चंद्रचूड़ बंगला विवाद : सुप्रीम का पत्र क्या सरकार को चेतावनी है?

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shravan garg

— श्रवण गर्ग —

स खुलासे से कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ से सरकारी आवास ख़ाली कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को पत्र लिखा क्या देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की जनता में प्रतिष्ठा कम नहीं हुई होगी ? या फिर क्या ऐसा हुआ होगा कि चंद्रचूड़ साहब और उनके परिवार के प्रति जनता की सहानुभूति बढ़ गई और चर्चा या आलोचना ‘सुप्रीम कोर्ट प्रशासन’ द्वारा उठाए गए अभूतपूर्व कदम और सरकार की भूमिका पर केंद्रित हो गई ?

देश भर के अख़बारों/ टीवी चैनलों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित/प्रसारित किया था कि सेवा-निवृत्ति के आठ महीने बाद भी चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के ‘आवास पूल’ में मुख्य न्यायाधीश के लिए निर्धारित बंगला ख़ाली नहीं किया।न्यायाधीशों को सेवा-निवृत्ति के बाद केवल छह माह तक ही सरकारी आवास के उपयोग की पात्रता है।सुप्रीम कोर्ट को चार वर्तमान न्यायाधीशों के लिए आवासों की आवश्यकता है।

चंद्रचूड़ साहब ने अपने स्पष्टीकरण में जिन बातों का खुलासा किया उनमें प्रमुख यह था कि उनकी बेटियाँ गंभीर जेनेटिक और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रही हैं। उनके इलाज के लिये आवास में एक विशेष प्रकार के चिकित्सीय सेट-अप की ज़रूरत पड़ती है। उन्होंने सरकार से किराए पर वैकल्पिक आवास उपलब्ध करवाने की प्रार्थना की थी जिसे स्वीकार कर लिया गया था।

चंद्रचूड़ साहब ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से दिसंबर 2024 में निवेदन किया था कि वर्तमान आवास में 30 अप्रैल तक रहने की अनुमति प्रदान की जाए। अनुमति दे दी गई थी। उन्होंने न्यायमूर्ति खन्ना से 28 अप्रैल को पुनः आवेदन किया कि चूँकि वैकल्पिकआवास प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है अतः अनुमति की अवधि को 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया जाए। इस आवेदन का उन्हें कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। खबरों के मुताबिक़ चंद्रचूड़ साहब ने वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के संज्ञान में भी यह बात ला दी थी कि सरकार ने वैकल्पिक आवास आवंटित कर दिया है और आवश्यक मरम्मत के बाद ठेकेदार ने उसे 30 जून तक सौंपने का वायदा किया है।

वर्तमान आवास में ही निवास जारी रखने की अवधि आगे बढ़ाने संबंधी चंद्रचूड़ साहब के आवेदनों के पीछे मुख्य कारण यही समझा जा सकता है कि सरकार ने बंगला तो आवंटित कर दिया पर आठ महीनों में भी उसकी मरम्मत करवा कर उनके शिफ्ट होने लायक़ नहीं बनवाया जा सका। चंद्रचूड़ साहब ने यह भी बताना चाहा कि चूँकि आवंटित किया गया बंगला दो वर्षों से ख़ाली पड़ा था उसमें काफ़ी मरम्मत की ज़रूरत थी। ‘सामान अब पैक्ड है और ठेकेदार का ‘ओके’ मिलते ही शिफ्ट कर देंगे।’

चंद्रचूड़ साहब के इस कथन के बाद कि जिस आवंटित बंगले में मरम्मत चल रही है वह दो साल से ख़ाली पड़ा था नागरिक-जिज्ञासा इस सवाल पर टिक जाती है कि एक ऐसे समय जब विशिष्ठ और अति-विशिष्ठ व्यक्तियों के लिए आवासों की क़िल्लत चल रही हो(पिछले साल इन्हीं महीनों में कोई दो सौ पूर्व सांसदों को बंगले ख़ाली करने के नोटिस जारी किए गये थे )दिल्ली के पॉश लुटियंस झोनमें कोई बंगला दो साल तक ख़ाली कैसे पड़ा रह सकता है ?

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने पिछले साल अक्टूबर में आरोप लगाया था कि चंद्रचूड़ साहब के पास न सिर्फ़ वह बबंगला (5,कृष्ण मेनन मार्ग) है जिसका वे मुख्य न्यायाधीश के रूप में इस्तेमाल करते हैं कथित तौर पर उन्होंने तुगलक रोड स्थित उस बंगले का आधिपत्य सरकार को वापस नहीं सौंपा है जिसमें वे न्यायाधीश के रूप में दो वर्षों तक रहते रहे हैं। काटजू साहब ने अपने मेल को तब (संभवतः) न्यायमूर्ति खन्ना और न्यायमूर्ति गवई सहित न्यायपालिका के अन्य व्यक्तियों के साथ भी शेयर किया था।

काटजू साहब ने अपने मेल के अंत में यह भी लिखा था कि उन्हें प्राप्त जानकारी अगर ग़लत है तो मुख्य न्यायाधीश या उनकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर वक्तव्य जारी करके खंडन कर सकता है। काटजू साहब की उक्त चुनौती के बाद सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री या किसी अन्य के द्वारा कोई खंडन व्यक्तिशः उन्हें अथवा मीडिया को भेजा गया हो ऐसा जानकारी में नहीं आया जिससे कि मामले में संदेह उत्पन्न होता है ! काटजू साहब के साल भर पहले के कथन में अगर सत्यता थी तो क्या यह माना जा सकता है कि जिस बंगले में मरम्मत चल रही है वह वही होगा जिसमें चंद्रचूड़ साहब मुख्य न्यायाधीश बनने के पूर्व तक निवास करते थे ? या फिर वह कोई अन्य बंगला है ?

अपनी सेवा-निवृत्ति के पहले किसी बातचीत के दौरान इस सवाल के जवाब में कि पद छोड़ने के बाद क्या कोई सरकारी पेशकश स्वीकार करेंगे चंद्रचूड़ साहब ने जो कहा उसका आशय यही समझा गया था कि वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे मुख्य न्यायाधीश के पद की प्रतिष्ठा और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुँचे ! क्या माना जा सकता है कि उनके द्वारा की गई सरकारी बंगले की माँग सरकार द्वारा उन्हें की जा सकने वाली किसी पद की पेशकश से भिन्न है ?

अनुमान लगाया जा सकता है कि ‘सुप्रीम कोर्ट प्रशासन’ को इस घटनाक्रम की पूरी जानकारी रही होगी कि चंद्रचूड़ साहब को वैकल्पिक बंगला आवंटित हो गया है और उसकी मरम्मत का काम अंतिम चरणों में है। इसके बावजूद उसके द्वारा अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सरकारी आवास ख़ाली करवाने को लेकर सरकार को पत्र लिखे जाने के नागरिक-अर्थ क्या हो सकते हैं ? क्या यह नहीं कि सुप्रीम कोर्ट का पत्र हक़ीक़त में सरकार को चेतावनी है कि न्यायपालिका के कामकाज में किसी भी तरह का प्रलोभन या हस्तक्षेप स्वीकार नहीं होगा ?


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