— डॉ. योगेन्द्र —
‘आओ राजा, हम ढोयेंगे पालकी।’ नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी, चिराग़ पासवान, उपेंद्र कुशवाहा आदि राजा की पालकी ढो रहे हैं। राजा पब्लिक सेक्टर को ख़त्म कर रहा है। सरकारी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय को बर्बाद कर रहा है। सरकारी सेवा सेक्टर पर बीजेपी सरकार हमला कर रही है। संविधान को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है, लेकिन ये लोग बीजेपी की पालकी ढोने से बाज नहीं आ रहे। यहाँ तक कि तथाकथित राजा के सामने कसमें खा रहे हैं कि अब कहीं नहीं जायेंगे।
राजनीति में गिरावट होती है, मगर इतनी! जीवन में क्या ज़रूरी है? पद — तो रहेगा नहीं। संपत्ति — वह भी ठहरेगी नहीं। अंततः कर्म ही रह जाता है। चिराग़ पासवान तो हद ही करते हैं। कपार पर लंबा टीका और हाथ में धार्मिक डोरा। और फिर कर्मकांड। कोई पंडित भी इतने धार्मिक उपकरण धारण नहीं करते हैं। ये भूल जाते हैं कि इनके पिता रामविलास पासवान की कुल कमाई के वारिस बने बैठे हैं और पिता चंदन-टीका के खिलाफ ही रहे।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर का नाम लेकर उन्होंने राजनीति की, मगर बेटे तो भगवा-आचरण में डूब गए। डॉ. अम्बेडकर के कम से कम बीस कथन को तो पढ़ लेते। डॉ. अम्बेडकर ने कभी पूजापाठ नहीं किया — तो उनका नाम कम है क्या? डॉ. अम्बेडकर के तीन गुरु थे — बुद्ध, कबीर और फूले। तीनों ने कब टीका-चंदन लगाया? कब कर्मकांड में तरजीह दी? दुनिया के इतिहास में इनका कम नाम है या इन्होंने कम काम किया है? अपने पुरखों का नाम लेना काफ़ी नहीं है, उसका आचरण भी करना चाहिए।
बीजेपी सरकार उन सारी सरकारी योजनाओं और संस्थाओं को नष्ट कर रही है जिनके कारण उपेक्षित जातियों के युवा आगे बढ़े और ऊँची कुर्सियों तक पहुँचे। आज उलटबाँसी चल रही है। कुर्सी के लिए ये लोग अपने ही लोगों की पिटाई कर रहे हैं।
शिव जी ने विष का प्याला पीया और वे नीलकंठ कहलाए। गले में सर्प को भी लटकाया। शिव में सहने की अपार क्षमता थी। ज़हर पीकर भी जीवित रहे। आधुनिक ज़हर कम विषाक्त नहीं है और इस ज़हर को सहने की क्षमता भी आज नहीं है। देश आग की लपटों से घिरा है।
देश में निजीकरण का दौर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि भारत में बने सामान ही ख़रीदें। उन्होंने समझौता कर बाज़ार को विदेशी सामान से पाट दिया है और लोगों से कह रहे हैं कि स्वदेशी ख़रीदें। वे स्वदेशी सामान की एक सूची भी प्रकाशित कर दें।
बीजेपी सरकार की नीतियाँ पूँजीपतियों की पूँजी बढ़ाने और छोटे-छोटे उद्योगों व ग्रामीण रोज़गार को ख़त्म करने में लगी हैं और वे ड्रामा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री खुद कितने स्वदेशी सामान का इस्तेमाल कर रहे हैं?
झूठ को परोसने की कला सबको नहीं आती। यह एक ख़ास संस्कृति की उपज है। आज सिर पर चढ़ कर बोल रही है। झूठ का व्यापार फल-फूल रहा है और इसे ही सच बनाने की कोशिश जारी है। महात्मा गाँधी, भगतसिंह और सुभाष चन्द्र बोस की तस्वीर के ऊपर सावरकर की तस्वीर लगायी जा रही है।
क्या इस देश का प्रतीक माफीवीर सावरकर होगा, जिसने अंग्रेजों से पेंशन ली और उनका चरण-चुंबन किया? और इसकी पालकी उठाये हुए हैं। यहाँ तक कि मौन हैं सभी। इनके घर सन्नाटा है।
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