— रमाशंकर सिंह —
उप्र में मस्जिदों को तिरपाल से ढँकने का फ़ैसला किसका था?
क्या यूपी सरकार ने कैसा भी अलिखित दवाब बनाया?
अगर ऐसा होता तो सभी मस्जिदें ढँकी नहीं गयीं।
क्या मौलवियों ने ख़ुद किसी वाहियात बयानबाज़ी से डरकर यह निर्णय लिया ?
जो भी कारण हो यह एकदम ग़लत हुआ, सरासर बुरा हुआ ! जिसने भी किया वह निंदा का पात्र है। मस्जिदें मुसलमानों के आराधना स्थल हैं, उतने ही पवित्र माने जाने चाहिये जितना कोई मंदिर चर्च गुरुद्वारा या पारसी अग्निमंदिर !
हर पूजा का , ईश आराधना का स्थल मिट्टी सीमेंट गारे पत्थर से ही बनता है और निर्माण के समय कौन मज़दूर मिस्त्री किस धर्म जाति का है कोई नहीं देखता। सारा धार्मिक क़िस्सा और अधार्मिक ड्रामा तब शुरु होता है जब धर्म के विधान अनुसार वहॉं पुजारी मौलवी फ़ादर ज्ञानी बैठने लगता है। सिखों के गुरुद्वारे सदा सभी के लिये खुले रहते हैं बतौर आश्रय भी ! कुछ पहले तक मंदिरों के पट भी सभी के लिये खुले रहते थे। तुलसीदास जैसे संत महाकवि भी बनारस के ब्राह्मणों द्वारा दुत्कारे जाने के बाद मस्जिद में ही पनाह पाये- “ मांग के खइबो मसीत मे सोइबो “ ! चर्च का मेरा कोई अनुभव नहीं सो नहीं जानता।
यह कितने संतोष और भारतीय के नाते गर्व की बात है कि दिनरात टीवी माध्यमों की ज़हरीली बकवास के बाद होली का रंग मस्ती और रमज़ान पाक में जुम्मा की नमाज़ पूरे भारत में कितनी ही सुंदरता से सम्पन्न हो गयी। अपवाद रूप में एकाध स्थान पर कुछ हुआ हो पर जितना तनाव पैदा किया था वह सामान्य हिंदू और मुसलमानों की देशभक्ति समाजशीलता समझदारी और भाईचारे ने एकदम काफूर कर दिया।
लेकिन पूरी दुनिया में तिरपाल से ढँकी मस्जिदें हमारे चेहरे के बदनुमा कर गयीं। सरकार में दखल क्यों नहीं दिया ? रमजान व क्रिसमस पर बढ़िया भाषण देने वाले प्रधानमंत्री चुप क्यों रहे ? हमारी सबका डीएनए एक है का प्रवचन करने वाले सरसंघचालक एक इशारे में सब ठीक कर सकते थे , वे बोले क्यों नहीं ? संत गोरखनाथ की समावेशी विचारधारा जिसमें मुसलमान और दलित विशेष स्थान रखते हैं और उसी विचार के पारंपरिक के वाहक और पीठ के महंत योगी जी ने यह सब क्यों होने दिया ?
दुनिया में हमारी नाक नहीं कटनी चाहिये! देश सबसे ऊपर है, धर्म उससे ऊपर का स्थान नहीं पा सकता !
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