जटिलताओं को इतनी सहजता से प्रस्तुत किया कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनका “लेहरों” (ताल की तरंग) के साथ खेलना और उसमें नयी-नयी संभावनाएँ ढूँढ़ना संगीत की बारीकी को प्रदर्शित करता था।

द्रुत और विलंबित लय में संतुलन-

ज़ाकिर हुसैन की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे द्रुत (तेज गति) और विलंबित (धीमी गति) लय में समान कौशल दिखाते थे। धीमी लय में उनकी उंगलियों से तबले के हर बोल की स्पष्टता और भाव प्रकट होते थे, जबकि तेज लय में उनकी गति और ऊर्जा अद्वितीय होती थी। उन्होंने यह साबित किया कि तबला केवल एक लयबद्ध यंत्र नहीं, बल्कि भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम भी हो सकता है।

स्वर और भाव की अभिव्यक्ति-

ज़ाकिर हुसैन के तबला वादन में भावों की गहराई थी। हर ताल और हर “कायदा” (ताल की विशिष्ट संरचना) में एक कहानी होती थी। उनके तबले का हर बोल ऐसा लगता था जैसे वह किसी संवाद का हिस्सा हो। यह संगीत की वह बारीकी थी, जो उन्होंने वर्षों की साधना और गहरी समझ से अर्जित की थी।

संगीत के साथ संवाद-

ज़ाकिर हुसैन का तबला वादन केवल तकनीक का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि वह संगीत के साथ एक गहरा संवाद था। जब वे किसी वाद्य यंत्र या गायक के साथ प्रस्तुति देते थे, तो उनका तबला उस संगीत का पूरक बन जाता था। उनकी संगति इतनी सटीक होती थी कि श्रोता महसूस करते थे कि तबला और संगीत एक-दूसरे से बात कर रहे हैं।

प्रयोगधर्मिता और वैश्विक दृष्टिकोण-

ज़ाकिर हुसैन की संगीत की बारीकी उनकी प्रयोगधर्मिता में भी झलकती थी। उन्होंने तबले को भारतीय शास्त्रीय संगीत से निकालकर जैज़, फ्यूज़न, और वर्ल्ड म्यूजिक जैसे क्षेत्रों में स्थापित किया। यह उनके संगीत की सूक्ष्म समझ और उसमें नवाचार की क्षमता का प्रमाण है। उनकी प्रस्तुतियों में भारतीय और पश्चिमी संगीत के तत्व इतने सहजता से घुल-मिल जाते थे कि यह महसूस ही नहीं होता था कि ये दो अलग शैलियाँ हैं।

प्रेरणा और विरासत-

ज़ाकिर हुसैन ने संगीत की बारीकियों को अगली पीढ़ियों तक पहुँचाने का कार्य भी किया। उनके छात्रों और श्रोताओं को यह महसूस होता था कि संगीत में केवल तकनीक नहीं, बल्कि उसमें आत्मा और भावना का समावेश भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने हमें यह सिखाया कि संगीत की सच्ची बारीकी उसकी आत्मा में छिपी होती है।

ज़ाकिर हुसैन का संगीत और उनकी तबले की बारीकियाँ हमें यह याद दिलाती हैं कि संगीत केवल सुनने की नहीं, बल्कि महसूस करने की चीज़ है। उनकी प्रस्तुतियाँ हमेशा यह साबित करती हैं कि संगीत की बारीकियों में छिपा हुआ सौंदर्य और गहराई ही उसे कालजयी बनाती है।

।। तीन।।

तबले में नवाचार और उसका वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार ज़ाकिर हुसैन के करियर की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक है। उन्होंने तबले को भारतीय शास्त्रीय संगीत की सीमाओं से बाहर निकालकर एक सार्वभौमिक यंत्र बना दिया, जिसे हर संगीत प्रेमी समझ और सराह सकता है। उनकी कला ने तबले को न केवल लयबद्ध संगति के उपकरण के रूप में स्थापित किया, बल्कि इसे एक स्वतंत्र और प्रमुख वाद्य यंत्र के रूप में भी मान्यता दिलाई। ज़ाकिर हुसैन का नवाचार उनके अद्वितीय प्रदर्शन, तालों के रचनात्मक प्रयोग, और संगीत के नए आयामों को जोड़ने में स्पष्ट रूप से झलकता है।

तबला वादन में ज़ाकिर हुसैन का नवाचार

1. तालों की नई व्याख्या और प्रयोग-

ज़ाकिर हुसैन ने तबले के पारंपरिक ढांचे को बनाए रखते हुए उसमें नए-नए प्रयोग किए। उन्होंने परंपरागत तीनताल, झपताल, एकताल जैसे रागों में अपनी रचनात्मकता जोड़कर उन्हें नया रूप दिया। उनके द्वारा तैयार की गई “रिलायतें” (ताल की सजावट) और “कायदे” (ताल की संरचनाएँ) नए आयाम लेकर आईं। उन्होंने तबले के प्रत्येक “बोल” (धा, धिन, ता, गिन, आदि) में भाव और अभिव्यक्ति की नई परिभाषा दी।

2. फ्यूज़न संगीत में तबले की भूमिका-

ज़ाकिर हुसैन ने तबले को केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने तबले को जैज़, रॉक, और वर्ल्ड म्यूज़िक जैसे शैलियों में शामिल कर इसे एक अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। उनके प्रसिद्ध बैंड “शक्ति” में उन्होंने जॉन मैकलॉफलिन (गिटार वादक) और एल. शंकर (वॉयलिन वादक) के साथ मिलकर भारतीय और पश्चिमी संगीत का बेजोड़ मिश्रण प्रस्तुत किया। इस फ्यूज़न ने तबले को एक वैश्विक मंच दिया और इसे एक “क्रॉस-कल्चरल” वाद्य यंत्र बना दिया।

3. तबले को स्वतंत्र वाद्य यंत्र के रूप में स्थापित करना-

ज़ाकिर हुसैन ने अपने एकल (सोलो) प्रदर्शन के माध्यम से यह दिखाया कि तबला केवल संगत करने वाला यंत्र नहीं है, बल्कि इसे एक प्रमुख वाद्य यंत्र के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। उनके सोलो वादन में श्रोता तबले के हर बोल को एक कहानी की तरह सुनते थे। उनकी गति, ऊर्जा, और तबले की लय को परिभाषित करने का तरीका ऐसा था कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते थे।

4. तकनीकी सुधार और नए ध्वनि प्रयोग-

ज़ाकिर हुसैन ने तबले में ध्वनि के विविध आयामों को जोड़ा। उन्होंने इसे इस तरह बजाया कि इससे हर बार एक नई ध्वनि उत्पन्न होती थी। उनके हाथों की गति और उंगलियों का दबाव इतना नियंत्रित और सटीक होता था कि हर स्वर में एक अनोखा जादू झलकता था। उनकी तकनीक तबला बजाने वालों के लिए एक नया मानदंड बन गई।

5. ग्लोबल मंच पर तबले का प्रचार-

ज़ाकिर हुसैन ने तबले को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाया। उन्होंने यूरोप, अमेरिका, और एशिया के विभिन्न मंचों पर प्रदर्शन करके अंतरराष्ट्रीय श्रोताओं को भारतीय संगीत और तबले की जटिलताओं से परिचित कराया। उनकी प्रस्तुतियों ने तबले को एक सार्वभौमिक भाषा बना दिया, जो सांस्कृतिक और भौगोलिक सीमाओं को पार कर जाती है।

6. नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा-

ज़ाकिर हुसैन ने संगीत शिक्षा के क्षेत्र में भी नवाचार किया। उन्होंने युवा तबला वादकों को प्रशिक्षित करने और प्रेरित करने का कार्य किया। उनके अद्वितीय प्रदर्शन से नई पीढ़ी को यह सीखने का अवसर मिला कि कैसे परंपराओं का सम्मान करते हुए नवाचार किया जा सकता है।

7. सिनेमा और तबले का प्रयोग-

ज़ाकिर हुसैन ने तबले को भारतीय फिल्मों के संगीत में भी अलग ढंग से पेश किया। उन्होंने तबले का उपयोग पारंपरिक संगति से हटकर फिल्मों के बैकग्राउंड स्कोर और थीम संगीत में किया। इसने फिल्म संगीत को भी एक नया आयाम दिया।

8. डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक तबला-

तकनीक के दौर में, ज़ाकिर हुसैन ने तबले को डिजिटल माध्यमों से जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक संगीत में तबले को शामिल कर नई ध्वनियों और संभावनाओं को जन्म दिया। इससे युवा संगीतकारों में तबले के प्रति रुचि बढ़ी।

ज़ाकिर हुसैन का प्रभाव-

ज़ाकिर हुसैन ने तबले को एक साधन से कला का रूप दिया। उनकी प्रस्तुतियाँ केवल संगीत प्रदर्शन नहीं थीं, बल्कि वे एक सांस्कृतिक संवाद थीं। उनके नवाचार ने यह सिद्ध कर दिया कि संगीत की सीमाएँ केवल हमारी कल्पना में होती हैं। उन्होंने परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु का काम किया और तबले को हर पीढ़ी के लिए प्रासंगिक बना दिया।

उनका तबला वादन आज भी संगीत की दुनिया में एक प्रेरणा और एक मानक है। ज़ाकिर हुसैन का नवाचार हमें यह सिखाता है कि जब परंपरा और रचनात्मकता का मेल होता है, तो संगीत केवल सुनने का माध्यम नहीं रहता, बल्कि वह एक सार्वभौमिक भावना बन जाता है।

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